नईदिल्ली (ए)। Rajkumar vs State Of Karnataka Case: ‘किसी रिश्ते में शुरुआत में सहमति हो सकती है लेकिन हमेशा यह स्थिति रहे ऐसा जरूरी नहीं’, सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के एक आरोपी के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने से इनकार करते हुए यह फैसला सुनाया. जस्टिस अनिरुद्ध बोस और संजय कुमार की बेंच ने अपने हालिया आदेश में कहा, ‘जब कोई एक पार्टनर इस तरह के रिश्ते को जारी रखने में अनिच्छा जाहिर करता है तो रिश्ता वैसा नहीं रह जाता जैसा वह शुरुआत में था.’
ताजा मामले में आरोपी/वर्तमान अपीलकर्ता शिकायतकर्ता के साथ रिश्ते में था जो बाद में खराब हो गया. दोनों पक्षकारों पर कई तरह के आरोप-प्रत्यारोप लगे. वर्तमान मामला प्रतिवादी द्वारा आरोपी व्यक्ति के खिलाफ दायर की गई FIR से संबंधित है. आरोपी के खिलाफ रेप, आपराधिक धमकी सहित भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) के कई प्रावधानों के साथ-साथ आईटी एक्ट, 2000 के प्रावधान भी लागू किये गए.
आरोपी ने एफआईआर रद्द करने के लिए पहले कर्नाटक हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, वहां से राहत न मिलने पर उसने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि प्रतिवादी ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि पूर्व में उसके खिलाफ ब्लैकमेलिंग/जबरन वसूली की शिकायत दर्ज कराई गई थी.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि FIR में लगाए गए आरोपों को स्वाभाविक रूप से असंभव नहीं माना जा सकता. प्रासंगिक रूप से यह (हरियाणा राज्य एवं अन्य बनाम भजन लाल एवं अन्य) को रद्द करने का एक आधार है.
कोर्ट ने आगे कहा कि सहमति से बनाया गया संबंध बलात्कार के अपराध को जन्म नहीं दे सकता, जैसा कि शंभू खरवार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य, 2022 आईएनएससी 827 के मामले में माना गया. हालांकि अगले ही पल कोर्ट ने पाया कि प्रतिवादी के आरोप उसकी ओर से निरंतर सहमति प्रदर्शित नहीं करते.
कोर्ट ने ऊपर लिखे आरोप दोहराए. इसके आधार पर कोर्ट ने राय दी कि FIR रद्द करने का औचित्य साबित करने के लिए संबंध सहमतिपूर्ण नहीं रहे. कोर्ट ने आगे कहा कि हमें ऐसा लगता है कि जिस शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई उसमें कथित अपराधों का ठीक से जिक्र नहीं हीं.
इसके बाद कोर्ट ने विवादित आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया और निर्देश दिया कि भविष्य में सभी संबंधित न्यायालयों में लंबित कार्यवाही में प्रतिवादी की पहचान छिपाने के लिए उचित कदम उठाए जाएं.
मामला- राजकुमार बनाम कर्नाटक राज्य