नई दिल्ली(ए)। कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा है कि ‘भारत माता की जय’ के नारे से सिर्फ सद्भाव बढ़ता है, कभी वैमनस्य नहीं फैलता। कोर्ट ने विभिन्न धर्मों और समूहों के बीच वैमनस्य फैलाने वाले भाषण या गतिविधि से संबंधित आईपीसी की धारा-153ए के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए इसमें व कुछ और धाराओं में पांच लोगों के विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी रद्द कर दी।
कोर्ट ने कहा, ‘ऐसे मामले में जांच जारी रखने की इजाजत का मतलब प्रथम दृष्टया भारत माता की जय के नारे लगाने के मामले में जांच की अनुमति देना होगा। जबकि इस नारे को किसी भी तरह धर्मों और समूहों के बीच वैमनस्यता या शत्रुता बढ़ाने वाला नहीं माना जा सकता।’ हाई कोर्ट के जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने 20 सितंबर को दिए आदेश में धारा-153ए की व्याख्या वाले सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व फैसलों का हवाला दिया। कहा, ‘मौजूदा मामला इस धारा के दुरुपयोग का अच्छा उदाहरण है।’
केस रद्द कराने की मांग लेकर हाई कोर्ट पहुंचे पांच याचिकाकर्ताओं का कहना था कि नौ जून को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ लेने के बाद रात 8.45 से 9.15 के बीच हरीश, नंद कुमार, सुभाष और किशन कुमार समारोह से लौट रहे थे। जब वे दक्षिण कन्नड़ जिले की उल्लाल तालुका में बोलीयार ग्राम के समादान बार पहुंचे तो 25 लोगों ने उन पर हमला कर दिया, कहा- ‘वे भारत माता की जय के नारे कैसे लगा रहे हैं।’ उन पर चाकू से भी वार हुआ।
उसी रात 11 बजे 23 लोगों के विरुद्ध घटना की एफआईआर दर्ज कराई गई। चोटों के कारण वे लोग अस्पताल गए और पुलिस ने रात 12 बजे वहीं उनका बयान दर्ज किया। अगले दिन सुबह पीके अब्दुल्ला नामक व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई, जिसमें कहा कि याचिकाकर्ता सुरेश, विनय कुमार, सुभाष, रंजन और धनंजय ने उसे धमकी दी और कहा कि वह देश छोड़ दे।