नई दिल्ली (ए)। सेना की यूनिट रन कैंटीन के कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारी माना जाएगा कि नहीं यह अब सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ तय करेगी। सुप्रीम कोर्ट की दो न्यायाधीशों की पीठ ने इस संबंध में तीन – तीन न्यायाधीशों की दो पीठों के विरोधाभासी फैसलों को देखते हुए मामला विचार के लिए बड़ी पीठ को भेज दिया है।
क्या है सेना की यूनिट रन कैंटीन?
सेना की यूनिट रन कैंटीन वो कैंटीन होती हैं, जहां से सैन्यकर्मी समान खरीदतें हैं जिन्हें आम बोलचाल की भाषा में आर्मी कैंटीन भी कहा जाता है। देश भर में सेना की सैकड़ों यूनिट रन कैंटीन हैं, जहां हजारों कर्मचारी काम करते हैं। ऐसे में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा वह व्यापक असर रखने वाला होगा। उस फैसले से इन कैंटीनों में काम करने वाले हजारों कर्मचारी प्रभावित होंगे।
इस मामले में केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट के 2 अप्रैल 2009 के आदेश को चुनौती दे रखी है। दिल्ली हाई कोर्ट ने ट्रिब्युनल के फैसले पर मुहर लगाते हुए केंद्र सरकार की रिट याचिका खारिज कर दी थी। ट्रिब्युनल ने मोहम्मद असलम मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए कर्मचारियों के पक्ष में फैसला दिया था। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की अपील 2011 से लंबित है।
14 सितंबर को हुई थी सुनवाई
केंद्र सरकार की अपीलीय याचिका गत गुरुवार 14 सितंबर को न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने के सामने सुनवाई पर लगी थी। तीन-तीन न्यायाधीशों की दो पीठों के विरोधाभासी फैसलों को देखते हुए मामला विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजते हुए केस को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष पेश करने का आदेश दिया है ताकि प्रधान न्यायाधीश पीठ गठन के संबंध में उचित आदेश दें।
चूंकि इस मामले में तीन-तीन न्यायाधीशों की दो पीठों के अलग अलग फैसले हैं इसे देखते हुए संभावना लगती है कि मामला विचार के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ को भी जा सकता है। क्योंकि तीन न्यायाधीशों की पीठ के फैसले को उससे बड़ी पीठ ही पलट सकती है। हालांकि, यह चीफ जस्टिस को तय कहना होगा कि मामला तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष लगेगा का पांच न्यायाधीशों की पीठ में।
यहां मामला सुप्रीम कोर्ट के दो मामलों मोहम्मद असलम और आरआर पिल्लई के मामले में आये दो विरोधाभासी फैसलों को लेकर फंसा है। भारत सरकार बनाम मोहम्मद असलम मामले में सुप्रीम कोर्ट की दो न्यायाधीशों की पीठ ने 2001 में दिए फैसले में कहा था कि आर्मी की यूनिट रन कैंटीन के कर्मचारियों की स्थिति सरकारी कर्मचारियों की तरह होनी चाहिए।
यूनिट रन कैंटीन के कर्मचारी सरकारी कर्मचारी नहींः केंद्र
इस फैसले में दी गई व्यवस्था को बाद में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने भी स्वीकार किया था, जबकि आर आर पिल्लई के मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने फैसले में कहा था कि युनिट रन कैंटीन के कर्मचारी सरकारी कर्मचारी नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के 14 सिंतबंर को हुई सुनवाई में केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि यूनिट रन कैंटीन के कर्मचारी सरकारी कर्मचारी नहीं हैं।
सरकार की ओर से दलील दी गई कि आर आर पिल्लई के मामले में दिये फैसले में कोर्ट ने कहा है कि मोहम्मद असलम का फैसला सही नहीं है। सरकार का कहना था कि कोर्ट उसकी याचिका स्वीकार करे, जबकि दूसरी ओर कर्मचारी की ओर से पेश वकील ने मोहम्मद असलम फैसले में दी गई व्यवस्था की तरफदारी की। वकील ने पांच फरवरी 2001 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इसमें सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मोहम्मद असलम के फैसले में दी गई व्यवस्था को मंजूर किया है।
कर्मचारी के वकील ने कहा कि तीन तीन न्यायाधीशों की दो पीठों के फैसलों में विरोधाभास होने के चलते इस केस को विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजा जाना चाहिए। हालांकि केंद्र सरकार का कहना था कि पांच फरवरी 2001 का आदेश छोटा सा कुछ पंक्तियों का आदेश हैं उसमें विस्तार से मसले पर विचार नहीं किया गया है इसलिए उसे नहीं माना जाना चाहिए, लेकिन सरकार के वकील इस बात से इनकार नहीं कर पायी कि उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से मोहम्मद असलम के मामले में दिये गए फैसले को स्वीकार किया है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद मौजूदा स्थिति को देखते हुए मामले को विचार के लिए बड़ी पीठ को भेज दिया।