नेपाल के प्रधानमंत्री ओली बोले :
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने रविवार को कहा है कि वह कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख भारत से वापस लेकर रहेंगे. नेपाल की नेशनल एसेंबली के सत्र को संबोधित करते हुए ओली ने कहा, “महाकाली नदी के पूर्व में स्थित कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख सुगौली संधि के तहत नेपाल का हिस्सा हैं. हम भारत के साथ कूटनीतिक वार्ता के जरिए इन इलाकों को वापस लेंगे ओली का ये बयान ऐसे वक्त में आया है, जब नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञावली भारत के दौरे पर आने वाले हैं. हाल में भारत के कई अधिकारियों के दौरे हुए हैं और दोनों देशों के रिश्ते सामान्य होते नजर आ रहे थे. ओली ने सांसदों को बताया कि नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञावली के भारत दौरे में भी सीमा विवाद के मुद्दे को उठाया जाएगा. ओली ने रविवार को कहा, “हमने अंतरराष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में काफी प्रगति की है. मैं भारत का सच्चा दोस्त बनना चाहता हूं. लेकिन नेपाल भारत के साथ बराबरी पर आधारित दोस्ती चाहता है. विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ज्ञावली 14 जनवरी को भारत के दौरे पर जाएंगे. ज्ञावली के दौरे में सीमा विवाद समेत कई अन्य मुद्दों पर बातचीत होगी. ये बहुत जरूरी है क्योंकि हम भारत के साथ बेहतर द्विपक्षीय संबंध स्थापित करना चाहते हैं.”नेपाल की सरकार ने पिछले साल कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को नेपाल का हिस्सा दिखाते हुए नया नक्शा जारी किया था. इसे लेकर भारत सरकार ने कड़ी आपत्ति जताई थी और इसे एकतरफा कदम करार दिया था. भारत ने कहा था कि नेपाल कृत्रिम तरीके से क्षेत्रीय विस्तार नहीं कर सकता है. ओली ने इससे पहले कई बयानों में ये भी कहा था कि नेपाल का नया नक्शा जारी करने के बाद से ही उनकी सरकार को गिराने की कोशिश की जा रही है. हालांकि, साल 2020 के अंत में भारत के कई मंत्रियों और शीर्ष अधिकारियों ने नेपाल का दौरा किया. भारत के विदेश सचिव हर्ष वर्धन श्रृंगला नवंबर महीने में नेपाल गए थे. श्रृंगला ने नेपाल के प्रधानमंत्री ओली और अन्य कई शीर्ष नेताओं से मुलाकात की. कहा जा रहा था कि इन दौरों के बाद से भारत-नेपाल के बीच तनाव कम हुआ है. ओली फिलहाल नेपाल में राजनीतिक संकट में घिरे हुए हैं. दिसंबर महीने में, नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने ओली के सुझाव पर संसद भंग कर दी थी और अप्रैल-मई में मध्यावधि चुनाव कराने का ऐलान किया था. नेपाल के विपक्षी दल और ओली की पार्टी का विरोधी धड़ा इस कदम को असंवैधानिक और तानशाही करार दे रहा है. 20 दिसंबर को नेपाल की प्रतिनिधि सभा भंग होने के बाद ओली ने कहा था, केपी शर्मा ओली लोकप्रिय हैं या नहीं, इसका फैसला जनता करेगी. हम लोगों के पास फिर से जाएंगे और बहमत हासिल करेंगे. हम पूरी जिम्मेदारी के साथ मध्यावधि चुनाव कराएंगे. ओली ने संसद भंग करने के अपने फैसले का बचाव किया. ओली ने कहा कि प्रतिनिधि सभा कानूनी ढंग से भंग की गई और इसमें सभी प्रक्रियाओं का पालन किया गया. उन्होंने कहा कि विपक्षी दल और मीडिया इस फैसले के खिलाफ बड़ी-बड़ी राजनीतिक रैलियां निकाल रहे हैं लेकिन उनमें सुप्रीम कोर्ट जाने की हिम्मत नहीं है. ओली ने कहा, नेपाल में एक ऐसा धड़ा है जो उनकी सरकार को उखाड़ फेंकना चाहता है और देश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर रहा है. ओली ने कहा, “कुछ लोग अपने बच्चों को दार्जिलिंग के सेंट जोसेफ स्कूल और ऑक्सफोर्ड भेजते हैं लेकिन गरीब नेपालियों के बच्चों को शिक्षित और ताकतवर नहीं होने देना चाहते हैं. उनकी सोच अभी भी सामंतवादी है और वे वंचित तबके के लोगों को संसद तक नहीं पहुंचने देना चाहते हैं.”