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व्यंग्य……
परीक्षाओं के शुरू होने के साथ ही विद्यार्थी वर्ग के चेहरों को पढ़ने की मेरी आदत ने निष्कर्ष के तौर पर कुछ लेखन कार्य के लिए प्रेरित कर दिया । जैसे ही परीक्षाओं की तिथि और समय सारिणी विद्यार्थियों के हाथ में पहुंचती है , एक युद्ध जैसी स्थिति का आभास उनके मुखमंडल पर दिखाई पड़ने लगता है । सफलता और असफलता नामक परिणामों की आशा और निराशा के बीच झूलता विद्यार्थी जीवन खाने – पीने से लेकर मौज – मस्ती और नींद से अपना नाता तोड लेता है । मोबाइल सहित कंप्यूटर में खेले जाने वाले मनोरंजक गेम तथा एक – दूसरे पर कटाक्ष करने वाले टिक – टाक और न जाने कौन – कौन सी विधाएं अचानक ही रसातल में जा चुकी होती हैं । परीक्षा की तैयारी के संबंध में एक – दूसरे से चर्चाओं का दौर चल निकलता है । ऐसे परिवर्तन जहां माता – पिता को सुकून देने वाले होते हैं वहीं विद्यार्थियों के लिए किसी बड़ी जंग की तैयारी से कम नहीं होते हैं । परीक्षाओं की समाप्ति के पश्चात हम यह नहीं मान सकते कि विद्यार्थी अब पूर्ण रूप से निश्चिंत हो गए हैं ! उनकी सारी तैयारी और कुरुक्षेत्र रूपी परीक्षा कक्ष में विजय होने के लिए चलाए गए तीर सही निशाने पर लगे हैं या नहीं ,अर्थात परीक्षा परिणामों की चिंता अगली जीत – हार की कुशंका के साथ माथे की लकीरों को और गाढ़ा कर देती हैं । साथ ही एक भय भी असफलता रूपी दानव के रूप में न तो सोने देता है और न ही मन में किसी प्रकार के उत्साह को जन्म लेने देता है ।
परीक्षा समाप्ति के उपरांत परिणामों का दौर शुरू हो चुका था । स्थानीय स्तर के परीक्षा परिणाम जैसे – जैसे सामने आ रहे थे वैसे – वैसे बोर्ड परीक्षा के नतीजों का इंतजार भयानक काली छाया के रूप में अचानक ही मन में भय उत्पन्न करने लगा था । परीक्षा परिणामों का मौसम और प्रतिदिन समाचार पत्रों में उच्च अंक प्राप्त लड़कियों की उछलती – कूदती तस्वीरें शरीर में सिहरन पैदा करने वाली थीं । प्राविण्य सूची में छात्राओं की भरमार इस कदर छात्रों को कपकपाने विवश कर रही थीं मानो काली अंधेरी रात में किसी भूत के साए ने जकड़ लिया हो । टॉपर्स ( सामान्यतः लड़कियां ) के साक्षात्कार । उनसे पूछे जाने वाले अलग – अलग तरह के सवाल । सफलता का श्रेय किसे देना चाहते हैं ? प्रतिदिन कितने घंटे पढ़ाई में लगाया करते थे ? क्या इस सफलता की उम्मीद थी ? अब आगे की क्या योजना है ? अपने जूनियर्स को कोई संदेश देना चाहते हैं ? इस तरह के इंटरव्यू पढ़कर मैं भी अपने विद्यार्थी जीवन के फ्लैश बैक में चला गया । मुझे याद आता है जब खुद मेरा बोर्ड ( उस समय ग्यारहवीं ) का परीक्षा परिणाम आने वाला था । कुछ गलत न हो जाए इस आशंका के साथ कुछ दिन पूर्व रोज ही नाई से शरीर की मालिश करवाना सामान्य दिनचर्या में शामिल हो चुका था । मेरे दोनो कान खुद की मरोड़ के साथ लालिमा जैसी कष्टप्रद स्थिति के लिए तैयार होने लगे थे । मात्र तैंतीस प्रतिशत अंकों की संवेदनशील याचना के साथ तैंतीस करोड़ देवी – देवताओं को घुस देने की हर प्रक्रिया शुरू की जा चुकी थी । इतना ही नहीं कुछ पड़ोसी और दोस्ती में शामिल लोग मजा लेने की तमन्ना के साथ छुपे रुस्तमों की तरह मेरे सार्वजनिक जुलूस की मंगल बेला का बेसब्री से इंतजार करने लगे थे ।
