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नईदिल्ली (ए)। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि कार्यस्थल पर किसी वरिष्ठ अधिकारी की तरफ से डांट-फटकार देना ‘जानबूझकर अपमान’ की श्रेणी में नहीं आता और इस पर आपराधिक कार्रवाई नहीं हो सकती। मामले में शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर ऐसे मामलों में आपराधिक आरोप लगाने की अनुमति दी गई, तो इससे कार्यस्थल का अनुशासन प्रभावित होगा और पूरे तंत्र पर नकारात्मक असर पड़ेगा। मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति संजय करोल और संदीप मेहता की पीठ ने स्पष्ट किया कि केवल गुस्से में कही गई बातें, रूखा व्यवहार या असभ्य भाषा आईपीसी की धारा 504 के तहत ‘जानबूझकर अपमान’ की श्रेणी में नहीं आते।
इस धारा के तहत यदि कोई व्यक्ति किसी का जानबूझकर अपमान करता है, जिससे शांति भंग होने की संभावना हो, तो उसे दो साल तक की सजा हो सकती है। जुलाई 2024 से यह धारा भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 352 से बदल दी गई है।
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सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला एक 2022 के आपराधिक मामले को रद्द करते हुए दिया। यह मामला राष्ट्रीय बौद्धिक दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान के कार्यकारी निदेशक के खिलाफ था। एक सहायक प्रोफेसर ने उनके खिलाफ शिकायत की थी कि उन्होंने अन्य कर्मचारियों के सामने उसे डांटा था। शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया था कि निदेशक ने संस्थान में कोविड-19 संक्रमण से बचाव के लिए पर्याप्त पीपीई किट उपलब्ध नहीं करवाई, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ गया।
अदालत ने कहा कि इस मामले में लगाए गए आरोप पूरी तरह से काल्पनिक लगते हैं और आईपीसी की धारा 269 व 270 (जो संक्रामक बीमारी फैलाने से जुड़ी हैं) के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए काफी नहीं हैं।
मामले में कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि, ‘अगर वरिष्ठ अधिकारी कार्यस्थल पर अनुशासन बनाए रखने और कर्मचारियों को उनकी जिम्मेदारियों का एहसास कराने के लिए फटकार लगाता है, तो इसे ‘जानबूझकर अपमान’ नहीं माना जा सकता। वरिष्ठ अधिकारी से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से ईमानदारी और समर्पण के साथ काम करने की अपेक्षा रखे।’ यह फैसला 10 फरवरी को सुनाया गया था।