नई दिल्ली(ए)। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि न्याय प्रणाली पुलिस थानों से लेकर अदालतों तक दिव्यांग बच्चों की कमजोरियों को समझे और उन पर कार्रवाई करे।
दिव्यांग व्यक्तियों के सामने आने वाली चुनौतियां भौतिक पहुंच के मुद्दों से कहीं अधिक हैं। उन्हें उन सामाजिक पूर्वाग्रहों के अलावा रूढि़यों तथा गलत धारणाओं से भी निपटना होगा, जो जीवन के लगभग हर पहलू में व्याप्त हैं। सीजेआई ने बाल संरक्षण पर नौवें वार्षिक राष्ट्रीय हितधारक परामर्श के अवसर पर यह बात कही।
अदालतों तक की न्याय प्रणाली इन बच्चों की कमजोरियों को समझे
दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन सुप्रीम कोर्ट की किशोर न्याय समिति के तत्वावधान में यूनिसेफ के सहयोग से किया गया था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि पुलिस थानों से लेकर अदालतों तक की न्याय प्रणाली इन बच्चों की बढ़ती हुई कमजोरियों को समझे और उस पर कार्रवाई करे।
जब हम किशोर न्याय के बारे में बात करते हैं, खासकर दिव्यांग बच्चों के संदर्भ में, तो हम अंतर्संबंध की अवधारणा को नजरअंदाज नहीं कर सकते। दिव्यांगता अक्सर लिंग, जाति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और जातीयता जैसी अन्य पहचानों के साथ जुड़ती है। इससे बच्चों के साथ होने वाले भेदभाव को बढ़ावा मिलता है। अंतर्संबंध का सिद्धांत इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे कई तरह की पहचान भेदभाव का अनुभव कराने के लिए एक दूसरे से मिली होती हैं।
बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी
बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी : मंत्रीमहिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने शनिवार को क्षमता निर्माण के महत्व और ऑनलाइन धोखाधड़ी और साइबर अपराधों में नाबालिगों की संलिप्तता जैसे मुद्दों के समाधान पर जोर दिया।
बाल संरक्षण पर नौवें वार्षिक राष्ट्रीय हितधारक परामर्श में उन्होंने कहा कि बच्चे, विशेषकर दिव्यांग बच्चे सबसे अधिक असुरक्षित हैं। समाज और सरकार के रूप में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारी