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रामकथा की वैश्विक परंपरा

by Surendra Tripathi

मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम की महिमा भारतीय प्रायद्वीप सहित विश्व के अनेक देशों में व्याप्त है। विश्व के अनेक देशों के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पटल में हर देश की अपनी-अपनी रामायण परंपरा हैं, अलग-अलग संस्कृतियों, लोकजीवन, कहानी, किवदंतियों में रामायण विविध स्वरूपों में मिलती है।
रामायण और भगवान श्रीराम की कथा दुनियाभर में प्रसिद्ध है, इन देशों में आज भी प्रभु राम को बड़ी श्रद्धा से याद किया जाता है। रामायण, रामलीला का मंचन और विभिन्न स्वरूपों में रामकथा पढ़ी, लिखी और गायी जाती है। रामायण और राम की कथा तीन सौ से लेकर एक हजार तक की संख्या में विविध स्वरूपों में मिलती है, जिनमें सबसे प्राचीन मानी जाती है वाल्मीकि रामायण।
छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति की नगरी रायगढ़ में 1 जून से 3 जून तक राष्ट्रीय रामायण महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस आयोजन में देश के अलग-अलग राज्यों के साथ ही दक्षिण पूर्वी एशिया के दो देश कंबोडिया और इंडोनेशिया ने रामायण की परंपरा के विविध स्वरूपों की झलक देखने को मिलेगी। महोत्सव में अरण्यकाण्ड पर आधारित विशेष प्रस्तुति होगी।
भारत के अलावा प्रमुख रूप नेपाल, कंबोडिया, इंडोनेशिया और थाईलैंड को छत्तीसगढ़ में आयोजित रामायण महोत्सव में आमंत्रित किया गया है। इन देशों के जनजीवन में रामायण और रामकथा की गहरी छाप है।
‘रामकियन’
‘रामकियन’ थाईलैंड में रामायण का एक सर्वाधिक प्रचलित स्वरूप है, जिसे यहां की राष्ट्रीय पुस्तक का दर्जा प्राप्त है। प्राचीन समय में थाईलैंड की राजधानी ‘अयुत्या’ का नाम भी श्रीराम की राजधानी अयोध्या के नाम पर रखा गया था। ‘रामकियन’ के मुताबिक थाईलैंड के राजा स्वयं को राम के वंशज मानते थे, ईसा के बाद की शुरुआती शताब्दियों में कई राजाओं का नाम राम रहा है। थाईलैंड में रामायण की कथा आम जनमानस के बीच बहुत लोकप्रिय है। यहां रामायण के विभिन्न नाटकीय संस्करण और इस पर केन्द्रित नृत्य प्रचलित हैं। यहां राजा को राम की पदवी से जाना जाता था।
‘रिमकर’ या ‘रामकरती’
राम के असाधारण व्यक्तित्व और उनकी कीर्ति गाथा का एक स्वरूप कंबोडिया में बेहद प्रसिद्ध है। रामायण महाकाव्य पर आधारित कंबोडियाई महाकाव्य ‘रिमकर’ जिसे ‘रामकरती’ भी कहा जाता है, जो संस्कृति के रामायण महाकाव्य पर आधारित कंबोडियाई महाकाव्य कविता है। जिसका शाब्दिक अर्थ हिन्दी में ‘राम की महिमा’ या ‘राम कीर्ति’ है। यह अच्छाई और बुराई के संतुलन को दर्शाती है।
‘काकविन रामायण’
इंडोनेशिया की लोक परंपरा और यहां की संस्कृति में रामायण की गहरी छाप है। यहां जावा की प्राचीनतम कृति में रामायण को ‘काकविन रामायण’ कहा जाता है, जिसमें पारंपरिक संस्कृत को आदर्श रूप में प्रस्तुत किया गया है। इंडोनेशिया में काकविन का अर्थ महाकाव्य है, यहां की प्राचीन शास्त्रीय भाषा जावा में रचित महाकाव्यों में काकाविन रामायण की जगह सर्वाेपरि है, इस ग्रंथ में छब्बीस अध्याय हैं जिसमें राम के जन्म से लेकर लंका विजय, उनके अयोध्या लौटने और राज्याभिषेक तक सम्पूर्ण वर्णन मिलता है। इंडोनेशिया में 1973 में अंतर्राष्ट्रीय रामायण सम्मेलन का आयोजन किया गया था। यहां बड़ी संख्या में संरक्षित पांडुलिपियां इसकी लोकप्रियता को प्रमाणित करती हैं। अंगद के पिता बाली के नाम पर यहां एक द्वीप का नाम बाली है।
रामायण के प्रसंगों पर नाट्यमंचन
वियतनाम में रामायण के गहरे प्रभाव का प्रमाण मिलता है। वियतनाम में रामायण से जुड़े विभिन्न प्रसंगों के गायन और नाट्यमंचन की संस्कृति है। उल्लेखनीय है कि पहली से 16वीं सदी तक वियतनाम चंपा नगर के नाम से जाना जाता था, जहां हिंदू राजवंश का शासन था। वियतनाम के त्रा-किउ नामक स्थल से प्राप्त एक शिला लेख में महर्षि वाल्मीकि का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।

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