नईदिल्ली (ए)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) ने रविवार को कहा कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर देश भर में जश्न का माहौल भारत की शाश्वत आत्मा की एक निर्बाध अभिव्यक्ति और देश के पुनरुत्थान में एक नए चक्र की शुरुआत है. राष्ट्रपति ने प्राण प्रतिष्ठा से पहले रविवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे पत्र में यह बात कही. प्रधानमंत्री मोदी को लिखे दो पन्नों के पत्र में, राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘जैसा कि आपने अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान पर बने नए मंदिर में प्रभु श्री राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के लिए जाने के वास्ते खुद को तैयार किया है. मैं केवल उस अद्वितीय सभ्यतागत यात्रा की कल्पना कर सकती हूं, जो पवित्र परिसर में आपके द्वारा उठाए गए प्रत्येक कदम के साथ पूरी होगी.”
राष्ट्रपति के पत्र को एक्स पर रीपोस्ट करते हुए पीएम मोदी ने लिखा है कि अयोध्या धाम में राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा के पावन अवसर पर शुभकामनाओं के लिए आपका बहुत-बहुत आभार. मुझे विश्वास है कि यह ऐतिहासिक क्षण भारतीय विरासत एवं संस्कृति को और समृद्ध करने के साथ ही हमारी विकास यात्रा को नए उत्कर्ष पर ले जाएगा.
मोदी द्वारा किए गए 11 दिवसीय कठोर ‘अनुष्ठान’ का उल्लेख करते हुए मुर्मू ने कहा कि यह न केवल एक पवित्र अनुष्ठान है, बल्कि भगवान राम के प्रति त्याग और समर्पण का एक सर्वोच्च आध्यात्मिक कार्य भी है. राष्ट्रपति ने हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए कहा कि अयोध्या धाम में प्रभु श्री राम के भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर देश भर में जश्न का माहौल भारत की शाश्वत आत्मा की एक निर्बाध अभिव्यक्ति है.
उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी भाग्यशाली हैं कि हम अपने राष्ट्र के पुनरुत्थान में एक नए चक्र की शुरुआत देख रहे हैं.” राष्ट्रपति ने कहा कि भगवान राम के साहस, करुणा और कर्तव्य पर निरंतर ध्यान जैसे सार्वभौमिक मूल्यों को इस भव्य मंदिर के माध्यम से लोगों के और करीब लाया जाएगा. प्रभु श्री राम हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत के सर्वोतम आयामों के प्रतीक हैं. वे बुराई के विरुद्ध निरंतर युद्धरत अच्छाई का आदर्श प्रस्तुत करते हैं.
राम-कथा के आदर्शों से राष्ट्र-निर्माताओं को प्रेरणा मिली
पत्र में राष्ट्रपति ने लिखा है कि हमारे राष्ट्रीय इतिहास के अनेक अध्याय, प्रभु श्री राम के जीवन-चरित और सिद्धांतों से प्रभावित रहे हैं तथा राम-कथा के आदर्शों से राष्ट्र-निर्माताओं को प्रेरणा मिली है. गांधीजी ने बचपन से ही रामनाम का आश्रय लिया और उनकी अंतिम सांस तक रामनाम उनकी जिह्वा पर रहा. गांधी जी ने कहा था ‘यद्यपि मेरी बुद्धि और हृदय ने, बहुत पहले ही, ईश्वर के सर्वोच्च गुण और नाम को, सत्य के रूप में अनुभव कर लिया था, मैं सत्य को राम के नाम से ही पहचानता हूं. मेरी अग्नि-परीक्षा के सबसे कठिन दौर में राम का नाम ही मेरा रक्षक रहा है और अब भी वह नाम ही मेरी रक्षा कर रहा है. प्रभु श्री राम द्वारा साहस, करुणा और अटूट कर्तव्यनिष्ठा जैसे जिन सार्वभौमिक मूल्यों की प्रतिष्ठा की गई थी उन्हें इस भव्य मंदिर के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाया जा सकेगा.