भिलाई। ‘यदि शब्द नाम की ज्योति इस संसार में न आई होती तो पूरी दुनिया में सिर्फ़ अँधेरा होता। शब्द अक्षर ब्रह्म है। इसके अर्थ से संसार की प्रक्रिया संचालित है। माता,मातृभूमि और मातृभाषा से बड़ा दुनिया में कोई नहीं है। हिन्दी समेत प्रायः सभी भारतीय भाषाओं की जननी और पोषण करनेवाली भाषा संस्कृत है। वह मातृभाषाओं की भी मातृभाषा है।’
उक्ताशय के विचार साहित्य-संस्कृति मनीषी एवं बहुभाषाविद् डा. महेशचन्द्र शर्मा ने विश्व मातृभाषा दिवस की पूर्व संध्या पर साहित्य सृजन परिषद् भिलाई द्वारा आयोजित संगोष्ठी की मुख्य अतिथि की आसन्दी से साहित्यकारों को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। समिति के अध्यक्ष एन.एल. मौर्य ने संगोष्ठी की अध्यक्षता की। द्वितीय सत्र का शुभारंभ बसंतोत्सव एवं होली पर सरस काव्य गोष्ठी में इस्माइल आजाद,शुभेन्दु बागची, रियाज़ ख़ान गौहर,रामबरन कोरी कशिश,माला सिंह,शिवेंद्र केशव दुबे,नवेद रज़ा दुर्गवी,गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश,आलोक नारंग,प्रदीप पांडेय,टी एन कुशवाहा अंजन,डॉ नौशाद अहमद सिद्दीकी,ओमवीर करन,नीलम जायसवाल,शुचि भवि,प्रदीप वर्मा,आशा झा,डॉ संजय दानी,प्रदीप भट्टाचार्य,शाद बिलासपुरी,एन एल मौर्य प्रीतम,सोनिया सोनी और संध्या सिंह ने अपनी रचनाएं सुनाकर सभी का दिल जीत लिया।
इस मौके पर नीलम जायसवाल को साहित्य सृजन परिषद भिलाई का उपाध्यक्ष बनाए जाने पर सभी साहित्यकारों ने उन्हें बधाई दी। कार्यक्रम का संचालन गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश ने और आभार प्रदर्शन ओमवीर करन ने किया।
सभी भारतीय भाषाओं की जननी संस्कृत: डॉ. शर्मा
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