Home छत्तीसगढ़ ” बीड़ी जलई ले जिगर पे पिया.”…केवल सुनें , अमल में लाकर परिवार भष्म न करें

” बीड़ी जलई ले जिगर पे पिया.”…केवल सुनें , अमल में लाकर परिवार भष्म न करें

by Surendra Tripathi

31 मई तंबाकू निषेध दिवस पर …….

नशे की लत एक बार लग जाए तो फिर वह अंतिम सांस तक पीछा नहीं छोड़ती !  हमने एक नहीं अनेक कहावतें इस संबंध में सुन रखी हैं । बावजूद इसके अपने स्वास्थ्य को दांव पर लगाकर हम नशे के चंगुल में फंसे हुए हैं ।  ” बीड़ी जलई ले जिगर से पिया …..” गाना भले ही पुराना पड़ चुका हो , पर बीड़ी जलाने में भारत में कहीं कोई कमी नजर नहीं आ रही है । बीड़ी और सिगरेट के माध्यम से तंबाकू का जहर तकरीबन पूरे भारतवर्ष में लाइलाज बीमारी की तरह फैल चुका है । तंबाकू का इस्तेमाल करने वालों की संख्या में लगातार इजाफा देखा जा रहा है । यही कारण है कि जन- सामान्य को इस बुरी लत से बचाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रतिवर्ष 31 मई को विश्व तंबाकू निषेध दिवस के रूप में मनाए जाने की शुरुआत की गई है । आश्चर्यजनक बात यह है कि पूरे विश्व में केवल पुरुष ही नहीं महिलाएं भी तंबाकू का सेवन करने में पीछे नहीं है !  आंकड़ों पर विश्वास करें तो दुनिया भर के 66% पुरुष और लगभग 40% महिलाएं किसी न किसी रूप में तंबाकू को अपने गले से नीचे जरूर उतार रही हैं ! तंबाकू रूपी जहरीले नाग से प्रति रोज केवल भारतवर्ष में लगभग तीन हजार जिंदगियां मौत की नींद सो रही है!  विश्व स्तर पर बात करें तो लगभग 54 लाख और भारतवर्ष में लगभग 9 लाख लोग तंबाकू के कारण समय से पहले अपने परिवारों को बेसहारा कर मौत की आगोश में समा रहे हैं ।
तंबाकू को खैनी के रूप में मुंह में दबाने अथवा किसी अन्य प्रकार से पीने के मामले में भारतवर्ष सबसे अधिक कठिन दौर से गुजर रहा है । तंबाकू सेवन के कारण प्रतिवर्ष विश्व भर में सबसे ज्यादा मौतें भारतवर्ष में हो रही हैं ! इसमें मुंह के कैंसर के सबसे ज्यादा मामले भी भारतवर्ष में ही पाए जा रहे हैं । गुटखा खाने की लत के चलते ही लोगों को मुंह के कैंसर जैसी घातक बीमारी का सामना करना पड़ रहा है । बावजूद इसके हमारी पीढ़ी अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंतित दिखाई नहीं पड़ रही है । चौंकाने वाली बात तो यह है कि युवा और वृद्धों को अगर छोड़ भी दिया जाए तो , शालाओं में पढ़ने वाले किशोरों ने भी तंबाकू को अपने जीवन का आवश्यक अंग बना लिया है । भारत सरकार के अथक प्रयास भी इस मामले में असफल ही दिखाई पड़ रहे हैं । स्कूल कॉलेजों के 200 मीटर के दायरे में तंबाकू या तंबाकू से बने उत्पादों को ना बेचने के कड़े कानून के बावजूद हम उसे बंद नहीं कर पा रहे हैं । यही कारण है कि स्कूलों में पढ़ने वाले हमारे नौनिहाल तंबाकू के गुलाम बने हुए हैं । तंबाकू के बढ़ते इस्तेमाल के पीछे सामाजिक और व्यक्तिगत दोनों कारण दिखाई पड़ रहे हैं । गांव की चौपाल पर लगने वाली बैठकें बिना बीड़ी और सिगरेट के अधूरी ही मानी जाती हैं । हुक्का- पानी बंद कर देने जैसे जुमले भी तंबाकू के प्रति भारतीय समाज की मानसिकता को दर्शाते रहे हैं । शादी- विवाह अथवा अन्य आयोजनों में भी तंबाकू किसी न किसी रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही है । भारतवर्ष में प्राचीन समय से चले आ रहे पान के शौक ने तंबाकू को हमारे जीवन का अहम हिस्सा बना दिया है । पान के साथ खाई जाने वाली बीड़ी पत्ती का सेवन तो अब मानो हाई प्रोफाइल शौक हो गया है !
वर्तमान समय में युवा वर्ग में बढ़ रहा मानसिक तनाव तंबाकू के प्रचार- प्रसार में आग में घी का काम करता दिख रहा है । हालांकि हमारे देश की सरकार ने 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कानूनन तंबाकू बेचने पर रोक लगाई हुई है , किंतु मुंह से धुआं निकालते बच्चे आसानी से दिखाई पड़ जाते हैं। हमारे देश की सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की एफसीटीसी नामक संधि पर हस्ताक्षर किए हैं । इस संधि के चलते वह तंबाकू के इस्तेमाल को रोकने के उपाय करने हेतु बाध्य है । स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार अब किसी भी खाद्य पदार्थ में निकोटिन और तंबाकू का प्रयोग नहीं किया जा सकता है । हमारे देश की बहुत सी राज्य सरकारों ने तंबाकू , पान मसालों और गुटखों के उत्पादन , बिक्री और भंडारण पर रोक लगा रखा है । इन सब प्रतिबंधों के बावजूद भी ऐसा कोई शहर नहीं जहां आसानी से तंबाकू युक्त गुटखा