Home देश-दुनिया यूपी में ‘दो लड़कों’ का कमाल! सीएम योगी के लिए चुनौती की दस्तक, कांग्रेस के एक फैसले ने बदल कर रख दिया गुणा-गणित

यूपी में ‘दो लड़कों’ का कमाल! सीएम योगी के लिए चुनौती की दस्तक, कांग्रेस के एक फैसले ने बदल कर रख दिया गुणा-गणित

by admin

लखनऊ(ए)। उत्तर प्रदेश में दलों के बनते-बिगड़ते गुणा-गणित के बीच विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए ने इस बार न सिर्फ बाजी मारी है बल्कि अगले विधानसभा चुनाव के लिए भगवा खेमे के सामने बड़ी चुनौती की दस्तक भी दी है।

इस बार कांग्रेस का हाथ थाम कर साइकिल अपनी रफ्तार बढ़ाने में कामयाब रही। विपक्षी गठबंधन के सहारे कांग्रेस भी उप्र में अपना खोया जनाधार बढ़ाने में सफल रही। गठबंधन का लाभ दोनों दलों को हुआ है और सीधा नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा। सपा व कांग्रेस ने मिलकर इस बार जिस तरह भगवा खेमे को घेरा, उसके पीछे बड़ी ताकत मुस्लिम वोट बैंक की भी रही। दोनों दलों के बीच हुए समझौते के बाद मुस्लिम समुदाय का रुख एकतरफा रहा।

2019 लोकसभा चुनाव में सपा, बसपा व राष्ट्रीय लोकदल के बीच महागठबंधन हुआ, लेकिन तीनों दल मिलकर भी दलित-पिछड़ों व जाट वोट बैंक को एकजुट नहीं कर पाए थे। विपक्षी वोटबैंक में सेंधमारी कर भाजपा अपनी जीत सुनश्चित करने में सफल रही थी। तब उत्तर प्रदेश में महागठबंधन का असली लाभ हाथी को हुआ था।

2014 लोकसभा चुनाव में शून्य पर रही बसपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में सपा के सहारे बड़ी छलांग लगाई थी और दस सीटें जीतकर अपने खोए वजूद को फिर ताजा दम करने में कामयाब रही थी, जबकि 2014 लोकसभा चुनाव में पांच सीटों पर जीत दर्ज करने वाली सपा को एक सीट का भी लाभ नहीं हुआ था।

बसपा से गठजोड़ की कीमत चुकाने के बाद इस बार सपा के लिए कांग्रेस पर भरोसा जताना उतना आसान भी नहीं था। दोनों दलों के नेताओं के बीच तल्खियां भी बढ़ती नजर आईं थीं। पर, कांग्रेस माहौल को भांपते हुए उप्र में विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए को मजबूत करने के लिए 17 सीटों पर ही चुनाव लड़ने को राजी हो गई थी।

कांग्रेस का यह समझौता पहले भले ही उसके अपनों को घाटे का सौदा लग रहा था पर नतीजों ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की दूरदर्शिता साबित की है। एक बार फिर हाथ मिलाने के बाद राहुल गांधी व अखिलेश यादव ने संयुक्त सभाएं कर आक्रामक प्रचार किया। राहुल ने जातीय गणना के मुद्दे को धार दी तो अखिलेश भी भाजपा पर तीखे हमले बोलते रहे। जिसके सार्थक परिणाम सामने आए हैं।

सपा-कांग्रेस एक-दूसरे की मदद पहले से करते आए हैं। दोनों दल उनके बीच गठबंधन न होने के बाद भी एक-दूसरे के बड़े नेताओं की सीट पर उम्मीदवारों को न उतारने की परंपरा निभाते रहे हैं। 2019 लोकसभा चुनाव दोनों दल अकेले लड़े पर सपा ने अमेठी में राहुल गांधी व रायबरेली में सोनिया गांधी के समर्थन में अपने प्रत्याशी नहीं उतारे थे।

कांग्रेस ने भी मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव, आजमगढ़ में अखिलेश यादव व कन्नौज में डिंपल यादव के समर्थन में अपने उम्मीदवार नहीं दिए थे। इससे पूर्व के चुनावों में भी दोनों इस परंपरा का निर्वहन करते आए हैं।

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