मन में समाए डर के बीच परीक्षा में फेल हो जाने का भय रोम – रोम में कंपकंपी पैदा कर रहा था ,तो दूसरी ओर साथियों के पास होने के साथ ही उच्च अंकों की प्राप्ति जैसी हृदय में पैठ कर चुकी भयंकर तस्वीर मुझे नकारात्मकता की ओर ले जा रही थी । मेरी आत्मा और मेरा मन रह -रहकर यह कह रहा था कि फेल होने की जिल्लत मैं अकेला क्यों भोगूं ? मेरे साथी भी मेरी जिल्लत में भागीदार हों ! एक और गुप्त भय इस रूप में सताने लगा था कि कहीं सारे मित्र पास हो गए तो उनकी दोस्ती से भी हाथ धोना पड़ सकता है । उससे भी कहीं ज्यादा नकारात्मक विचार उन लड़कियों से बिछड़ जाने के नाम पर उठ रहे थे जिन पर हमेशा मैंने इंप्रेशन जमाने की कोशिश की थी ! शायद उन्हें देखकर ही उनकी तुलना में कुछ घंटे पढ़ाई में बिताए थे । मेरा हृदय तब तडफन की स्थिति मे पहंच जाता था जब यह सोच पैदा होती थी कि फेल हो गया तो मेरा भविष्य उन लड़कियों को भी मुझसे दूर कर देगा जिनसे मैं घंटों बातें किया करता था ! नतीजों के तौर पर कहूं तो असफल होने पर घर के बड़ों द्वारा हड्डियों का तोड़ा जाना और दोस्त रूपी लड़कियों द्वारा दिल के टुकड़े – टुकड़े होने से बचाने की सारी जिम्मेदारी अब माध्यमिक शिक्षा मंडल पर ही टिकी हुई थी । इन सारी नकारात्मक सोच के बीच वह दिन भी आ गया जब नतीजे समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए ।
बड़ी उम्मीद के साथ मैने समाचार पत्र खरीदा और घर की ओर चल पड़ा । घर पहुंचते ही समाचार पत्र को किसी मिठाई के डिब्बे की भांति हर वरिष्ठ और आदरणीय लपकने दौड़ पड़े । आखिरकार मेरे द्वारा रोल नंबर लाते ही पिताजी ने तंज कसा और कहा पास डिवीजन से ढूंढना शुरू करो ! मैने अपना तिरस्कार और गुस्सा पी लिया और पास डिवीजन के साथ ही थर्ड डिवीजन की लाइन में रोल नंबर ढूंढने लगा । रोल नंबर दोनो ही लाइन में नहीं दिखा ! ऐसे में मन में आशंका पैदा होने लगी कि जरूर कोई न कोई अनिष्ट हो चुका हैं ! शरीर के अंग – अंग में कुटाई से पूर्व के दर्द का एहसास होने लगा । इसी बीच पिताजी की भौहें तन गई और उन्होंने पूछा कि यहीं पिटोगे या फिर गली में ? मैं तो भय से थरथराने लगा था । कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकूं ,उससे पूर्व ही घर पर रखा फोन का चोंगा घनघना उठा । डरते – डरते मैने चोगा उठाया । दूसरी ओर से मित्र की बड़ी ही मधुर वाणी ने कानों में रस घोल दिया । मेरे मित्र ने बताया कि मैं पास हो गया हूं ! सुनते ही मेरी खुशी का ठिकाना न रहा । पिताजी सहित सभी पारिवारिक सदस्य भी हंसी – खुशी की दुनिया मेंं खो गए ।
दोस्तों मैं झूठ नहीं बोलता । पूरी ईमानदारी के साथ बताना चाहता हूं कि बोर्ड परीक्षा में मेरा पास होना एक ” आध्यात्मिक ” घटना के रूप में दर्ज हो गया ! मेरे ऐसे मित्र जो ईश्वर पर आस्था नहीं रखते थे , वे पूरी तरह से आस्तिक हो गए ! दूसरी ओर ऐसे मित्रोंं की भी कमी नहीं थी जो पूर्ण रूप से ईश्वर को मानते और उन पर आस्था रखते थे ,उनका ईश्वर पर से विश्वास ही उठ गया ! खैर जिसे जो करना था वे उस प्रकार से आगे बढ़ने लगे , किंतु मेरा विश्वास पूरी मजबूती के साथ ईश्वर पर आस्था रखने वाला हो गया ।
डॉ.सूर्यकांत मिश्रा
राजनांदगांव ( छ. ग.)