नईदिल्ली (ए)। Akshay Tritiya 2024: आज अक्षय तृतीया का पर्व है। हिंदू धर्म में इस त्योहार का विशेष महत्व होता है। अक्षय तृतीया को आखा तीज के नाम से जाना जाता है। अक्षय तृतीया एक अबूझ मुहूर्त की तिथि होती है। इस अबूझ मुहूर्त में किसी भी तरह का शुभ कार्य बिना मुहूर्त के विचार किए संपन्न किया जा सकता है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष यह पावन पर्व वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। अक्षय जिसका मतलब होता है कि जिसका कभी क्षय न हो। अक्षय तृतीया पर सोने-चांदी के आभूषण और अन्य तरह की चीजों की खरीदारी करने का विशेष महत्व होता है। अक्षय तृतीया के दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा उपासना करने से जीवन में सुख-समृद्धि और धन-वैभव की प्राप्ति होती है। पौराणिक महत्व के नजरिए से अक्षय तृतीया बहुत ही खास तिथि मानी गई है। इस तिथि पर ही त्रेता और सतयुग का आरंभ हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम जी का जन्म हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन महर्षि वेद व्यास ने भगवान गणेश के साथ महाभारत लिखना आरंभ किया था। अक्षय तृतीया के दिन ही बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं और चारों धाम की यात्रा शुरू होती है। इसके अलावा अक्षय तृतीया के दिन ही साल भर में मात्र इस दिन ही भगवान बांके बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं। अक्षय तृतीया पर खरीदारी करना काफी शुभ माना जाता है। आइए जानते हैं अक्षय तृतीया पर खरीदारी का मुहूर्त और महत्व।
अक्षय तृतीया शुभ तिथि
आज यानी 10 मई, शुक्रवार को अक्षय तृतीया है। हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 10 मई को सुबह 4 बजकर 17 मिनट से शुरू हो गई है और जिसका समापन 11 मई को रात 2 बजकर 50 मिनट पर होगा।
अक्षय तृतीया खरीदारी का शुभ मुहूर्त
अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त माना गया है। इस दिन हर तरह के शुभ कार्य बिना पंचांग देखे किया जा सकता है। अक्षय तृतीया पर मां लक्ष्मी की पूजा और सोने-चांदी की खरीदारी के लिए मुहूर्त 10 मई को सुबह 5 बजकर 33 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगा।
अक्षय तृतीया शुभ संयोग
इस वर्ष अक्षय तृतीया पर बहुत ही शुभ और दुर्लभ संयोग बना हुआ है। 100 वर्षो बाद अक्षय तृतीया पर गजकेसरी योग का संयोग है। इसके अलावा अक्षय तृतीया पर धन, शुक्रादित्य, रवि, शश और सुकर्मा योग का निर्माण हुआ है।
अक्षय तृतीया का महत्व
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार त्रेता और सतयुग का आरंभ भी अक्षय तृतीया को हुआ था। इसलिए इस युगादि तिथि के नाम से भी जाना जाता है। अक्षय तृतीया पर किए जाने वाला कोई भी कार्य क्षय नहीं होता है इसलिए इस दिन हर तरह का शुभ कार्य करने के विशेष महत्व होता है। भगवान विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था। इस दिन को परशुराम जयंती के तौर पर भी मनाया जाता है। भगवान परशुराम को आठ चिरंजीवियों में से एक माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण ने अक्षय पात्र दिया था, जिसमें कभी भी भोजन समाप्त नहीं होता था। अक्षय तृतीया साल के श्रेष्ठतम मुहूर्तों में से एक है। इस दिन किया गया कोई भी शुभ-अशुभ कार्य निष्फल नहीं होता।
अक्षय तृतीया पूजा विधि
अक्षय तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करे और पूजा का संकल्प लेते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करें। इसके बाद पीले रंग का कपड़ा पहनकर पूजा स्थल पर बैठकर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को गंगाजल से स्नान कराएं। फिर तुलसी, पीले फूल, धूप जलाएं। फिर इसके बाद भगवान को भोग अर्पित करके विष्णु चालीसा, सहस्त्रनाम और माता लक्ष्मी की आरती करें।