कोलकाता(ए)। भारतीय सेना ने एक बार फिर राष्ट्र निर्माण में एक शांत लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मणिपुर के नोनी जिले में जीरीबाम–तुपुल–इंफाल रेललाइन पर स्थित दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पियर ब्रिज, भारतीय सेना की गोरखा राइफल्स की सुरक्षा और संचालन सहयोग से सफलतापूर्वक पूरा किया गया। यह ऐतिहासिक पुल न केवल इंजीनियरिंग की दृष्टि से एक अद्वितीय उपलब्धि है, बल्कि यह भारतीय सेना और नागरिक एजेंसियों के बीच सुदृढ़ सहयोग का भी प्रतीक है। पूर्वी कमान के अंतर्गत 107 इन्फैंट्री बटालियन (टेरिटोरियल आर्मी), 11 गोरखा राइफल्स — जिन्हें गोरखा टेरियर्स के नाम से जाना जाता है, ने दुर्गम इलाके और सुरक्षा चुनौतियों के बीच परियोजना की निरंतर सुरक्षा और सहायता सुनिश्चित की। सेना के इस योगदान ने न केवल परियोजना को समय पर पूर्ण किया, बल्कि यह पूर्वोत्तर भारत के विकास और रणनीतिक मजबूती की दिशा में एक बड़ा कदम भी है। पूर्वी कमान के अधिकार क्षेत्र के तहत कार्य करते हुए, गोरखा टेरियर्स ने मणिपुर के नोनी में स्थित ब्रिज नं. 164, दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे पियर ब्रिज – के निर्माण के दौरान निरंतर सुरक्षा और संचालन सहयोग प्रदान किया। उनकी अनुशासित उपस्थिति ने ऐसे क्षेत्र में, जहां सुरक्षा संबंधी चुनौतियां और जटिल भौगोलिक परिस्थितियां आम हैं, प्रतिकूल मौसम के बीच भी कार्य को बिना रुकावट आगे बढ़ने में मदद की।
कोलकाता में रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि 25 अप्रैल को इस रिकॉर्ड-तोड़ संरचना का अंतिम स्पैन सफलतापूर्वक स्थापित किया गया, जो केवल सिविल इंजीनियरिंग की नहीं, बल्कि नागरिक-सैन्य सहयोग और राष्ट्रीय संकल्प की भी एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह पुल, जिसे भारतीय रेलवे के तत्वावधान में बीबीजे कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (भारत सरकार का उपक्रम) द्वारा निर्मित किया गया, महत्वाकांक्षी जीरीबाम–तुपुल–इंफाल रेललाइन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो पूर्वोत्तर भारत के लिए एक रणनीतिक और विकासात्मक जीवनरेखा है।

जहां यह पुल आज भारत की आधारभूत संरचना क्षमता का एक भव्य प्रतीक बनकर खड़ा है, वहीं इसे संभव बनाने में भारतीय सेना के गोरखा टेरियर्स की सतत सतर्कता और निष्ठा की विशेष भूमिका रही। उनका योगदान पारंपरिक सैन्य दायित्वों से परे जाकर, दूरदराज और संवेदनशील क्षेत्रों में राष्ट्रीय विकास के प्रति भारतीय सेना की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।नोनी में इस पुल का सफल निर्माण केवल तकनीकी कौशल की विजय नहीं, बल्कि गोरखा टेरियर्स के अनसुने समर्पण और वीरता को भी एक भावभीनी श्रद्धांजलि है।