40
भिलाई। सेंट थॉमस कॉलेज, रूआबांधा, भिलाई के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग ने मशहूर पंडवानी गायिका, पद्मश्री उषा बारले के निवास पहुंच कर उनसे परिसंवाद किया। इस दौरान उषा बारले ने अपने जीवन के अनुभव बताए और विद्यार्थियों को जीवन में सफल होने के लिए अथक मेहनत व संघर्ष को सर्वोपरि बताया।
कॉलेज के प्रशासक डॉ जोशी वर्गीज ने विभाग के सभी सदस्यों को इस आयोजन के लिए शुभकामनाएं दी और कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एम.जी. रॉयमॉन ने आयोजन के लिए प्रोत्साहित किया। वहीं विभाग प्रमुख डॉ. रीमा देवांगन ने आयोजन की तैयारी में अपना विशिष्ट मार्गदर्शन दिया।
शुरुआत में सहायक प्राध्यापक मुहम्मद जाकिर हुसैन ने पद्मश्री उषा बारले का परिचय दिया। उसके बाद विभाग की ओर से उषा बारले को सम्मान स्वरूप पौधा व स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया।
परिसंवाद में सभी विद्यार्थियों ने पद्मश्री उषा बारले से प्रश्न पूछ अपनी जिज्ञासा शांत की। श्रीमती बारले ने पद्मश्री सम्मान समारोह के दौरान राष्ट्रपति भवन का अपना अनुभव बताया। वहां राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व अन्य गणमान्य लोगों को किए गए विशिष्ट अभिवादन पर उन्होंने कहा कि घर के बड़े बुजुर्गों से संस्कार मिला है, इसलिए वहां सबको अलग-अलग हाथ जोड़ने के बजाए एक साथ ससम्मान अभिवादन करना बेहतर लगा।
अपने जीवन संघर्ष का उल्लेख करते हुए पद्मश्री बारले ने कहा कि तीन साल की उम्र में बाल विवाह हुआ, गीत-संगीत से ध्यान हटवाने के लिए पिता ने डराने के इरादे से सूखे कुएं में भी फेंक दिया और आजीविका के लिए फेरी लगाकर फल-सब्जी भी बेचना पड़ा। इन सबके बीच पंडवानी गायन, पंथी नृत्य और दूसरी विधाओं में साधना चलती रही। उन्होंने कहा कि उनकी कला में निखार सिर्फ मेहनत और संघर्ष के बूते आया, जिसकी बदौलत आज यह सम्मान हासिल हुआ।
पद्मश्री बारले ने इस दौरान अपनी गुरु पद्म विभूषण डॉ. तीजन बाई को भी याद किया। उन्होंने स्टूडेंट के आग्रह पर पंडवानी और पंथी के कुछ पदों व प्रसंगों का प्रभावी प्रस्तुतिकरण भी किया। वहीं दिवंगत सांसद मिनी माता पर आधारित गीत भी सुनाए।
इस दौरान पद्मश्री उषा बारले ने कहा कि बांस गीत, भरथरी, सुआ नृत्य जैसी विधाएं विलुप्त होने के कगार पर है और वह चाहती हैं कि राज्य सरकार अगर उन्हें स्कूल खोल कर दे दे तो वह नई पीढ़ी को पंथी और पंडवानी निःशुल्क सिखाएंगी, जिससे यह विधा संरक्षित रहे। इस दौरान पद्मश्री उषा के पति अमरदास बारले भी मौजूद थे।
अंत में धन्यवाद ज्ञापन सहायक प्राध्यापिका छवि किरण साहू ने दिया। सहायक प्राध्यापक अमिताभ शर्मा ने आयोजन का समन्वय किया। मीडिया मंच के अध्यक्ष यशराज यादव ने कार्यक्रम का संचालन किया एवं सहायक सचिव कनिष्क मिश्रा के अलावा आदित्य एस कुमार, सृष्टि दुबे प्रांजल तिवारी एवं सेंगल तिर्की ने भी अपना विशिष्ट योगदान दिया।
