भिलाई। सूर्यपुत्र शनिदेव की जयंती 6 जून को मनाई जाएगी। इसके लिए सारी तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी है। शहर के विभिन्न मंदिरों में भगवान शनिदेव की जयंती धूमधाम से मनाई जाएगी। भिलाई रामनगर स्थित सूर्यपुत्र शनिदेव मंदिर में भी विशेष तैयारियां की गई हैं। सुबह से ही भगवान शनिदेव का तेलाभिषेक व विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी। श्रद्धालुओं के लिए महाभोग प्रसाद का वितरण संध्या 5 बजे से प्रारंभ होगा।
ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को शनि जयंती मनाई जाती है, इस बार यह शुभ तिथि 6 जून को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सूर्य भगवान और देवी छाया के पुत्र शनिदेव का जन्म हुआ था। साथ ही यम और यमुना इनके भाई-बहन भी हैं। मान्यता है कि शनि जयंती के दिन न्याय के देवता शनिदेव की विधिवत पूजा अर्चना करना बहुत कल्याणकारी माना जाता है। शनिदेव की कृपा से साढ़ेसाती, ढैय्या और शनि की महादशा के अशुभ प्रभाव से मुक्ति मिल जाती है। इस वर्ष शनि जयंती पर कई शुभ योग बन रहे हैं, जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है, ऐसे में जिन जातकों पर शनि का प्रकोप चल रहा है, वे इस दिन का फायदा उठाते हुए शनिदेव की विशेष पूजा अर्चना करें।
6 जून को शनि जयंती
शनि जयंती ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाई जाती है. इस वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि 5 जून को संध्या 7 बजकर 54 मिनट से शुरू होकर 6 जून को 6 बजकर 7 मिनट पर समाप्त होगी. शनि जयंती 6 जून गुरुवार को मनाई जाएगी. ज्येष्ठ माह की अमावस्या को वट सावित्री का व्रत भी रखा जाएगा.
पूजा विधि
– शनि जयंती के दिन प्रात: काल जल्दी उठकर स्नान ध्यान के बाद घर के मंदिर में दिया जलाएं.
– इसके बाद शनि मंदिर जाकर शनिदेव को सरसों का तेल और फूल चढ़ाएं.
– शनि चालीसा का पाठ करें.
– इस दिन व्रत भी रखा जा सकता है.
– शनि जयंती के दिन दान का बहुत महत्व है.
– इस दिन दान का करना बहुत फलदायी होता है.
– शनि जयंत को शनिदेव को प्रसन्न करने इस मंत्र का जाप करें-
? शं अभय हस्ताय नम:
? शं शनैश्चराय नम:
? नीलांजनसमाभामसं रविपुत्रं यमाग्रजं छायामात्र्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम
शनि जयंती की कथा
धार्मिक ग्रंथों में वर्णन है कि ग्रहों के देव सूर्य का विवाह राजा दक्ष की कन्या संज्ञा से हुआ था और उनके तीन संतान मनु, यमराज और यमुना थे. एक बार संज्ञा ने अपने पिता दक्ष से सूर्य के तेज से होने वाली परेशानी के बारे में बताया लेकिन पिता ने कहा वह सूर्य की पत्नी है और पति की भलाई की भावना से रहना चाहिए. इसके बाद संज्ञा से अपने तपोबल से अपनी छाया को प्रकट किया और उसका नाम संवर्णा रख दिया. सूर्य और संज्ञा की छाया से शनिदेव का जन्म हुआ. शनिदेव का वर्ण बहुत ज्यादा श्याम था. बाद में सूर्यदेव को पता चला कि संवर्णा उनकी पत्नी नहीं है तो उन्होंने शनिदेव को अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया. इससे शनिदेव क्रोधित हो गए और उनकी दृष्टि सूर्यदेव पर पड़ी जिससे सूर्यदेव काले पड़ गए. इससे संसार में अंधकार छाने लगा. परेशान देवी-देवता भगवान शिव की शरण मे पहुंचे. तब शिव भगवान से सूर्यदेव का संवर्णा से माफी मांगने को कहा. इस तरह सूर्यदेव ने संवर्णा से माफी मांगी और शनिदेव के क्रोध से मुक्त हुए. इसके बाद सूर्यदेव अपने स्वरूप में लौट आए और धरती फिर प्रकाशमान हो गई.
रामनगर शनिदेव मंदिर आज मनाई जाएगी शनि जयंती : जानिए सूर्यपुत्र शनिदेव को प्रसन्न करने के उपाय
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