Home देश-दुनिया अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने भले ही मिलाए हाथ, लेकिन कांग्रेस के सामने हैं 3 चुनौतियां

अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने भले ही मिलाए हाथ, लेकिन कांग्रेस के सामने हैं 3 चुनौतियां

by admin

नईदिल्ली (ए)।  राजस्थान में इस महीने यानी साल 2023 के अंत तक होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों ने ही अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. प्रदेश के राजनीतिक इतिहास को देखें तो इस राज्य में आज तक जनता ने एक पार्टी की सरकार को लगातार दूसरा मौका नहीं दिया है.  अगर इस बार कांग्रेस की जीत होती है तो राजस्थान की पिछले तीस सालों से चली आ रही परंपरा भी बदल जाएगी.

हालांकि राज्य में जीत दर्ज करने के लिए कांग्रेस को अभी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. अब तक पार्टी के पास सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के दो कद्दावर नेता अशोक गहलोत सचिन पायलट के बीच सुलह करवाना था. दरअसल पिछले चुनाव के बाद से ही राजस्थान में कांग्रेस के अंदर दो खेमे हो गए थे. बीते 5 सालों में पार्टी को राजस्थान में कई बार बगावत देखनी पड़ी. एक बार तो मामला अदालत की चौखट तक पहुंच गया था.

लेकिन कुछ महीने पहले ही कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने राजस्थान के दोनों नेताओं से मुलाकात कर दोनों की सुलह कराई थी. इस मुलाकात के बाद उन्होंने कहा था, ‘अशोक गहलोत और सचिन पायलट एकजुट होकर विधानसभा चुनाव लड़ने पर सहमत हैं.’  इसके साथ ही दोनों नेताओं ने एक दूसरे को लेकर कोई बयानबाजी नहीं की है. जिससे माना जा रहा है कि फिलहाल अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों आपसी गिले शिकवे भुलाकर पार्टी के लिए एकजुटता के साथ मैदान में उतर गए हैं.

अब भले कांग्रेस की अंतरिम कलह पर फुलस्टॉप लग गया हो लेकिन इस साल होने वाले चुनाव में जीत दर्ज करने के पार्टी की चुनौतियां खत्म नहीं हुई है. चुनाव से पहले राज्य में होने वाले तमाम सर्वे और उनके परिणाम बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस, दोनों ही पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर हो सकती है. हाल ही में जारी किए गए सी वोटर में भारतीय जनता पार्टी को बढ़त मिलती नजर आई थी. इसके अलावा  IANS एजेंसी पोल स्ट्रेट सर्वे में कांग्रेस को 200 में से 97-105 सीटें मिल रही थी तो वहीं भारतीय जनता पार्टी को भी 89-97 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है.

 

ऐसे में रिपोर्ट में समझते हैं कि लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव में किस तरह सिलसिलेवार तरीके से कांग्रेस के लिए 3 बड़ी चुनौतियां सामने आ रही हैं. 

1. गहलोत सरकार पर हिंदुत्व विरोधी होने का आरोप
चुनाव से पहले कांग्रेस पर भारतीय जनता पार्टी ने कई आरोप लगाए. इन आरोपों में अशोक गहलोत का हिंदुत्व विरोधी होने का आरोप एक बड़ा मुद्दा बनकर सामने आया है. अशोक गहलोत की सरकार पर भारतीय जनता पार्टी कई बार हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाती रही है. ये वो मुद्दा है जिस पर कांग्रेस फिलहाल बैकफुट पर है. हालांकि कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदलकर इस बार हिंदू तीर्थस्थलों, धार्मिक पर्यटन स्थलों, मंदिरों में जमकर काम किए हैं और कई योजनाएं भी चलाई हैं.

