नईदिल्ली(ए)। घुसपैठियों को निकालने के लिए अब असम सरकार 7 दशक पुराने एक कानून उपयोग करने जा रही है। इस कानून के मुताबिक अब सरकार को राज्य के भीतर छुपे घुसपैठियों को निकालने के लिए अदालत जाने की जरूरत नहीं होगी। इस कानून का इस्तेमाल करने की अनुमति सुप्रीम कोर्ट ने भी दी हुई है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने खुद दी है। बता दें कि, वर्तमान में देश भर से बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकालने के लिए ऑपरेशन पुशबैक चल रहा है। लेकिन इस अभियान को एक ने स्तर पर लेकर जाने असम सरकार ने कमर कस ली है।
असम के सीएम हिमंता ने कहा है कि अवैध विदेशियों को निर्वासित करने के लिए अब हर बार अदालत जाने की जरूरत नहीं है। उन्होंने बताया कि असम सरकार 1950 के अप्रवासी निष्कासन आदेश का इस्तेमाल कर सकती है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में वैध माना है। CM सरमा ने बताया कि इस कानून के तहत कलेक्टर को भी यह अधिकार है कि वह अवैध प्रवासियों को सीधे देश से बाहर भेजने का आदेश दे सकता है। CM सरमा ने यह सारी जानकारी शनिवार (7 जून, 2025) को नलबाड़ी जिले के दौरे के दौरान दी है।

CM हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि किसी कारण से 1950 के इस कानून को भुला दिया गया था और सरकारी वकील भी इसका जिक्र नहीं करते थे। लेकिन हाल ही में सरकार को इस कानून के अस्तित्व का पता चला है।
अब राज्य सरकार इसका इस्तेमाल अवैध प्रवासियों को वापस भेजने के लिए करेगी। उन्होंने कहा कि अब से अवैध प्रवासियों की पहचान होने पर उन्हें ट्रिब्यूनल भेजने की जरूरत नहीं होगी, बल्कि सीधे सीमा पार भेजा जाएगा।
क्या था सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2024 में दिए गए फैसले में नागरिकता कानून की धारा 6ए को वैध बताया था। साथ ही कोर्ट ने कहा कि अप्रवासी (असम से निष्कासन) अधिनियम,1950 के प्रावधान भी इसमें शामिल माने जाएँगे और इनका इस्तेमाल अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए किया जा सकता है।
गौर करने वाली बात यह है कि पश्चिमी सीमा से पाकिस्तान से आने वाले लोगों के लिए बना कानून ‘आवागमन नियंत्रण अधिनियम, 1952’ को जनवरी 1952 में खत्म कर दिया गया था। लेकिन पूर्वी सीमा के लिए बनाया गया कानून अप्रवासी (असम से निष्कासन) अधिनियम, 1950 आज भी लागू है। यह सिर्फ असम में लागू होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया था कि निष्कासन कानून और धारा 6ए एक-दूसरे के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि दोनों कानून साथ-साथ लागू हो सकते हैं। कोर्ट ने कहा था कि संसद द्वारा कानून पारित किया जाना यह दर्शाता है कि बांग्लादेश से असम में प्रवासियों का भारी प्रवाह हमेशा से चिंता का कारण रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यह कानून इसलिए बनाया गया था क्योंकि विदेशी अधिनियम में पाकिस्तान से आए लोगों को शामिल नहीं किया गया था, इसलिए इनके लिए अलग से नियम की जरूरत थी।
इस कानून के अनुसार, अगर केंद्र सरकार को लगता है कि असम में बाहर से आया कोई व्यक्ति आम जनता या वहाँ की किसी अनुसूचित जनजाति के लिए नुकसानदायक है, तो सरकार उसे असम छोड़ने का आदेश दे सकती है और उसे बाहर निकाल सकती है। यह अधिकार केंद्र सरकार के पास है। केंद्र सरकार इस शक्ति को अपने अधिकारियों या असम, मेघालय और नागालैंड की राज्य सरकारों के अधिकारियों को भी दे सकती है।
डिपोर्ट करने की प्रक्रिया को तेज किया जायेगा
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि असम में NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) के कारण अवैध प्रवासियों की पहचान और उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया धीमी हो गई थी लेकिन अब इसे तेज किया जाएगा। उन्होंने बताया कि जैसे ही किसी अवैध प्रवासी की पहचान होगी, उसे बांग्लादेश भेज दिया जाएगा। हालाँकि, जिन लोगों ने अपने निष्कासन आदेश को अदालत में चुनौती दी है, उन्हें तब तक नहीं भेजा जाएगा जब तक अदालत फैसला नहीं देती।