नईदिल्ली(ए)। सुप्रीम कोर्ट ने वायुसेना की एक महिला अधिकारी को सेवा से मुक्त करने पर रोक लगा दी है। विंग कमांडर निकिता पांडे वायुसेना की एक अधिकारी हैं, जिन्होंने ऑपरेशन बालाकोट और ऑपरेशन सिंदूर जैसे प्रमुख सैन्य अभियानों में हिस्सा लिया था। उन्होंने 13.5 साल तक सेवा की है, लेकिन वायुसेना ने उन्हें स्थायी कमीशन नहीं दिया। इसका मतलब है कि उनकी सेवा का समय समाप्त हो सकता था, जबकि स्थायी कमीशन मिलने पर अधिकारी की सेवा लंबी होती है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने विंग कमांडर निकिता पांडे की याचिका पर केंद्र और भारतीय वायुसेना से जवाब भी मांगा है। विंग कमांडर ने स्थायी कमीशन न दिए जाने को भेदभावपूर्ण बताया है। पीठ ने भारतीय वायुसेना को पेशेवर बल बताया और कहा कि सेवा में अनिश्चितता ऐसे अधिकारियों के लिए अच्छी नहीं है। पीठ ने विंग कमांडर पांडे को अगले आदेश तक सेवा से मुक्त न करने का आदेश दिया और सुनवाई 6 अगस्त के लिए स्थगित कर दी।
सैनिकों की वजह से ही हम रात को सो पाते हैं
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि हमारी वायुसेना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संगठनों में से एक है। अधिकारी बहुत सराहनीय हैं। उन्होंने जैसा समन्वय दिखाया है, वह बेमिसाल है। इसलिए हम हमेशा उन्हें सलाम करते हैं। वे देश के लिए बड़ी संपत्ति हैं। एक तरह से वे देश हैं। उनकी वजह से ही हम रात को सो पाते हैं।

अनिश्चितता की भावना सशस्त्र बलों के लिए अच्छी नहीं
पीठ ने कहा कि शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) अधिकारियों के लिए कठिन जीवन उनकी भर्ती के बाद से ही शुरू हो जाता है। उन्हें स्थायी कमीशन देने के लिए 10 या 15 साल बाद कुछ प्रोत्साहन देने की बात कही जाती है। न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि अनिश्चितता की यह भावना सशस्त्र बलों के लिए अच्छी नहीं हो सकती। यह एक आम आदमी का सुझाव है, क्योंकि हम विशेषज्ञ नहीं हैं। न्यूनतम मानदंडों पर कोई समझौता नहीं हो सकता।
सशस्त्र बलों में सभी अधिकारियों को शामिल करने की क्षमता हो
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि सशस्त्र बलों में सभी एसएससी अधिकारियों को स्थायी कमीशन में समायोजित करने की क्षमता होनी चाहिए। महिला अधिकारियों ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। लंबे समय के बाद महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन की कमी के कारण शॉर्ट सर्विस कमीशन की भर्ती हो रही है। यही कारण है कि 10, 12 और 15 साल के बाद आपसी प्रतिस्पर्धा पैदा होती है। आपके पास उतने एससीसी अधिकारियों को लेने की नीति हो सकती है, जिन्हें स्थायी आयोग में समायोजित किया जा सके, यदि वे उपयुक्त पाए जाते हैं। यदि आपके पास 100 एससीसी अधिकारी हैं, तो आपके पास उनमें से 100 को स्थायी आयोग में लेने की क्षमता होनी चाहिए।
13.5 साल तक की सेवा
महिला अधिकारी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि निकिता एक विशेषज्ञ लड़ाकू नियंत्रक हैं। उन्होंने एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली (आईएसीसीएस) में एक विशेषज्ञ के रूप में भाग लिया था। उनको ऑपरेशन सिंदूर और ऑपरेशन बालाकोट में तैनात किया गया था। महिला अधिकारी ने 13.5 वर्ष से अधिक सेवा की है, लेकिन 2019 की एक नीति के तहत उसे स्थायी कमीशन देने से इनकार कर दिया गया और उसे एक महीने के बाद अपनी सेवा समाप्त करने के लिए मजबूर किया। वह देश में विशेषज्ञ वायु लड़ाकू नियंत्रकों की मेरिट सूची में दूसरे स्थान पर हैं।
केंद्र और वायुसेना ने कहा- चयन बोर्ड ने अयोग्य घोषित किया
पीठ ने केंद्र और भारतीय वायुसेना की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से अधिकारी को स्थायी कमीशन न देने का कारण पूछा। भाटी ने बताया कि वह स्वयं सशस्त्र बलों की पृष्ठभूमि से हैं, इसलिए वे ऐसे अधिकारियों की स्थिति से परिचित हैं, लेकिन उन्होंने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को चयन बोर्ड द्वारा अयोग्य पाया गया था। अधिकारी ने कोई प्रतिवेदन दाखिल किए बिना सीधे सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। दूसरा चयन बोर्ड उनके मामले पर विचार करेगा।
सेना की संरचना का हिस्सा है प्रक्रिया
वायु सेना की वकील ने कहा कि भारतीय वायुसेना में एक पिरामिडनुमा संरचना बनाई गई है। इसके तहत कुछ अधिकारियों को 14 वर्ष की सेवा के बाद सेवा से बाहर कर दिया जाता है और उनके स्थान पर नए अधिकारी आते हैं। आमतौर पर स्थायी कमीशन के लिए विचार किए गए 100 अधिकारियों में से लगभग 90-95 प्रतिशत अधिकारी फिट पाए जाते हैं, लेकिन कुछ केवल तुलनात्मक योग्यता के कारण बाहर हो जाते हैं। यहां सीमित संख्या में चौकियां हैं। यह बड़ी पिरामिड संरचना है।