नईदिल्ली(ए)। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को डॉक्टरों पर बढ़ते हमलों से रक्षा के लिए दिशानिर्देश बनाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से इनकार कर दिया। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि हर चीज की निगरानी करना कोर्ट का काम नहीं है। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला दिया और कहा कि ऐसे मामलों से संबंधित दिशानिर्देश पहले ही बनाए जा चुके हैं और याचिकाकर्ता अगर चाहें तो उचित कानूनी प्रक्रिया अपना सकते हैं।
बेंच ने कहा, आप सुप्रीम कोर्ट से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वह हर काम और गतिविधि पर नजर रखे। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने जब डॉक्टरों पर हो रहे हमलों का जिक्र किया, तो बेंच ने कहा, ये सभी घटनाएं बेहद दुर्भाग्यपूर्ण हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट यहां बैठकर हर एक घटना की निगरानी नहीं कर सकता।

याचिकाएं 2022 में दायर की गई थीं, जिनमें डॉक्टरों पर बढ़ते हमलों का जिक्र करते हुए उनकी सुरक्षा के लिए व्यापाक दिशानिर्देश बनाने की मांग की गई थी।
एक याचिका में राजस्थान के दौसा में एक महिला डॉक्टर (गाइनोकॉलजिस्ट) की आत्महत्या की घटना की सीबीआई जांच की मांग की गई थी। महिला डॉक्टर ने उस समय आत्महत्या कर ली थी, जब डिलीवरी के दौरान ज्यादा खून बहने से एक मरीज की मौत हो गई और उसके बाद उन्हें भीड़ ने परेशान किया।
याचिकाकर्ताओं की तरफ से बुधवार को पेश एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट के 21 अक्टूबर 2022 के आदेश का जिक्र किया, जिसमें कोर्ट ने केंद्र सरकार और अन्य को नोटिस भेजकर जवाब मांगा था। एक वकील ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने चाहे कोई फैसला भी दिया हो, लेकिन जमीनी हालात नहीं बदले।
इस पर बेंच ने पूछा, तो फिर दोबारा दिशानिर्देश बनाने से क्या फायदा? जब वकील ने कहा कि संसद ने भी इस मुद्दे पर विचार किया है, तो बेंच ने कहा,यह काम संसद का है।
जब वकील ने दलील दी कि पुलिस को डॉक्टरों पर हमलों के मामलों से निपटने की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए, तो कोर्ट ने कहा, ये सब नीति से जुड़े मामले हैं। याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणनने कहा कि चिंता इस बात की है कि देशभर में कई थाने मरीज के उपचार के दौरान मौत होने पर डॉक्टरों के खिलाफ मामला दर्ज कर लेते हैं।
इस पर बेंच ने पूछा, ऐसा आम आरोप सभी थानों पर कैसे लगाया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट पहले ही अपने पुराने फैसले में दिशानिर्देश जारी कर चुका है और अगर उनका पालन नहीं किया जाता तो वह अवमानना मानी जाएगी। कोर्ट ने कहा, ऐसे आम निर्देश कैसे दिए जा सकते हैं?
उम्रकैद की सजा काट रहे चार दोषियों ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने दावा किया झारखंड हाईकोर्ट ने 2022 में उनकी सजा के खिलाफ अपीलों पर आदेश सुरक्षित रखे थे, लेकिन फैसला नहीं सुनाया। जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की बेंच ने उनकी याचिका पर विचार करने पर सहमति दी और हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से उन सभी मामलों पर सील बंद रिपोर्ट मांगी, जिनमें फैसला सुरक्षित रखा गया था, लेकिन दो महीने से अधिक समय तक फैसला नहीं सुनाया गया।
चारों दोषियों की ओर से वकील फौजिया शकील ने यह कहते हुए जमानत की मांग की कि उनमें से एक दोषी पिछले 16 साल से जेल में है। बेंच ने जमानत याचिका पर नोटिस जारी किया और सरकार से प्रतिक्रिया मांगी। याचिका में कहा गया, याचिकाकर्ता वर्तमान में रांची के हटवार स्थित बिरसा मुंडा केंद्रीय जेल में बंद हैं। उन्होंने झारखंड हाईकोर्ट में अपनी सजा को चुनौती देते हुए आपराधिक अपीलें दायर की थीं, और जबकि उनकी अपीलें सुनी गईं और 2022 में फैसले सुरक्षित रखे गए थे, हाई कोर्ट ने अब तक फैसले नहीं सुनाए हैं, जबकि 2 से 3 साल का समय बीत चुका है।