नई दिल्ली (ए)। जगदीप धनखड़ ने कहा कि क्या हम संसद में अंशकालिक हैं? संसद के विवेक का अक्षम्य अपमान हैं। मैं शब्दों से परे स्तब्ध हूं। कृपया उन दिमागों से सावधान रहें जो जानबूझकर एक रणनीति के रूप में, कथा के माध्यम से, हमारे देश को नीचा दिखाने, हमारी संस्था को नीचा दिखाने, हमारी प्रगति को धूमिल करने की कोशिश करते हैं।
तीन नए आपराधिक कानूनों पर पी चिदंबरम की तीखी टिप्पणियों पर आपत्ति जताते हुए उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री के बयान को ‘अक्षम्य’ करार दिया और मांग की कि पूर्व केंद्रीय मंत्री को अपना ‘अपमानजनक और बदनाम करने वाला बयान वापस लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब सुबह मैंने एक प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक को दिए गए चिदम्बरम के साक्षात्कार को पढ़ा तो मैं शब्दों से परे चौंक गया, जिसमें उन्होंने कहा कि नए कानूनों का मसौदा अंशकालिक लोगों द्वारा तैयार किया गया था। क्या हम संसद में पार्ट टाइमर हैं? यह संसद के विवेक का अक्षम्य अपमान है।
जगदीप धनखड़ ने कहा कि क्या हम संसद में अंशकालिक हैं? संसद के विवेक का अक्षम्य अपमान हैं। मैं शब्दों से परे स्तब्ध हूं। कृपया उन दिमागों से सावधान रहें जो जानबूझकर एक रणनीति के रूप में, कथा के माध्यम से, हमारे देश को नीचा दिखाने, हमारी संस्था को नीचा दिखाने, हमारी प्रगति को धूमिल करने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कहा कि वे आलोचना के लिए आलोचना में लगे रहते हैं। मेरे पास इतने मजबूत शब्द नहीं हैं कि मैं इस तरह की कहानियों की निंदा कर सकूं। एक सांसद को अंशकालिक करार दिया जा रहा है…मैं इस मंच से उनसे अपील करता हूं कि कृपया इस अपमानजनक, और सांसदों के प्रति अत्यधिक अपमानजनक टिप्पणी को वापस लें। मुझे आशा है कि वह ऐसा करेगा।
पूर्व गृह मंत्री ने कहा कि दीर्घावधि में, तीन कानूनों को संविधान और आपराधिक न्यायशास्त्र के आधुनिक सिद्धांतों के अनुरूप लाने के लिए उनमें और बदलाव किए जाने चाहिए। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने ब्रिटिश काल के क्रमश: भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्थान ले लिया है।
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चिदंबरम ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘तथाकथित नए कानूनों का 90-99 फीसदी अंश कांट-छांट करने, नकल करने और इधर से उधर चिपकाने का काम है। यह काम मौजूदा तीन कानूनों में कुछ बदलाव करके किया जा सकता था लेकिन यह व्यर्थ कवायद बना दी गयी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हां, नए कानूनों में कुछ सुधार किए गए हैं और हम उनका स्वागत करते हैं। उन्हें संशोधन के रूप में पेश किया जा सकता था। दूसरी ओर, कई प्रतिगामी प्रावधान भी है। कुछ बदलाव प्रथम दृष्टया असंवैधानिक हैं।’’