या रगड़ कर खाई जाने वाली बीड़ी पत्ती अथवा रेडीमेड बनी बनाई खैनी उपलब्ध ना होती हो ! एक सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि तंबाकू युक्त गुटखे और पान मसाले में लगभग चार हजार केमिकल्स पाए जाते हैं , जिनमें से तीस से कैंसर होता है । तंबाकू शरीर के लगभग हर अंग पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और इससे होने वाली गंभीर बीमारियां भी कम नहीं है । भारत सरकार प्रतिवर्ष तंबाकू से होने वाली बीमारियों के इलाज पर लगभग 50 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है, जबकि तंबाकू से प्राप्त कुल राजस्व इसकी तुलना में कुछ भी नहीं है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रतिवर्ष तंबाकू सेवन को आम जनजीवन से दूर रखने के लिए विशेष थीम तैयार करता आ रहा है । इस वर्ष मनाए जाने वाले तंबाकू निषेध दिवस 2023 के लिए विश्व स्वास्थ संगठन ने ” छोड़ो और जियो ” अथवा ” क्विट एंड विन ” थीम के साथ नो स्मोकिंग डे के मुख्य संदेश को प्रचारित करने का संदेश जारी किया है । विश्व स्वास्थ संगठन इसी तरह की अलग-अलग थीम के सहारे भलाई और वित्तीय लाभ के लिए धूम्रपान छोड़ने के प्रयासों को अमल में लाता रहा है । विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्र में 15 वर्ष और उससे कम उम्र के पुरुषों व महिलाओं में तंबाकू सेवन की दर सबसे ज्यादा लगभग 45% है।  विश्व स्वास्थ्य संगठन के लगातार प्रचार- प्रसार का सकारात्मक परिणाम भी हमारे समक्ष है , जो हमें संबल प्रदान कर सकता है । इसके अनुसार तंबाकू सेवन करने वालों की संख्या में तेजी से कमी आने का अनुमान लगाया जा रहा है ।  ऐसा समझा जा रहा है कि सन 2025 तक तंबाकू सेवन करने वालों की संख्या में लगभग 25%  की कमी आ सकती है । तंबाकू सेवन कि इस प्रकार की कमी के पीछे विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ ही सामाजिक संस्थाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जा रहा है । सर्वे के आंकड़े यह भी बताते हैं कि 13 से 15 वर्ष के लगभग चार करोड़ तीस लाख बच्चे 2018 में तंबाकू सेवन कर रहे थे । इनमें लगभग एक करोड़ 40 लाख लड़कियां और दो करोड़ 90 लाख लड़के थे । इसी तरह 2018 में तंबाकू सेवन करने वाली महिलाओं की संख्या 24 करोड़ 40 लाख थी । वर्ष 2025 तक तंबाकू सेवन करने वाली महिलाओं की संख्या में लगभग तीन करोड़ 20 लाख की कमी होने का अनुमान लगाया जा रहा है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि 70 लाख से ज्यादा लोगों की मौत सीधे तौर पर तंबाकू सेवन से होती आ रही है । लगभग 12 लाख ऐसे लोग भी मौत की नींद सो रहे हैं , जो खुद तो धूम्रपान नहीं करते किंतु वह धूम्रपान करने वालों के आसपास होने की वजह से इसके दुष्प्रभावों के शिकार हो रहे हैं । साथ ही यह भी माना जा रहा है कि तंबाकू सेवन से संबंधित ज्यादातर मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों में हो रही हैं। तंबाकू से होने वाले नुकसान में ” थर्ड हैंड स्मोकिंग ” भी विशेष भूमिका निभा रही है । इसका तात्पर्य यह है कि सिगरेट के बचे हुए हिस्से जैसे बची हुई राख , सिगरेट बट , और जिस जगह धूम्रपान किया गया है वहां के वातावरण में उपस्थित हुए केमिकल से लोगों को नुकसान पहुंचना । इसे और अधिक स्पष्ट करते हुए बताया जाता है कि ऑफिस का कमरा , बंद कार , घर और वहां मौजूद फर्नीचर धूम्रपान के  ” थर्ड हैंड स्मोकिंग ” एरिया बन रहे हैं । इस मामले में अच्छी बात यह है कि सावधानी बरतने से इसका खतरा आसानी से कम किया जा सकता है । यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने सभी ऐसे स्थलों को जहां लोगों का बहुतायत में आना जाना बना रहता है वहां ” स्मोकिंग जोन ” अलग से बनाने का फरमान जारी किया गया है । थर्ड हैंड स्मोकिंग के मामले लगातार पूरे विश्व में बढ़ते दिखाई पड़ रहे हैं जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ ही सरकारों तथा सामाजिक संस्थाओं के लिए भी चिंता का विषय बने हुए हैं । धूम्रपान के विषय में एक और तथ्य सामने आ रहा है ,जो  ” पैसिव स्मोकर्स ” के रूप में जाने जाते हैं । ये ऐसे लोग होते हैं जो धूम्रपान से दूर रहते हैं  किंतु उनके आसपास बीड़ी सिगरेट का धुआं उड़ाने वाले इन्हें अपनी चपेट में ले लेते हैं ।
डॉ सूर्यकांत मिश्रा
राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़ )

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