बुधवार यानी 26 सितम्बर को राजस्थान में चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी की चार दिशाओं से शुरू की गई परिवर्तन यात्रा में शामिल हुए असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा यात्रा ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा था, ‘ अशोक गहलोत और राहुल गांधी हर जगह जाते हैं लेकिन रामलला के दर्शन करने नहीं जाते हैं, क्योंकि वहां जाने से उनका बाबर नाराज हो जाएगा, पता नहीं उन्हें बाबर और औरंगजेब से क्या प्रेम है.’

असम के सीएम ने आगे कहा कि, ‘राजस्थान में हजार सालों से हिंदू है और चांद और सूरज जब तक है हिंदू रहेगा. यहां कोई कांग्रेस की इजाजत लेकर हिंदू नहीं बना था और यहां हिंदू पैदा होगा, बड़ा होगा और यहीं से निकलकर विश्वगुरु बनेगा.’

2. राजेंद्र गुढ़ा का गंभीर आरोप 

कुछ दिन पहले ही कांग्रेस में ही मंत्री रहते ही राजस्थान विधानसभा में राजेंद्र गुढ़ा ने अपनी ही सरकार को महिलाओं पर अत्याचार रोकने में विफल बता दिया और कटघरे में खड़ा कर दिया. पार्टी का हिस्सा रहते हुए महिलाओं पर अत्याचार जैसे बयान देने के साथ ही राजेंद्र गुढ़ा की लाल डायरी भी चुनावी साल में गहलोत सरकार के लिए गले की फांस बन गया है.

दरअसल इस साल जुलाई के महीने में गुढ़ा एक लाल डायरी लेकर विधानसभा पहुंच गए थे. उन्होंने दावा किया था कि इस डायरी में अशोक गहलोत के खिलाफ आरोपों की पूरी फेहरिस्त लिखी है. राजेंद्र गुढ़ा का आरोप था कि इस डायरी में संकट के वक्त कांग्रेस ने जितने भी विधायकों को खरीदा है उसका पूरा लेखा-जोखा इस डायरी में लिखा हुआ था. इन आरोपों के बाद गहलोत सरकार की काफी किरकिरी हुई थी और इस डायरी ने राजस्थान की सियासी तपिश बढ़ा दी थी.

ये तो तय है कि चुनाव प्रचार के दौरान विपक्षी पार्टियां उस लाल डायरी को लेकर कांग्रेस को घेरेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस लाल डायरी को लेकर सीएम अशोक गहलोत और कांग्रेस पार्टी पर वार कर चुके हैं. प्रधानमंत्री ने कांग्रेस की सरकार पर लूट की दुकान चलाने का आरोप लगाया था और राजस्थान की लाल डायरी को इसका सबसे ताजा उदाहरण बताया.

3. पांच साल में सरकार बदलने का ट्रेंड 

पिछले 30 साल से चले आ रहे राजस्थान के एक कार्यकाल के बाद सरकार बदलने के इस ट्रेंड को तोड़ना भी कांग्रेस के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. ज्यादातर लोगों को उम्मीद है कि इस बार राज्य में सरकार बदलनी  की परंपरा के अनुसार भारतीय जनता पार्टी की जीत होगी. ऐसे में अब कांग्रेस को चुनाव प्रचारों के दौरान जनता को ज्यादा विश्वास दिलाना होगा कि उनकी सरकार भारतीय जनता पार्टी से बेहतर क्यों है.

कैसे सुलझी सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच की लड़ाई 

साल 2022 के शुरुआत से ही सचिन पायलट ने गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. 2023 का अप्रैल महीना आते आते सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन कर दिया था. सचिन पायलट की तीन मांगें थी.

  • राज्य में जब वसुंधरा राजे सिंधिया सीएम थी उस वक्त हुए घोटालों की जांच हो.
  • राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी) को रद्द करके नई व्यवस्था शुरू की जाए.
  • पेपर लीक और परीक्षा रद्द होने से जिन छात्रों का नुकसान हुआ उन्हें आर्थिक मुआवजा दिया जाए.

