लखनऊ(ए)। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में मिली भाजपा की जीत के साथ राष्ट्रीय राजनीति में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पांव और मजबूती से जम गए हैं। योगी, तीनों राज्यों में बतौर स्टार प्रचारक भाजपा हाईकमान की उम्मीदों पर खरे उतरे। लोकसभा चुनाव से पहले योगी के राजनीतिक भविष्य पर राजनीतिक समीक्षकों की भी नजर है। समीक्षकों को भी इन राज्यों के चुनाव परिणामों का इंतजार था। ऐसे में उप्र. में ‘सियासती खेल’ होने की आशंकाएं भी निर्मूल साबित होंगी। यह भी तय है कि भाजपा अब और आत्मविश्वास के साथ उप्र. में मिशन 80 को साधेगी। इस लक्ष्य के योगी मुख्य रणनीतिकार बने तो आश्चर्य नहीं होगा।
सपा नए सिरे से कांग्रेस के साथ सियासी रिश्ते रखने पर करेगी मंथन
वहीं, मध्य प्रदेश में सीटों के बंटवारे में धोखा खाई सपा की रार कांग्रेस से बढ़ेगी। सपा नए सिरे से कांग्रेस के साथ सियासी रिश्ते रखने पर मंथन करेगी। बसपा पहले की ही तरह तटस्थ बनी रहेगी।
सभी चुनावी राज्यों में दिखा योगी का आकर्षण
सभी चुनावी राज्यों में योगी आदित्यनाथ का आकर्षण दिखा। इन राज्यों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और केशव प्रसाद मौर्य बतौर स्टार प्रचारक पहुंचे थे। यहां चार दिन में 16 रैलियां की थीं। योगी ने मप्र. की जिन 29 सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार किया उनमें से 22 विजयी हुए हैं। उन्होंने 22 दिनों में (1) नवंबर से 22 नवबंर) अलग-अलग राज्यों की विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में 57 रैली कर 92 प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया।
तेलंगाना में भी छोड़ी छाप,
तेलंगाना में पिछली बार भाजपा ने एक सीट जीती थी, इस बार योगी आदित्यनाथ जहां प्रचार करने पहुंचे वहां सीरपुर से डॉ. पलवई हरीश बाबू और घोषा महाल से टी. राजा सिंह ने जीत हासिल की। सच पूछिए तो हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा की जीत से यह साबित हुआ कि विपक्ष से उठी जातीय जनगणना की मांग और इसके लिए दबाव की राजनीति से हिंदू वोट नहीं बंटा। भाजपा का हिंदुत्व फार्मूला न तो फेल हुआ न ही हल्का पड़ा। अब उत्तर प्रदेश में यही फार्मूला चलेगा। ऐसे में योगी आदित्यनाथ की भूमिका सर्वोपरि होगी। मोदी मैजिक और जमीनी स्तर पर भाजपा, संघ ने जो काम किए, उसमें योगी के अंदाज ने ‘बूस्टर प्रचार’ का काम किया।