मैक्लोडगंजए)। भारत की बौद्ध कूटनीति अब ज्यादा धारदार होगी। पीएम नरेंद्र मोदी बुधवार (19 जून) को बिहार के राजगीर में प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के पास ही नालंदी विश्वविद्यालय के नये कैंपस का उद्घाटन करने जा रहे हैं। इस विश्वविद्यालय के जरिए बौद्ध धर्म मानने वाले प्रमुख देशों जैसे श्रीलंका, थाईलैंड, दक्षिण कोरिया, विएतनाम, लाओस, कंबोडिया में भारत के प्रति वैसा ही सद्भाव बनाने की कोशिश होगी जैसा कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के काल में था।
पर चीन ने बेहद कड़ी प्रतिक्रिया जताई
दूसरी तरफ, भारत की तिब्बत नीति भी नई करवट लेती दिख रही है। अभी तक का अमेरिकी सांसदों का सबसे बड़ा दल 19 जून को ही 14वें दलाई लामा से मुलाकात करने जा रहा है। 18 जनवरी को अमेरिकी संसद में विदेशी मामलों के समिति के अध्यक्ष माइकल मैकोल की अगुवाई में आए दल की इस यात्रा पर चीन ने बेहद कड़ी प्रतिक्रिया जताई है।
जानकारों का कहना है कि बौद्ध धर्म मानने वाले अधिकांश देशों के रिश्ते चीन के साथ बहुत मधुर नहीं है और इनके साथ संबंधों की अहमियत भारत के हितों के लिए पहले से ज्यादा बढ़ गई है।
नये नालंदा विश्वविद्यालय को 21वीं सदी वाला स्थान दिलाना है
भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से बताया गया है कि भारत सरकार की कोशिश नये नालंदा विश्वविद्यालय को 21वीं सदी में वहीं स्थान दिलाना है जो इसे पहले (800 सौ साल पहले) हासिल था। नया कैंपस सरकार के इस इरादे को दिखाता है कि वह इसे शिक्षा के क्षेत्र में एक प्रमुख केंद्र के तौर पर स्थापित करना चाहती है। वर्ष 2010 में भारत सरकार ने कानून बना कर नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी लेकिन अभी तक यह अस्थाई कैंपस में चल रहा था।
17 देशों के राजदूतों के इसमें शामिल होने की संभावना
बुधवार को होने वाले कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस जयशंकर और 17 देशों के राजदूतों के इसमें शामिल होने की संभावना है। ये वहीं देश हैं जिन्होंने इस विश्वविद्यालय की स्थापना व इसे चलाने में सहयोग देने के लिए किये गए समझौते के सदस्य हैं।
इसमें बौद्ध धर्मावलंबियों वाले देशों के अलावा आस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल जैसे देश भी हैं। चीन भी इसमें शामिल हैं। कभी अपने विशाल पुस्तकालय के लिए प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय के नये स्वरूप में निर्मित लाइब्रेरी में भी तीन लाख से ज्यादा पुस्तकें हैं।
तिब्बत का मुद्दा गरम हो रहा है
उधर, अंतरराष्ट्रीय फलक पर जिस तरह से तिब्बत का मुद्दा गरम हो रहा है, उसको लेकर भी भारत सतर्क है और अपनी भावी नीति पर काम कर रहा है। अमेरिकी सांसदों का भारत दौरे पर आया बड़ा दल बुधवार को सुबह दलाई लामा से मुलाकात करेगा। यह बैठक अमेरिकी संसद में तिब्बत रिजाल्व एक्ट (टीआरए) के पारित होने के ठीक आठवें दिन होने जा रही है।
भारतीय जमीन से यह अमेरिका की सीधे तौर पर चीन की तिब्बत पालिसी को खारिज करने के तौर पर देखा जा रहा है। दल के अगुवा मैकोल ने तिब्बत की निर्वासित सरकार के संसद में कहा कि, “मुझे यकीं है कि एक दिन यह संसद तिब्बत में स्थापित होगा।”
चीन ने उठाए सवाल
चीन के विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी सांसदों की इस यात्रा को चीन के मामले में सीधा हस्तक्षेप बताया है। दलाई लामा को चीन ने पृथक आंदोलन चला रहे समूह का मुखिया करार दिया है। चीन यह भी कहा है कि, “अमेरिकी राष्ट्रपति को वहां के संसद में पारित टीआरए पर हस्ताक्षर नहीं करने चाहिए।” भारत ने इस विधेयक पर अपनी कोई प्रतिक्रिया अभी तक नहीं दी है। हालांकि, भारत एक-एक गतिविधियों पर नजर रखे हुए है।