नई दिल्ली(ए)। आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू ने दस साल सत्ता में रहने वाले जगन रेड्डी बुरी तरह परास्त किया है. नायडू और उनके गठबंधन को लोकसभा चुनाव में भी बड़ी कामयाबी हासिल हुई है. भाजपा के साथ गठबंधन करने से तेलुगू देशम का मुस्लिम जनाधार छिटका, फिर भी उसकी जीत हुई. लेकिन यह भी देखा जाना चाहिए कि सीटों में बड़े अंतर के बावजूद जगन रेड्डी की वाइएसआर कांग्रेस तथा तेलुगू देशम के बीच वोटों का अंतर केवल दो प्रतिशत ही है. इसकी मुख्य वजह है कि अधिकतर सीटों पर आमने-सामने का कड़ा मुकाबला था. जगन रेड्डी ने नायडू की कई योजनाओं को रद्द कर दिया था, जिसमें अमरावती में राज्य की नयी राजधानी बनाने का कार्यक्रम भी शामिल था. अब नायडू के नेतृत्व में बनने वाली सरकार उस योजना को फिर से शुरू करेगी. नायडू यह भी आरोप लगाते रहे हैं कि राज्य सरकार उनके खिलाफ बदले की भावना से काम करती रही है. उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. इसकी पूरी संभावना है कि वही सब अब वे भी जगन रेड्डी के साथ करेंगे.
वाजपेयी सरकार के दौर में नायडू एक ऐसे सहयोगी रहे थे, तो दबाव बनाने से परहेज नहीं करते थे. अब जब उनका समर्थन मोदी सरकार के लिए बेहद अहम होगा, तो वे फिर से वैसा रवैया अपना सकते हैं. बहुत संभव है कि वे आंध्र प्रदेश के लिए एक विशेष राज्य का दर्जा मांगेंगे, जिसका मुद्दा वे लंबे समय से उठाते रहे हैं. अगर मोदी उनकी मांग पूरी कर देते हैं, तो बिहार को भी विशेष राज्य का दर्जा देना पड़ सकता है, जो वर्षों से नीतीश कुमार का एजेंडा है. नीतीश का साथ भी मोदी सरकार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. तेलंगाना में भाजपा की जीत हुई है, ऐसा माना जा सकता है. मुख्य रूप से ओडिशा और तेलंगाना ही दो राज्य हैं, जहां भाजपा की सीटों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है. चंद्रशेखर राव की पार्टी की बड़ी हार अपेक्षित थी. उन्हें विधानसभा में भी कांग्रेस से हराया था.
केरल और तमिलनाडु में भाजपा के वोट प्रतिशत में कुछ बढ़त हुई है, पर उसकी मेहनत का कोई खास फायदा उसे नहीं हो सका है.
केरल और तमिलनाडु में भाजपा के वोट प्रतिशत में कुछ बढ़त हुई है, पर उसकी मेहनत का कोई खास फायदा उसे नहीं हो सका है. ये राज्य और दक्षिण भारत अभी भी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती के रूप में हैं. तेलंगाना में सीटों में वृद्धि हुई है, पर आंध्र प्रदेश की जीत को नायडू की जीत माना जा रहा है, भाजपा की नहीं. तमिलनाडु में डीएमके गठबंधन की भारी जीत यह बताती है कि राज्य में द्रविड़ राजनीति की जड़ें बहुत गहरी हैं. वहां कोई भी कथित राष्ट्रीय दल उपस्थित नहीं है. कर्नाटक में भी भाजपा को बड़ा झटका लगा है. विधानसभा चुनाव में उसे कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा था.
दक्षिण के नतीजों का असर राष्ट्रीय स्तर पर पड़ेगा. परिसीमन का समय आ गया है, जिसमें लोकसभा की सीटें बढ़ेंगी. दक्षिण में आशंका है कि उसे नुकसान हो सकता है. तेलुगू देशम समेत दक्षिण की तमाम क्षेत्रीय पार्टियां इस मुद्दे पर एकजुट हैं कि ऐसा नुकसान स्वीकार नहीं किया जायेगा. कर्नाटक में सत्ताधारी कांग्रेस ने अभी तक अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है. अब उसे भी यह तय करना है कि वह दक्षिण भारत के हित को कितना महत्व देती है. उसे केरल में भी अच्छी सफलता मिली है. यह भी देखना है कि मोदी सरकार का रवैया दक्षिणी राज्यों के साथ आम तौर पर कैसा रहता है.