नई दिल्ली (ए)। भारत दिसंबर में सैटेलाइटों को वांछित कक्षा में पहुंचाने के लिए अपने घरेलू इलेक्ट्रिक थ्रस्टर का परीक्षण करेगा। यह ऐसी तकनीक है जो अंतरिक्ष यान को हल्का और अधिक शक्तिशाली बनाती है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि स्वदेशी रूप से विकसित विद्युत प्रणोदन का उपयोग करने वाला पहला प्रौद्योगिकी प्रदर्शन सैटेलाइट (टीडीएस-01) दिसंबर में प्रक्षेपित किया जाएगा।
सोमनाथ आकाशवाणी में सरदार पटेल लेक्चर में बोल रहे थे। टीडीएस-01 स्वदेशी रूप से निर्मित ट्रैवलिंग वेव ट्यूब एम्प्लीफायर (टीडब्ल्यूटीए) का भी प्रदर्शन करेगा, जो सैटेलाइटों पर विभिन्न संचार और माइक्रोवेव रिमोट सेंसिंग पेलोड का अभिन्न अंग हैं। चार टन वजनी संचार सैटेलाइट में दो टन से अधिक तरल ईंधन होता है, जिसका उपयोग प्रक्षेपण कक्षा से वांछित भूस्थिर कक्षा तक उसे ले जाने के लिए थ्रस्टरों को प्रज्वलित करने में किया जाता है।
ईपीएस में सैटेलाइट को अपनी कक्षा में पहुंचने में लगता है अधिक समय
सोमनाथ ने कहा, ईपीएस का दूसरा पहलू यह है कि केमिकल प्रणोदन की तुलना में इसमें कम प्रणोद उत्पन्न होता है और सैटेलाइट को अपनी इच्छित कक्षा तक पहुंचने में अधिक समय लगता है। सोमनाथ ने कहा कि विद्युत प्रणोदन के साथ एकमात्र समस्या यह है कि इसका थ्रस्ट बहुत कम है। प्रक्षेपण कक्षा से भू-कक्षा तक पहुंचने में लगभग तीन महीने लगेंगे, जबकि केमिकल थ्रस्टरों में एक सप्ताह लगेगा।
-
- ईपीएस का पहली बार उपयोग दक्षिण एशिया उपग्रह जीसैट-9 को शक्ति प्रदान करने के लिए किया गया था, जिसे इसरो ने मई 2017 में प्रक्षेपित किया था। हालांकि, ईपीएस पूरी तरह से रूस से आयात किया गया था।
वजन दो टन से होगा कम पर शक्ति चार टन के सैटेलाइट जितनी
इसरो प्रमुख ने कहा कि चार टन वजनी सैटेलाइट 2-2.5 टन ईंधन ले जाता है। इलेक्ट्रिक प्रणोदन के मामले में ईंधन की आवश्यकता घटकर मात्र 200 किलोग्राम रह जाती है। उन्होंने कहा कि केमिकल के स्थान पर विद्युत प्रणोदन प्रणाली (ईपीएस) ईंधन के रूप में आर्गन जैसी प्रणोदक गैसों का उपयोग करती है, जिसे सौर ऊर्जा का उपयोग करके आयनित किया जाता है। उन्होंने कहा कि जब ईंधन टैंक का आकार कम हो जाता है तो हर परिधीय का आकार भी कम हो जाता है।
निसार अगले साल किया जाएगा लॉन्च
नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (निसार) सैटेलाइट के बारे में सोमनाथ ने कहा कि रडार एंटीना रिफ्लेक्टर पर काम पूरा हो चुका है। महत्वपूर्ण घटक को कैलिफोर्निया स्थित नासा की जेट प्रोपल्शन प्रयोगशाला से इसरो के अंतरिक्ष यान एकीकरण और परीक्षण सुविधा, बंगलूरू पहुंचा दिया गया है। उन्होंने कहा कि रडार एंटीना रिफ्लेक्टर को सैटेलाइट के साथ एकीकृत करने में लगभग दो महीने का समय लगेगा। हम इसे फरवरी में लॉन्च करने का कार्यक्रम तय करेंगे।