नई दिल्ली(ए)। रतन नवल टाटा, भारतीय उद्योग जगत के एक महानतम व्यक्तित्व, का जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में हुआ था। वे टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा के परपोते हैं। रतन टाटा का जीवन और करियर कई पहलुओं से प्रेरणादायक है, जिसने उन्हें उद्योग की ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
न्यूयॉर्क के रिवरडेल कंट्री स्कूल में की पढ़ाई
रतन टाटा के माता-पिता का तलाक उनके बचपन में ही हो गया था, जिसके बाद उनकी दादी ने उनकी देखरेख की। रतन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कैंपियन स्कूल, मुंबई से प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने कैथेड्रल एंड जॉन कॉनन स्कूल और शिमला के बिशप कॉटन स्कूल में अध्ययन किया। आगे की शिक्षा के लिए, वे अमेरिका गए और न्यूयॉर्क के रिवरडेल कंट्री स्कूल में पढ़ाई की। रतन टाटा ने कॉर्नेल विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की और फिर हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। ये सभी संस्थान उनके ज्ञान और नेतृत्व कौशल को निखारने में महत्वपूर्ण रहे।
टाटा समूह का चेयरमैन बनना
1991 में, रतन टाटा को 21 वर्ष की आयु में टाटा समूह का चेयरमैन नियुक्त किया गया। उस समय टाटा समूह की स्थिति को लेकर कई चुनौतियाँ थीं। लेकिन रतन टाटा ने अपने नेतृत्व में समूह को एक नई दिशा दी। उन्होंने विविध क्षेत्रों में विस्तार किया, जिसमें टेटली टी, जगुआर लैंड रोवर और कोरस जैसे प्रतिष्ठित ब्रांडों का अधिग्रहण शामिल है। उनके कार्यकाल में, टाटा समूह ने नवोन्मेषी उत्पादों की रेंज विकसित की और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा में मजबूती से खड़ा हुआ। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह का कारोबार 100 से अधिक देशों में फैल गया।
देश की सबसे सस्ती कार: टाटा नैनो
रतन टाटा की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी टाटा नैनो का निर्माण। एक दिन, मुंबई की तेज बारिश में एक परिवार को बाइक पर भीगते देखकर उन्हें गहरा दुःख हुआ। उन्होंने सोचा कि अगर एक सामान्य परिवार को सुरक्षित और सस्ती परिवहन की सुविधा मिल सके, तो यह कितना अच्छा होगा। अगले ही दिन, उन्होंने अपने इंजीनियरों से इस विचार पर काम करने के लिए कहा। 2008 में टाटा नैनो लॉन्च हुई, जो उस समय की सबसे सस्ती कार थी। हालांकि, इसे बाजार में अपेक्षित सफलता नहीं मिली और इसकी बिक्री में कमी आई, जिसके कारण 2020 में इसका उत्पादन बंद कर दिया गया। फिर भी, टाटा नैनो का निर्माण एक साहसी प्रयास था, जिसने उद्योग में सस्ती कारों की अवधारणा को जन्म दिया।
सफलता की कहानियाँ पढ़ना पसंद
रतन टाटा एक पुस्तक प्रेमी थे। उन्हें विशेष रूप से प्रेरणादायक जीवनी और सफलता की कहानियाँ पढ़ना पसंद था। उन्होंने एक बार कहा था कि रिटायरमेंट के बाद वे पढ़ाई के लिए और समय निकालेंगे। उनकी व्यक्तिगत आदतों में एक खास बात यह थी कि वे बातचीत में कम रुचि रखते थे। कारों के प्रति उनका प्रेम भी जगजाहिर था। उन्होंने बताया कि उन्हें पुरानी और नई दोनों तरह की कारों का शौक है। यह उनकी जीवनशैली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास
रतन टाटा को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार प्राप्त हुए, जिनमें पद्म भूषण (2000) और पद्म विभूषण (2008) शामिल हैं। इसके अलावा, उन्हें कई अन्य सम्मान भी मिले, जो उनके उद्योग और समाज में योगदान को दर्शाते हैं। उनकी विरासत केवल उद्योग तक सीमित नहीं है; रतन टाटा ने समाज सेवा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने कई चैरिटेबल फाउंडेशन और समाजसेवी संस्थाओं की स्थापना की, जिनका उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास में सुधार लाना है।
रतन टाटा का जीवन हमें यह सिखाता है कि कठिनाइयों के बावजूद, अगर हम अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पित रहें, तो सफलता अवश्य प्राप्त होती है। उनका नेतृत्व, दृष्टिकोण और उदारता आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी। आज, वे न केवल एक सफल उद्योगपति हैं, बल्कि एक ऐसी शख्सियत हैं, जिनकी कहानी हर किसी के लिए एक प्रेरणा है। उनके योगदान से न केवल टाटा समूह को बल मिला, बल्कि उन्होंने भारतीय उद्योग को भी एक नई पहचान दी।