देहरादून (ए)। उत्तराखंड विधानसभा में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) पेश कर दिया गया है। इस पर 4:30 घंटे तक चर्चा हो गई है। इसमें लिव-इन रिलेशनशिप को रजिस्टर्ड करने का प्रावधान किया गया है। लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे को वैध माना गया है। प्रतिबंधित संबंध में जो लोग हैं, उनके कस्टम अगर इसकी इजाजत नहीं देते तो ऐसे लिव- इन रिलेशनशिप को रजिस्टर्ड नहीं किया जाएगा। बिना रजिस्ट्रेशन के लिव-इन में रहने वाले को जेल की सजा का प्रावधान भी किया गया है। यूनिफॉर्म सिविल कोड में प्रावधान है कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले पार्टनर को अपने इलाके के रजिस्ट्रार के सामने धारा-381(1) के तहत बयान दर्ज कराना होगा। इसके बाद रजिस्ट्रार ऐसे कपल का वेरिफिकेशन के लिए आदेश पारित कर सकता है। वह 30 दिनों में पार्टनर के बारे में जांच प्रक्रिया पूरी करेंगे। इसके लिए वह आवेदक या अन्य को समन जारी कर बुला सकते हैं।
लिव-इन में रहने वाले ऐसे ही लोगों का रजिस्ट्रेशन हो सकता है, जो प्रतिबंधित संबंध में न हों। यानी बहन, बहन की बेटी, मां, सौतेली मां, बेटी, बहू, भाई की बेटी आदि नजदीकी संबंध के मामले को प्रतिबंधित संबंध के दायरे में रखा गया है। ऐसे संबंध में अगर कोई लिव-इन में रहता है तो उसका रजिस्ट्रेशन नहीं होगा। साथ कानून में प्रावधान किया गया है कि अगर किसी के कस्टम में ऐसे किसी रिलेशनशिप में शादी का प्रावधान है तो उस मामले में प्रतिबंधित संबंध की शर्त लागू नहीं होगी बशर्ते कि वह नैतिकता और पब्लिक पॉलिसी के खिलाफ न हो।
सजा और जुर्माना का प्रावधान
लिव-इन पर क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को पहले से मान्यता दी है। 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशंस के बारे में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा था कि लिव-इन में रहने वाले कपल शादी की योग्यता रखते हों यह जरूरी है और दुनिया के सामने लंबे समय तक खुद को जीवनसाथी के रूप में दिखें। कोर्ट ने घरेलू हिंसा कानून के तहत लिव-इन में रहने वाली महिला को सुरक्षा दी थी। बाद में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निजता के मूल में व्यक्तिगत घनिष्ठता, पारिवारिक जीवन, शादी, प्रजनन, घर, सेक्सुअल ओरिएंटेशन सबकुछ है। अब यूनिफॉर्म सिविल कोड में लिव-इन को लेकर जो प्रावधान किया गया है वह एक तरह से इसे मान्यता देने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।