Home दुर्ग/भिलाई आषाढ़ पूर्णिमा पर प्रारंभ हुआ वर्षावास

आषाढ़ पूर्णिमा पर प्रारंभ हुआ वर्षावास

by Surendra Tripathi

भिलाई। आषाढ़ पूर्णिमा पर  भारतीय बौद्ध महासभा भिलाई के तत्वावधान में बाबासाहेब डॉ.अम्बेडकर सांस्कृतिक भवन सेक्टर 6 भिलाई में बुधवार 13 जुलाई को धम्मगुरु पूज्य भंते महेंद्र के द्वारा त्रैमासिक वर्षावास प्रारंभ किया गया।
इस अवसर पर पूज्य भंते महेंद्र ने बताया कि आषाढ़ पूर्णिमा का बौद्ध धम्म में महत्वपूर्ण स्थान है , बौद्ध संस्कृति का महान पर्व है।ज्ञान प्राप्ति पश्चात “तथागत” बुद्ध ने सारनाथ के ॠषिपतन, मृगदाय वन में पंच वग्गीय भिक्खु संघ को उपदेश देकर प्रथम धम्मचक्क पवत्तन किया था।
सिद्धार्थ गौतम का उम्र के 29 वे वर्ष “रोहिणी” नदी के जल बटवारें को लेकर उठे शाक्यों और कोलियों के बीच विवाद पर युद्ध के ख़िलाफ़ गृहत्याग, इस घटना को “महाभिनिष्क्रमण” कहा जाता है। यह भी आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हुआ। उन्होंने बताया कि बुद्धत्व बोधिप्राप्ति के पश्चात विषदयोग,से उभरकर तथागत बुद्ध द्वारा जनकल्याण हेतु धम्ममार्ग का अपना पहला उपदेश सारनाथ में पंचवग्गीय भिक्षु संघ “कौंडिन्य, अश्वजित, कश्यप, महानाम, एवं भद्रिक”इन पाँच परिव्राजकों को प्रथम उपदेश देकर धम्मचक्क प्रवर्तन करना यहीं आगे चलकर गुरु औऱ शिष्य परंपरा बन गयी, जो गुरुपौर्णिमा के नाम आज भी प्रचलित है। इसी अषाढ़ पूर्णिमा पर घटित है।
तथागत बुद्ध ने सारनाथ में अपना पहला वर्षावास पूरा किया था, उस वक़्त बरसात में शरीर को तेज बारिश,आंधी,तूफान, आकाशिय एवं ज़मीनी संकटो से बचने हेतु किसी गाँव के समीप विहार, संघाराम, में तीन माह का वर्षाकाल व्यतीत कर, चारिका , धम्मोपदेशना कर भिक्खु रह सकतें थे। यही 3 माह का काल वर्षावास कहलाता है। बौद्ध विहारों में भिक्खु वर्षाकाल समाप्ति करने पश्चात भिन्न भिन्न दिशाओं में धम्मोपदेशना हेतु निकल पड़ते है ।
ऐसी अनुपम घटनाओं को समेटे आषाढ़ पूर्णिमा, धम्मचक्क पवत्तन, गुरु पूर्णिमा ,बौद्ध संस्कृति का महान धम्मक्रांति दिवस,बौद्ध धम्म का महान पर्व वर्षावास पूज्य भंते महेंद्र के सानिध्य मे त्रिशरण पंचशील ग्रहण कर प्रारंभ किया गया। इस अवसर पर काफी संख्या में बौद्ध उपासक उपासिकाऐ उपस्थित थीं। उक्त जानकारी भारतीय बौध्द महासभा भिलाई के अध्यक्ष नरेन्द्र खोब्रागडे ने दी।

Share with your Friends

Related Posts