नई दिल्ली(ए)। विदेश मंत्री एस जयशंकर का मानना है कि भारत के लिए धर्मनिरपेक्षता का मतलब गैर-धार्मिक होना नहीं बल्कि सभी धर्मों का बराबर सम्मान करना है, लेकिन अतीत में अपनाई गई ‘तुष्टीकरण’ की सरकारी नीतियों ने देश के सबसे बड़े धर्म के लोगों को ऐसा महसूस कराया जैसे समानता के नाम पर उन्हें स्वयं की ही निंदा करनी पड़ी हो। लंदन के रॉयल ओवर-सीज लीग में ‘दुनिया के बारे में एक अरब लोगों का नजरिया’ विषय पर आयोजित एक चर्चा के दौरान जयशंकर ने यह बात कही।.
जयशंकर से पूछा गया कि क्या नेहरू युग के बाद से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार के शासनकाल में भारत उदार कम और ‘बहुसंख्यकवादी हिंदू’ राष्ट्र अधिक बन गया है। जयशंकर ने इस सवाल के जवाब में कहा कि भारत निश्चित रूप से बदल गया है और इस परिवर्तन का मतलब यह नहीं है कि भारत कम उदार हो गया है, बल्कि देश के लोग अब अपनी मान्यताओं को अधिक प्रामाणिक ढंग से व्यक्त करते हैं। जयशंकर ने पत्रकार एवं लेखक लियोनेल बार्बर के एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘ क्या भारत नेहरूवादी युग से बदल गया है? बिल्कुल, क्योंकि उस युग की एक धारणा जिसने विदेश में देश की नीतियों और उनके क्रियान्वयन को बहुत हद तक निर्देशित किया, वह यह तरीका था, जिससे हम भारत में धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित किया करते हैं।