Home देश-दुनिया उत्तराखंड: पंचाचूली बेस कैंप मार्ग पर ग्लेशियर खिसका, चीन सीमा का रास्ता बंद

उत्तराखंड: पंचाचूली बेस कैंप मार्ग पर ग्लेशियर खिसका, चीन सीमा का रास्ता बंद

by admin

पिथौरागढ़। पंचाचूली बेस कैंप मार्ग पर उच्च हिमालयी सेला गांव के पास विशालकाय ग्लेशियर खिसककर सड़क पर आ गया है। इससे माइग्रेशन गांवों के साथ ही भारत की अग्रिम चौकी विदांग और दावे की तरफ चीन सीमा पर सुरक्षा पर डटे आईटीबीपी के हिमवीरों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। हालांकि वे बुलंद हौसले के साथ सीमा सुरक्षा में डटे हैं।

उच्च हिमालय क्षेत्र में अब तक सात बार बर्फबारी हुई है। लेकिन अब कई दिनों से लगातार धूप खिलने पर ग्लेशियर खिसकने शुरू हो गए हैं। पैदल रास्तों में पहले से ही कई-कई फीट बर्फ जमा है। क्षेत्र के लोगों ने बताया वरुंग नाले के निकट ग्लेशियर 500 मीटर से अधिक खिसक आया है, इससे माइग्रेशन गांव वालिंग, नागलिंग, फिलम, बोन, गो, तिदांग, मार्छा, सीपू, ढ़ाकर, दांतू, सेला, चल, दुग्तू, सौन का शेष दुनिया से सड़क संपर्क से कट गया है।

शीतकालीन पर्यटन कारोबार चौपट: ग्लेशियर के खिसकने से रास्ता बंद होने से दारमा घाटी में शीतकालीन पर्यटन कारोबार चौपट हो गया है। दारमा वैली में 200 से अधिक घरों में होम स्टे का अच्छा कारोबार होता है। यह देखते हुए इस बार यहां विंटर ट्रेक भी खोला गया था।

यह भी जानिये: सात से 13 हजार फीट की ऊंचाई पर बसे हैं ग्लेशियर खिसककर आने से सड़क सुविधा से कटे गांव। इन गांवों में ग्रीष्मकाल में 6 हजार से अधिक लोग रहते हैं। चीन सीमा पर तैनात भारतीय सीमा सुरक्षा बल हर समय रहता है मुस्तैद।

ऐसे खिसकते हैं ग्लेशियर: भारी हिमपात के बाद कुछ दिन लगातार धूप खिलने से ग्लेशियर खिसकने लगते हैं। ग्लेशियर खिसकने से लोगों को आवाजाही में खासी दिक्कत होती है। ग्लेशियर खिसकने से बर्फीले तूफान का भी खतरा बना रहता है।

वरुंग नाले के समीप ग्लेशियर खिसककर करीब 500 मीटर सड़क पर आया है। इस वजह से यहां आवाजाही ठप हो जाने से दारमा वैली में शीतकालीन पर्यटन कारोबार चौपट हो गया है।

-जयेन्द्र फिरमाल, अध्यक्ष, होम स्टे संघ, दारमा वैली।

माइग्रेशन गांव के लोग इस समय घाटी के गांवों में रह रहे हैं। सड़क बंद होने की सूचना अभी हमें नहीं मिली है। यदि ऐसा हुआ है, तो सड़क खोलने की कार्रवाई की जाएगी।

-अनिल कुमार शुक्ला, एसडीएम, धारचूला।

नैनीताल का तापमान साल दर साल बढ़ रहा

नैनीताल की हवा खतरे के निशान से महज 15 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर दूर है। प्रदूषण के कारण नैनीताल शहर का तापमान भी साल दर साल तेजी से बढ़ रहा है। बीते पांच साल में 2020 को छोड़ दिया जाए तो हर साल नैनीताल के पारे में वृद्धि ही दर्ज हुई है। 2020 में तापमान नीचे रहने की बड़ी वजह अत्यधिक बर्फबारी थी। बढ़ते तापमान के कारण अब नैनीताल में न पहले जैसी सर्दी है और न बारिश-बर्फबारी।

आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) में 22 जनवरी को नैनीताल का अधिकतम तापमान 13.47 डिग्री और न्यूनतम 5.39 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। साल 2017 की तुलना में अधिकतम तापमान में पांच डिग्री और न्यूनतम तापमान में करीब दो डिग्री की वृद्धि दर्ज की गई है। पांच सालों में जनवरी में नैनीताल का सबसे अधिक तापमान साल 2019 में रहा।

सर्दियों में पश्चिमी विक्षोभ आने की वजह से दिन और रात के तापमान में गिरावट आती है। बीते कुछ सालों से देखा जा रहा है कि यहां पहुंचने तक पश्चिमी विक्षोभ कमजोर हो रहा है। इस कारण हिमालयी क्षेत्र में बारिश-बर्फबारी पर असर पड़ा है। रही बात पीएम-10 में इजाफा होने की तो बारिश होगी तो हवा में पीएम-10 की मात्रा कम हो जाएगी।

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