नईदिल्ली(ए)। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने के समर्थन में केंद्र की तरफ से प्रस्तुत किए गए एक उदाहरण और इस तर्क पर कड़ी टिप्पणी की कि इस तर्क के अनुसार, हिंदू न्यायाधीशों की पीठ को वक्फ से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई नहीं करनी चाहिए। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की पीठ वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के उन प्रावधानों पर सवाल उठा रही थी, जो केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों के नामांकन की अनुमति देते हैं।
सीजेआई खन्ना की टिप्पणी
सीजेआई ने कहा, ‘क्या आप सुझाव दे रहे हैं कि हिंदू धार्मिक संस्थानों का प्रबंधन करने वाले बोर्डों में मुसलमानों सहित अल्पसंख्यकों को भी शामिल किया जाना चाहिए? कृपया इस पर खुलकर बताएं।’ इस मामले में केंद्र का प्रतिनिधित्व करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रावधानों का बचाव करते हुए इस बात पर जोर दिया कि गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना सीमित है और इससे इन निकायों की मुख्य रूप से मुस्लिम संरचना प्रभावित नहीं होती है। विधि अधिकारी ने यह भी कहा कि गैर-मुस्लिम भागीदारी पर आपत्ति तार्किक रूप से न्यायिक निष्पक्षता तक विस्तारित हो सकती है और उस तर्क से, पीठ स्वयं मामले की सुनवाई करने से अयोग्य हो जाएगी।

हमारे लिए दोनों पक्ष समान हैं- सीजेआई
यदि वैधानिक बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की उपस्थिति पर आपत्ति स्वीकार कर ली जाती है, तो वर्तमान पीठ भी मामले की सुनवाई नहीं कर पाएगी, मेहता ने कहा, ‘तब आपके माननीय इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकते हैं यदि हम उस तर्क से चलते हैं।’ सीजेआई ने पलटवार करते हुए कहा, ‘नहीं, क्षमा करें मेहता, हम केवल न्यायनिर्णयन के बारे में बात नहीं कर रहे हैं। जब हम यहां बैठते हैं, तो हम अपना धर्म खो देते हैं। हम पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष हैं। हमारे लिए, एक पक्ष या दूसरा पक्ष समान है।’