Home देश-दुनिया भारतीय भाषाओं के आधार पर ही बनेगा श्रेष्ठ भारत : प्रो. शुक्ल

भारतीय भाषाओं के आधार पर ही बनेगा श्रेष्ठ भारत : प्रो. शुक्ल

by Surendra Tripathi

 

*’सृजन और सृजनात्मक संवाद भारतीय भाषाओं में ही संभव’*

 

*’भारतीय भाषाओं के प्रयोग क्षेत्र का विस्तार और मीडिया’ विषय पर आईआईएमसी में दो दिवसीय संगोष्ठी का शुभारंभ*

 

*नई दिल्ली, 20 मार्च।* *भारतीय जन संचार संस्थान* और *भारतीय भाषा समिति* के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ करते हुए *महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल* ने कहा कि भारत में बोलीं जाने वाली भाषाएं न केवल दुनिया की सभी भाषाओं से सबसे समृद्ध हैं, बल्कि यह भाषाएं हमारे जीवन मूल्य, संस्कार, ज्ञान और संस्कृति की भी पहचान हैं। उन्होंने कहा कि श्रेष्ठ भारत का निर्माण भारतीय भाषाओं के आधार पर ही संभव है। इस अवसर पर भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक *प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी*, भारतीय भाषा समिति के अध्यक्ष *चमू कृष्ण शास्त्री*, आईआईएमसी के डीन (अकादमिक) *प्रो. गोविंद सिंह*, डीन (छात्र कल्याण) एवं संगोष्ठी के संयोजक *प्रो. प्रमोद कुमार* सहित आईआईएमसी के सभी प्राध्यापक, अधिकारी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।

 

संगोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में विचार व्यक्त करते हुए *प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल* ने कहा कि अंग्रेजी को संपर्क भाषा के रूप में स्वीकार करने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन इससे जीवन जिया तो जा सकता है, पर एक श्रेष्ठ समाज और समर्थ राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि एक शक्तिशाली और स्वाभिमानी राष्ट्र का निर्माण पराई भाषा में संभव नहीं है। जो देश अपनी भाषा में सृजन और संचार नहीं करता, वह पिछड़ जाता है।

 

*राष्ट्र के विकास के लिए भारतीय भाषा का विकास जरूरी : प्रो. द्विवेदी*

 

इस अवसर पर भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक *प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी* ने कहा कि राष्ट्र के विकास के लिए भारतीय भाषाओं का विकास होना आवश्यक है। भाषा का अपने समाज और संस्कृति से अटूट संबंध होता है और वह अपने समुदाय के मूल्यों से जुड़ी होती है। यदि हम अपने देश की शिक्षा प्रणाली को विश्व स्तरीय बनाना चाहते हैं, तो मातृभाषाओं में शिक्षा के माध्यमों को प्रोत्साहन देना होगा। उन्होंने कहा कि आधुनिक तकनीक और संचार सुविधाओं का लाभ उठाकर हम भारतीय भाषाओं का विस्तार करें, यही इस संगोष्ठी का उद्देश्य है।

 

*भाषा के बिना ज्ञान का प्रसार संभव नहीं : शास्त्री*

 

भारतीय भाषा समिति के अध्यक्ष *चमू कृष्ण शास्त्री* ने कहा कि देश की जीडीपी में 70 प्रतिशत योगदान भारतीय भाषाओं का है और अंग्रेजी का योगदान सिर्फ 30 प्रतिशत है। कृषि और लघु उद्योग जैसे कई क्षेत्र भारतीय भाषाओं से चलते हैं। आज ज्ञान प्रौद्योगिकी, ज्ञान अर्थव्यवस्था, ज्ञान तकनीक जैसी प्रचलित सभी धारणाएं भाषा के माध्यम से ही संचालित होती हैं। जिस तरह तार के बिना बिजली का प्रवाह नहीं होता, उसी प्रकार भाषा के बिना ज्ञान का प्रसार संभव नहीं है।

 

*संस्कृति में निहित है भाषाओं का मूल तत्व : प्रो. सलूजा*

 

*’भारतीय भाषाओं में अंत:संबंध’* विषय पर आयोजित संगोष्ठी के प्रथम तकनीकी सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात भाषाविद *प्रो. चांदकिरण सलूजा* ने कहा कि भाषा वह है, जो हम कहना चाहते हैं। भाषाओं का मूल तत्व संस्कृति में निहित है। उन्होंने कहा कि हिंदी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति हमारी दृष्टि व्यापक होनी चाहिए। हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम हिंदी भाषा तक ही सीमित न रह कर अन्य भारतीय भाषाओं को भी ग्रहण करें।

