Home देश-दुनिया कर्मचारी को पदोन्नति का अधिकार नहीं है, लेकिन अगर वो अयोग्य नहीं है तो उसकी पदोन्नति पर विचार किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

कर्मचारी को पदोन्नति का अधिकार नहीं है, लेकिन अगर वो अयोग्य नहीं है तो उसकी पदोन्नति पर विचार किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट

by admin

नईदिल्ली(ए)। देश की सर्वोच्च अदालत ने एक मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की है कि कर्मचारी को पदोन्नति का अधिकार नहीं है, लेकिन अगर वो अयोग्य नहीं है तो उसकी पदोन्नति पर विचार किया जा सकता है। बता दें कि, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ तमिलनाडु के एक पुलिस कांस्टेबल की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की है। इस मामले में कांस्टेबल ने सब-इंस्पेक्टर के पद के लिए प्रमोशन पर विचार न किए जाने को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘यह एक स्थापित सिद्धांत है कि कर्मचारी को सीधे प्रमोशन का अधिकार नहीं होता, लेकिन अगर वह अयोग्य नहीं है, तो उसे प्रमोशन के लिए विचार का अधिकार जरूर होता है। इस मामले में यह अधिकार अन्यायपूर्वक छीना गया।’

कांस्टेबल पर चेकपोस्ट पर तैनाती के दौरान एक सहकर्मी की पिटाई करने का आरोप लगा था। इसके चलते उसके खिलाफ विभागीय जांच और आपराधिक कार्रवाई हुई थी। हालांकि, आपराधिक मामले में उसे गिरफ्तार करने के बाद अदालत ने बरी कर दिया। साथ ही, विभागीय कार्रवाई के तहत दी गई सजा को भी सरकार ने 2009 में खत्म कर दिया था। लेकिन, पुलिस अधीक्षक ने यह कहते हुए कांस्टेबल को प्रमोशन के लिए विचार नहीं किया कि उसे 2005 में ‘एक साल तक अगली वेतनवृद्धि रोकने’ की सजा दी गई थी, इसलिए वह नियमों के तहत अयोग्य है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि 2009 में ही यह सजा रद्द कर दी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश
पीठ ने कहा कि जब सजा पहले ही समाप्त कर दी गई थी, तो 2019 में प्रमोशन के लिए उसे विचार से बाहर करना गलत था। अदालत ने आदेश दिया कि कांस्टेबल को प्रमोशन के लिए विचार किया जाए। अगर वह योग्य पाया जाता है, तो उसे 2019 से पदोन्नत किया जाए और उसे सभी लाभ भी दिए जाएं। इसके अलावा अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर उम्र की सीमा पार भी हो गई हो, तो भी उसे प्रमोशन पर विचार से वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह गलती खुद उसकी नहीं थी, बल्कि अधिकारियों की थी।

कांस्टेबल की नियुक्ति मार्च 2002 में हुई थी। 2019 में एक अधिसूचना जारी हुई थी, जिसमें 20 प्रतिशत विभागीय कोटे के तहत कांस्टेबलों के इन-सर्विस प्रमोशन के लिए योग्य उम्मीदवारों पर विचार किया जाना था। इसी प्रक्रिया में उसे नजरअंदाज कर दिया गया था। अदालत ने मद्रास हाई कोर्ट के अक्टूबर 2023 के उस आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें उसकी याचिका खारिज कर दी गई थी।

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