नई दिल्ली(ए)। रबर-प्लास्टिक उत्पादों, इमारतों और बुनियादी ढांचे जैसी चीजों में हर साल करीब 40 करोड़ टन जीवाश्म कार्बन जमा हो रहा है। यह उत्पाद किसी कार्बन सिंक की तरह काम कर रहे हैं। यदि इनका उचित निपटान नहीं किया तो ये पर्यावरण और जलवायु के लिए बेहद खतरनाक हो सकते हैं। यह निष्कर्ष नीदरलैंड के ग्रोनिंगन विवि के शोधकर्ताओं के हाल के अध्ययन में सामने आए हैं। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि 1995 से 2019 के बीच 25 वर्षों में प्लास्टिक, इमारतों जैसे उत्पादों में करीब 840 करोड़ टन कार्बन जमा हो चुका है। इसमें हर साल करीब 40 करोड़ टन की वृद्धि हो रही है। अधिकांश कार्बन रबर और प्लास्टिक उत्पादों में जमा हो रही है। इसी अवधि के दौरान लगभग 370 करोड़ टन कार्बन लैंडफिल, जलाने और अन्य कचरे के माध्यम से वापस पर्यावरण में पहुंच गई है। इससे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में बहुत अधिक बढ़ोतरी हो सकती है। यह अध्ययन जर्नल सेल रिपोर्ट्स सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुआ है।
1995 से 2019 के बीच 7 फीसदी तक पहुंचा जीवाश्म ईंधन का उपयोग
अध्ययन के अनुसार 1995 से 2019 के बीच उत्पादों को बनाने के लिए बहुत अधिक जीवाश्म ईंधन का उपयोग किया गया। यह उपयोग पांच से बढ़कर सात फीसदी से अधिक हो गया है। वैज्ञानिकों ने इस बात का भी अंदेशा जताया है कि ईंधन और सीमेंट से हो रहा कार्बन प्रदूषण 2024 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच जाएगा।
बुनियादी ढांचे में जमा सबसे ज्यादा कार्बन
इमारतों और बुनियादी ढांचे में सबसे ज्यादा करीब 39 फीसदी कार्बन जमा हो गया है। इसके बाद रबर और प्लास्टिक के बने उत्पादों में स्टोर हुआ, जो करीब 30 फीसदी था। डामर में 24 फीसदी स्टोर हुआ, जो सड़कों और छतों में इस्तेमाल किया जाता है। इसमें कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, सल्फर जैसे तत्व और धातुओं के अंश होते हैं।
दुनिया को एकजुट होकर मुकाबला करना होगा
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता क्लॉस हुबासेक का कहना है कि अब हमारे पास प्रकृति की तुलना में मनुष्यों द्वारा बनाई चीजों जैसे प्लास्टिक और इमारतों में कहीं अधिक कार्बन है, लेकिन इसके बावजूद हम इसे अनदेखा कर रहे हैं। नतीजन यह मात्रा लगातार बढ़ रही है। इसके प्रवाह के साथ-साथ इनके भण्डार पर भी ध्यान दने की जरूरत है। हुबासेक चेतावनी देते हुए कहते हैं कि जीवाश्म ईंधन जैसे लकड़ी, कोयला, तेल या अन्य गैसों के दहन से कार्बन का निर्माण तेजी से हो रहा है। कार्बन का अधिक उत्सर्जन होना भारी नुकसानदेह है। बढ़ता कार्बन धरती के बढ़ते तापमान के लिए जिम्मेदार है। दुनिया को एकजुट होकर इसका मुकाबला करना होगा।