सचिन पायलट ने इन तीन मांगो को लेकर मई महीने में अजमेर से लेकर जयपुर तक पांच दिवसीय यात्रा निकाली. जिसके बाद बैठक हुई और सचिन पायलट ने वहां भी अपनी इन्हीं तीन मांगों को रखा. जिसके बाद उनकी शर्तें मान ली गई. सचिन पायलट ने उस वक्त कहा था कि आने वाले चुनाव उन्हें केंद्र या राज्य दो ज़िम्मेदारी देगा वह उसे पूरे लगन के साथ निभाएगी. उन्होंने उस वक्त कहा था कि भविष्य में भी पार्टी जो निर्देश देगी, मैं वहीं करूंगा.”

अब समझते हैं 19 जिले बनाने का क्या चुनाव में मिलेगा फायदा 

राजस्थान अब देश का तीसरा राज्य बन गया जिसमें  सबसे ज्यादा जिले हैं. राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बजट के जवाब में 19 जिलों की घोषणा की थी, उस वक्त कई सवाल उठे. विशेषज्ञों का मानना था कि ये केवल घोषणा बनकर ही रह जाएगा.

लेकिन अब जब ये जिले अस्तित्व में आ गए हैं तो इसे गहलोत की कांग्रेस सरकार को एक बार फिर सत्ता में लाने की सबसे आक्रामक नीति के तौर पर देखा जा रहा है. माना जा रहा है कि इस कदम का फायदा कांग्रेस सरकार को चुनावों जरूर मिलेगा.

इतना ही नहीं अपने साल के कार्यकाल में अशोक गहलोत ने कई ऐसी स्कीमें शुरू की जिसका सीधा लाभ आम जन को पहुंचा है. इन स्कीमों में ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) लागू करने की पहल, चिरंजीवी बीमा योजना, फ्री बिजली, महिलाओं को फ्री स्मार्टफोन, राशन किट शामिल है.

राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की चुनौतियां

राजस्थान में लगातार चुनाव रैलियां हो रही है. इन रैलियों में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी अपने अपने सरकार के सत्ता में आने का दावा कर रही है. लेकिन, कांग्रेस के साथ साथ भारतीय जनता पार्टी के पास भी कम चुनौतियां नहीं है. ये तो जगजाहिर है कि कांग्रेस की तरह ही भारतीय जनता पार्टी के अंदर भी एकजुटता की कमी है. ऐसे में माना जा रहा है कि पार्टी मध्य प्रदेश की तरह ही राजस्थान में भी केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को विधानसभा उम्मीदवार बना सकती है.

भारतीय जनता पार्टी को लगता है कि ऐसा करने से भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में माहौल बनेगा. इससे संदेश जाएगा कि भारतीय जनता पार्टी चुनाव में अपनी बेस्ट टीम उतार रही है. इससे कांग्रेस पर भारतीय जनता पार्ट को मनोवैज्ञानिक बढ़त मिलेगी. वोट करने वाले वोटरों और कार्यकर्ताओं में जोश आएगा और उनका उत्साह बढ़ेगा.

पिछले चुनाव में किसे कितनी सीटें 

पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो राजस्थान में साल 2018 में 200  विधानसभा सीटों पर चुनाव हुआ था. जिसमें कांग्रेस ने 99 सीटें जीती थी. जो बहुमत की संख्या से सिर्फ दो सीट कम थी. राज्य में किसी भी पार्टी को बहुमत से जीत हासिल करनी है तो कम से कम 101 सीटें अपने नाम करनी होगी.

साल 2018 में 99 सीटें अपने नाम करने के बाद कांग्रेस ने बहुजन समाज पार्टी (BSP) और राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के समर्थन के साथ बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया और सत्ता में आ गई. वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी (BJP) को 73 सीटें मिली थी और कांग्रेस के बाद  भारतीय जनता पार्टी दूसरे नंबर पर रही.

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