'स्त्री-2023 सृजन और सरोकार' पर दो दिवसीय साहित्यिक आयोजन में चर्चा, कहानी-कविता पाठ व सांस्कृतिक संध्या ने बांधे रखा दर्शकों को
रायपुर। साहित्य अकादमी छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद की ओर से दो दिवसीय साहित्यिक कार्यक्रम ‘स्त्री-2023 सृजन और सरोकार’ की शुरुआत रविवार 19 फरवरी को शहर के न्यू सर्किट हाउस सिविल लाइंस स्थित कन्वेंशन हॉल में हुई। जिसमें पहले दिन स्त्री विमर्श से जुड़े विभिन्न मसलों पर आमंत्रित वक्ताओं ने अपने विचार रखे। वहीं कहानी व कविता पाठ ने भी दर्शकों को बांधे रखा। शाम को वायलिन पर अनूठी प्रस्तुति ने आयोजन में समा बांध दिया।
सुबह पहला सत्र ‘स्त्री लेखन नए प्रश्न नई चुनौतियां’ विषय पर चर्चा के साथ शुरू हुआ। जिसमें आधार वक्तव्य देते हुए संयोजक जया जादवानी ने कहा कि अदब और अदीब से आज हमारे समाज का रिश्ता कमजोर हुआ है। आज स्त्री की संवेदनाएं बदल गईं हैं और बदलते दौर में भी स्त्री की समस्याएं अस्तित्वगत भी है। ऐसे में यह स्त्री विमर्श अपनी अहमियत रखता है। उन्होंने इस बात विशेष तौर पर रेखांकित किया कि आज का समाज एलजीबीटीक्यू समुदाय के बारे में चिंता कर रहा है और इस समुदाय के कुछ प्रतिनिधि यहां मौजूद है, इससे आयोजन का महत्व और बढ़ जाता है।
नई दिल्ली से आई युवा लेखिका सुजाता ने कहा आज पितृ सत्तात्मक समाज की शिकार सिर्फ स्त्री नहीं है। उन्होंने कहा कि आज स्त्री लेखन की दुनिया से अंदर से सवाल उठ रहे हैं, यह बड़ी बात है। वहीं पितृ सत्तात्मक समाज से भी सवाल आ रहे हैं। ऐसे माहौल में लेखक का दायित्व है कि वह इन सवालों से टकराए। तब हम बेहतर समाज की उम्मीद कर सकते हैं।
आमंत्रित वक्ताओं में प्रख्यात कवि देवी प्रसाद मिश्र ने अपनी बात अपनी कविताओं के माध्यम से रखी। उन्होंने स्त्री विमर्श पर केंद्रित अपनी कविता ‘यह कविता समर्पित है…’ सुना कर खूब वाहवाही लूटी।
युवा आलोचक रश्मि रावत ने अपनी बात की शुरूआत ममता कालिया की एक कहानी से करते हुए कहा कि स्त्री लेखन आने के साथ इससे बहुत से आयाम जुड़ गए हैं। आज सवाल यह है कि स्त्री विमर्श के माध्यम से स्त्री चाहती क्या है और इसके बरअक्स समाज उससे क्या चाहता है? इस पर हमें गंभीरता से सोचना होगा।
पहले सत्र में लेखक गिरीराज किराडू ने स्त्री विमर्श के प्रश्न पर 1884 में जन्मीं बाल विवाह की शिकार रखमा बाई का विशेष तौर पर उल्लेख किया जिन्होने पति के साथ जाने से इनकार किया। जिस पर तब न्यायालय ने उनके पक्ष में फैसला दिया और बाद में उन्होंने आगे की पढ़ाई पूरी की और डाक्टर भी बनीं। किराडू ने स्त्री विमर्श व भारतीय साहित्य की आधुनिक परंपरा पर एक रोचक पीपीटी प्रस्तुतिकरण दिया। जिसमें उन्होंने भारतीय साहित्य में विभिन्न खेमों का भी जिक्र किया।
वहीं शुरूआत में स्वागत वक्तव्य देते हुए साहित्य अकादमी, छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त ने कहा कि हमारे पुरुष प्रधान समाज की तरह ही साहित्य में भी पुरुष प्रधानता बनी हुई है, मगर पिछले कुछ सालों में साहित्य व आलोचना के स्थापित प्रतिमानों के सामने स्त्री लेखन ने बड़ी चुनौती पेश की है।