 

*फिर से विश्व गुरु बनेगा भारत : प्रो. अरोड़ा*

 

पीजीडीएवी कॉलेज के हिंदी विभाग में प्राध्यापक *प्रो. हरीश अरोड़ा* ने कहा कि भारत की भाषाओं में ऐसे बहुत से शब्द हैं, जो अलग-अलग भाषा में होते हुए भी समान स्वरूप और समान अर्थ रखते हैं। इससे प्रमाणित होता है कि भारतीय भाषाओं में कभी कोई संघर्ष नहीं रहा। उन्होंने कहा कि हमें अपने आपसी मतभेदों से उठकर भारतीय भाषाओं के विकास के लिए मिलकर प्रयास करने होंगे। तभी हम इस विराट भारतीय संस्कृति को बचा पाएंगे और भारत को फिर से विश्व गुरु बना पाएंगे।

 

*आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सबसे बड़ी चुनौती : विजय*

 

*’डिजिटल तकनीक के दौर में भारतीय भाषाएं’* विषय पर आयोजित संगोष्ठी के दूसरे तकनीकी सत्र को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार *अनंत विजय* ने कहा कि भारतीय भाषाओं के सामने आज सबसे बडी चुनौती आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की है। भारतीय भाषाएं अगर इस तकनीक को आत्मसात नहीं कर पाईं, तो पीछे रह जाएंगी। इसलिए जब सब कुछ शुरुआती दौर में है, तो हम इस क्षेत्र में बेहतर काम करके आगे बढ़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि अगर हम तकनीक का इस्तेमाल अपनी भाषाओं को जोड़ने, उन्हें व्यापार और कामकाज की भाषा बनाने में करेंगे, तो इससे हम और ताकतवर बनेंगे।

 

*भारतीय भाषाओं में काम करेंगे, तभी विकसित देश बनेंगे : सानू*

 

प्रख्यात लेखक एवं उद्यमी *संक्रांत सानू* ने कहा कि सबसे अमीर और विकसित देश वो हैं, जो अपनी जनभाषा में काम करते हैं और सबसे पिछड़े एवं गरीब देश वो हैं, जो औपनिवेशिक भाषाओं में काम करते हैं। अंग्रेजी हमारे विकास का नहीं, बल्कि पिछड़ेपन का कारण है। उन्होंने कहा कि जापान और चीन जैसे देशों का उदाहरण हमारे सामने है, जो अपनी भाषाओं में काम करके ही विकसित हुए हैं। हम भारतीय भाषाओं में काम करेंगे, तभी विकसित देश बनेंगे। यही आगे बढ़ने का सही रास्ता है।

 

*सम्प्रेषण के लिए जरूरी है शब्दों का आधार : भारती*

 

संगोष्ठी के तीसरे तकनीकी सत्र में *’भारतीय भाषाई मीडिया और शब्द चयन’* विषय पर विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ पत्रकार *आनंद भारती* ने कहा कि शब्द हमें सीधे संप्रेषित करते हैं, लेकिन क्या शब्दों के बिना भी हमारा काम चल सकता है? वर्तमान समय में, खासकर मीडिया में, सम्प्रेषण के लिए शब्दों का आधार जरूरी है। आज प्रश्न शब्दों के चयन का है, जहां हमारे सामने साहित्यिक भाषा और आम बोलचाल की भाषा में से किसी एक को चुनने की दुविधा होती है।

 

शब्दों की कमी है बड़ी समस्या : वकास

 

वरिष्ठ पत्रकार मोहम्मद वकास ने कहा कि भारतीय भाषाई मीडिया की समस्या यह है कि हमारे पास शब्द कम होते जा रहे हैं। एक दिन शायद ऐसा भी आएगा जब लोग इशारों में ही अपनी बात कह देंगे। इमोजी इसका ही एक उदाहरण है।

 

कार्यक्रम का संचालन *डॉ. रचना शर्मा, डॉ. पवन कौंडल* एवं *अंकुर विजयवर्गीय* ने किया। धन्यवाद ज्ञापन *प्रो. वीके भारती* एवं *डॉ. मीता उज्जैन* ने दिया।

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