Home देश-दुनिया उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ बोले-भाषाओं के आधार पर विभाजन बर्दाश्त नहीं कर सकता भारत

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ बोले-भाषाओं के आधार पर विभाजन बर्दाश्त नहीं कर सकता भारत

by admin

नईदिल्ली(ए)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को कहा कि भारत दुनिया का एक महत्वाकांक्षी राष्ट्र है और वह भाषा के मुद्दे पर विभाजन बर्दाश्त नहीं कर सकता। उन्होंने लोगों से देश के भविष्य की भलाई पर विचार करने और ‘‘इस तूफान से उबारने” की अपील की।

उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को अक्षरशः लागू करने की जोरदार वकालत करते हुए कहा कि यह शिक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव लाएगी, जिससे देश के विकास को गति मिलेगी। धनखड़ पांडिचेरी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी हैं। उन्होंने किसी का नाम लिए बिना इस बात पर अफसोस जताया कि भाषाओं को लेकर विरोध हो रहा है।

विश्वविद्यालय में धनखड़ ने कहा, ‘‘पिछले दशक में अभूतपूर्व विकास के परिणामस्वरूप भारत दुनिया का सबसे महत्वाकांक्षी राष्ट्र है। हम भाषाओं को लेकर कैसे विभाजित हो सकते हैं?” उन्होंने कहा कि दुनिया में कोई भी देश भाषाओं के मामले में भारत जितना समृद्ध नहीं है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि संस्कृत का वैश्विक महत्व है और तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, ओडिया, मराठी, पाली, प्राकृत, बंगाली और असमिया के साथ 11 शास्त्रीय भाषाएं हैं।

धनखड़ ने कहा, ‘‘संसद में सदस्यों को 22 भाषाओं में बोलने की अनुमति है। हमारी भाषाएं समावेशिता का संकेत देती हैं। सनातन एक ही महान उद्देश्य के लिए एकजुट होना सिखाता है।” उन्होंने कहा, ‘‘हमारे गंतव्य को देखें, भविष्य को ध्यान में रखें और हमें तूफान से उबरना चाहिए।” एनईपी पर, उपराष्ट्रपति ने इसे नहीं लागू करने वाले राज्यों से कहा कि वे नीति को लागू करें, क्योंकि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति ‘‘महत्वपूर्ण बदलाव” लाएगी।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं उन राज्यों से अपील करता हूं, जिन्होंने इसे नहीं अपनाया है और जो इसे लागू कर रहे हैं, वे नीति में दी गई बातों को समझें। कार्यशालाओं के माध्यम से छात्रों को नीति के लाभ के बारे में पूरी तरह से अवगत कराएं।” धनखड़ ने कहा कि एनईपी दुनिया की सबसे अच्छी नीति है, क्योंकि यह छात्रों को अपनी प्रतिभा और क्षमता का पूरा दोहन करने के अलावा कई पाठ्यक्रमों को आगे बढ़ाने और समय का अधिकतम उपयोग करने का अवसर देती है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक नेतृत्व को यह ध्यान में रखना चाहिए कि टकराव के लिए कोई जगह नहीं है और व्यवधान और अशांति वह तंत्र नहीं है जो संविधान निर्माताओं ने हमें सिखाया है।

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