Home देश-दुनिया लैंगिक समानता में तेजी से आगे बढ़ रहा देश, यूएन वूमेन ने कहा- भारत की प्रगति प्रेरणादायी

लैंगिक समानता में तेजी से आगे बढ़ रहा देश, यूएन वूमेन ने कहा- भारत की प्रगति प्रेरणादायी

by admin
नई दिल्ली (ए)।  लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था ‘यूएन वूमेन’ ने कहा है कि हाल के वर्षों में लैंगिक समानता के मामले में भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। साथ ही कहा कि इस दिशा में निवेश बढ़ाने और बुनियादी महिला नेतृत्व पर ध्यान देने के बावजूद सामाजिक मान्यताएं, सीमित कार्यबल भागीदारी और सुरक्षा मानकों में गैप पूर्ण लैंगिक समानता में रुकावट डालते हैं।निजी क्षेत्र को करना होगा महिला हित में काम

दिल्ली समेत देश के 14 राज्यों में सक्रिय इस अंतरराष्ट्रीय संस्था का यह भी कहना है कि बाकी खाई को पाटने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के साथ ही निजी क्षेत्रों को भी महिलाओं के हित में काम करना होगा। एक साक्षात्कार में संयुक्त राष्ट्र महिला रणनीतिक साझेदारी की निदेशक डैनियल सेमोर और यूएन वूमेन में भारत की प्रतिनिधि सुसान जेन फग्र्यूसन ने देश की प्रगति और मौजूदा चुनौतियों पर विचार साझा किए। कहा- भारत में महिला सशक्तीकरण और लैंगिक नीतियों पर भारी निवेश किया जा रहा है, लेकिन गहरी पैठ रखने वाले सामाजिक मानकों और सीमित वित्तीय साम‌र्थ्य के चलते इस दिशा में पूर्ण प्रगति नहीं हो पा रही है।
फग्र्यूसन ने कहा कि लैंगिक समानता में भारत की प्रगति प्रेरणादायी है, लेकिन शेष चुनौतियों को दूर करने के लिए पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर को पूरी सक्रियता से काम करना होगा। संयुक्त राष्ट्र के इन अफसरों का मानना है कि हाल के सालों में महिलाओं से जुड़े केंद्रीय बजट प्रविधानों को 6.8 प्रतिशत तक बढ़ाया गया है। फग्र्यूसन ने पाया कि इस लक्ष्य को पूरी तरह से हासिल करने के लिए निजी क्षेत्रों का निवेश बहुत जरूरी है। अभी भी स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक अवसरों के क्षेत्र में इस भारी अंतर को पाटने की जरूरत है। 

राजनीति में महिलाओं का दर्जा

महिलाओं का पंचायतों व स्थानीय निकायों में प्रतिनिधित्व बढ़ा है। आगे केंद्रीय राजनीति में 33 प्रतिशत आरक्षण लागू होने के बाद भारत में महिलाओं की राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका बेहतर होगी। हालांकि दोनों अधिकारियों का कहना है कि भारत में लैंगिक हिंसा महिला सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए बड़ा रोड़ा है। इसकी रोकथाम के लिए कानून हैं लेकिन सामाजिक और सांस्कृतिक मानकों के कारण इन पर लगाम नहीं कसी जा सकी। हिंसा और उत्पीड़न सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि वैश्विक समस्या है।

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