भिलाई। सेंट थॉमस कॉलेज, रूआबांधा, भिलाई के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग ने मशहूर पंडवानी गायिका, पद्मश्री उषा बारले के निवास पहुंच कर उनसे परिसंवाद किया। इस दौरान उषा बारले ने अपने जीवन के अनुभव बताए और विद्यार्थियों को जीवन में सफल होने के लिए अथक मेहनत व संघर्ष को सर्वोपरि बताया।
कॉलेज के प्रशासक डॉ जोशी वर्गीज ने विभाग के सभी सदस्यों को इस आयोजन के लिए शुभकामनाएं दी और कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एम.जी. रॉयमॉन ने आयोजन के लिए प्रोत्साहित किया। वहीं विभाग प्रमुख डॉ. रीमा देवांगन ने आयोजन की तैयारी में अपना विशिष्ट मार्गदर्शन दिया।
शुरुआत में सहायक प्राध्यापक मुहम्मद जाकिर हुसैन ने पद्मश्री उषा बारले का परिचय दिया। उसके बाद विभाग की ओर से उषा बारले को सम्मान स्वरूप पौधा व स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया।
परिसंवाद में सभी विद्यार्थियों ने पद्मश्री उषा बारले से प्रश्न पूछ अपनी जिज्ञासा शांत की। श्रीमती बारले ने पद्मश्री सम्मान समारोह के दौरान राष्ट्रपति भवन का अपना अनुभव बताया। वहां राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व अन्य गणमान्य लोगों को किए गए विशिष्ट अभिवादन पर उन्होंने कहा कि घर के बड़े बुजुर्गों से संस्कार मिला है, इसलिए वहां सबको अलग-अलग हाथ जोड़ने के बजाए एक साथ ससम्मान अभिवादन करना बेहतर लगा।
अपने जीवन संघर्ष का उल्लेख करते हुए पद्मश्री बारले ने कहा कि तीन साल की उम्र में बाल विवाह हुआ, गीत-संगीत से ध्यान हटवाने के लिए पिता ने डराने के इरादे से सूखे कुएं में भी फेंक दिया और आजीविका के लिए फेरी लगाकर फल-सब्जी भी बेचना पड़ा। इन सबके बीच पंडवानी गायन, पंथी नृत्य और दूसरी विधाओं में साधना चलती रही। उन्होंने कहा कि उनकी कला में निखार सिर्फ मेहनत और संघर्ष के बूते आया, जिसकी बदौलत आज यह सम्मान हासिल हुआ।
पद्मश्री बारले ने इस दौरान अपनी गुरु पद्म विभूषण डॉ. तीजन बाई को भी याद किया। उन्होंने स्टूडेंट के आग्रह पर पंडवानी और पंथी के कुछ पदों व प्रसंगों का प्रभावी प्रस्तुतिकरण भी किया। वहीं दिवंगत सांसद मिनी माता पर आधारित गीत भी सुनाए।
इस दौरान पद्मश्री उषा बारले ने कहा कि बांस गीत, भरथरी, सुआ नृत्य जैसी विधाएं विलुप्त होने के कगार पर है और वह चाहती हैं कि राज्य सरकार अगर उन्हें स्कूल खोल कर दे दे तो वह नई पीढ़ी को पंथी और पंडवानी निःशुल्क सिखाएंगी, जिससे यह विधा संरक्षित रहे। इस दौरान पद्मश्री उषा के पति अमरदास बारले भी मौजूद थे।
अंत में धन्यवाद ज्ञापन सहायक प्राध्यापिका छवि किरण साहू ने दिया। सहायक प्राध्यापक अमिताभ शर्मा ने आयोजन का समन्वय किया। मीडिया मंच के अध्यक्ष यशराज यादव ने कार्यक्रम का संचालन किया एवं सहायक सचिव कनिष्क मिश्रा के अलावा आदित्य एस कुमार, सृष्टि दुबे प्रांजल तिवारी एवं सेंगल तिर्की ने भी अपना विशिष्ट योगदान दिया।