मंगलवार 18 जनवरी को आमापारा बालोद स्थित आत्मज्ञान भवन में प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज़ संस्था के संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा की स्मृति दिवस का कार्यक्रम रखा गया, जिसमें संस्था की संचालिका बी.के विजयलक्ष्मी दीदी व बहनों तथा संस्था में आने वाले सभी भाई बहनों ने मिलकर माल्यार्पण कर भावपूर्ण श्रद्धांजली अर्पित किए जिसमें राजयोगिनी विजयलक्ष्मी दीदी ने ब्रह्मा बाबा की जीवन कहानी बताते हुए कहा कि जब से ब्रह्मा बाबा को ज्ञात हुआ कि पुरानी दुनिया जाने वाली हैं नयी स्वर्णिम दुनिया आने वाली हैं ऐसी दुनिया बनाने के निमित्त मुझे बनना हैं तब से बाबा ने संकल्प, बोल और कर्म तन, मन, और धन ईश्वरीय सेवा में समर्पित कर दिया। उन्हें लगने लगा कि जो कर्म मैं करूंगा मुझे देख सब करेंगे। इस आधार पर बाबा ने अपने उपर बहुत ध्यान रखा और अनेकों को इस ईश्वरीय सेवाओं में सहभागी बनाया। आज विश्व में 13 लाख से भी अधिक भाई बहन नियमित रूप से पढ़ाई पढ़ कर ज्ञान को जीवन में धारण कर आगे बढ़ रहें हैं। ब्रह्माकुमारी राजयोगिनी सरिता दीदी ने बताया कि ब्रह्मा बाबा का जन्म सन् 1876 में सिंध हैदराबाद में हुआ। उनका लौकिक नाम दादा लेखराज था। बाबा बचपन से ही आज्ञाकारी, व्यवहार कुशल सबके साथ मिलनकार, भक्ति भावन में निपूर्ण थे। उन्होनें अपने जीवन में 12 गुरू किए। सन् 1937 में स्वयं निराकार परमपिता परमात्मा ने दादा लेखराज के शरीर का आधार ले संस्था की स्थापना किए और उनका नाम रखा प्रजापिता ब्रह्मा बाबा। उनके अंतिम बोल निराकारी, निर्विकारी, निरअहंकारी थे। उन्होनें 18 जनवरी सन् 1969 में अपनें पुराने देह का त्याग किया इसलिए 18 जनवरी को पूरे विश्व में स्मृति दिवस सो समर्थी दिवस के रूप में मनाया जाता हैं।
ब्रह्माकुमारी राजयोगिनी नेहा बहन ने ब्रह्मा बाबा की विशेषताओं के बारे में बताते हुए कहा कि ब्रह्मा बाबा का पहला कदम समर्पणता हैं। उन्होनें धन के साथ मन और बुद्धि का भी सम्पूर्ण समर्पण किया। उनके संकल्प में सर्व आत्माओं के प्रति शुभ भावना, बोल मे सर्व को उमंग उत्साह दिलाने के बोल, कर्म भी श्रेेष्ठ और संबंध, संपर्क में सबके साथ स्नेह का व्यवहार किया। उन्होनें एक बल एक भरोसे के आधार पर हर कार्य सम्पन्न किया।
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