Home Uncategorized श्रमिक दिवस: न्यूनतम मजदूरी के लिए अब तक तरस रहे कर्मवीर !

श्रमिक दिवस: न्यूनतम मजदूरी के लिए अब तक तरस रहे कर्मवीर !

by Surendra Tripathi

01मई श्रमिक दिवस पर……..

जिन मजबूत और बलिष्ठ कंधों पर विश्व की उन्नति का दारोमदार टिका है उन सृजनकर्ताओं को एक मई का दिन समर्पित है । इन्हें ही हम मजदूर अथवा श्रमिक नाम से जानते हैं । दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं जो श्रमिकों के बिना संपन्न हो सके । आप कह सकते हैं कि यह सौ फीसदी सत्य नहीं है । कॉर्पोरेट जगत से लेकर सी ए और डॉक्टर इंजीनियर श्रमिकों के बिना ही अपना  हुनर दिखाते हैं ! जरा गौर करें जिस ए सी कमरे में ऐसे पेशेवर अपनी विद्वता का परिचय देते हैं , उन कमरों की एक..एक चीज दहाड़ मारते हुए श्रमिकों का गुणगान कर रही होती है । मसलन वहां लगे फर्नीचर , विद्युत स्विच बोर्ड , पंखे, ए सी और सबसे बड़ी बात वह चहार दिवारी जहां शान से विराजकर ऐसे लोग खुद की छाती चौड़ी करते दिखाई पड़ रहे होते हैं ,सबमें बिना श्रमिक के कल्पना असंभव है । वास्तव में राष्ट्र की प्रगति एवं राष्ट्रीय हितों की पूर्ति की मुख्य बैसाखी इन्हीं के कंधों पर टिकी देखी जा सकती है । वह मजदूर वर्ग ही है जो अपनी हाड़तोड़ मेहनत के बल पर किसी भी देश की प्रगति और विकास के पहिए को गति प्रदान करता है, और इसमें डीजल, पेट्रोल तथा हर प्रकार की ऊर्जा उसके पसीने के रूप में काम करती है ।
पूरे विश्व में अपने कर्म को ही पूजा समझने वाला श्रमिक वर्ग ही आज अपनी कल्याणकारी योजनाओं के लिए तरस रहा है । इससे बड़ी विडंबना और नहीं हो सकती । हम साल दर साल यह देखते आ रहे हैं कि एक मई के दिन बगुलाभागत अचानक प्रकट हो जाते हैं और देश भर में मजदूरों के हितैषी बनने का स्वांग रचते हुए उनके हित की बात करते बड़ी.. बड़ी सभाओं में डींगें हांकने से पीछे नहीं रहते हैं । वास्तव में उक्त सभी आयोजन दिखावे की कहानी ही बनते रहे हैं । बड़े.. बड़े लुभावने वादों से श्रमिकों की सारी तकलीफें दूर कर देने की बात करने वाले ऐसे लोगों का चेहरा दूसरे ही दिन से शोषण करने वाले प्रशासक के रूप में सामने आने लगता है । पानी की तरह साफ और पवित्र हृदय लिए सभा .. सोसायटियों में उपस्थित यही मजदूर वर्ग लोक.. लुभावनी और चिकनी..चुपड़ी बातों को अपने हित का विषय मानते हुए तालियों की गड़गड़ाहट के बीच जयकारों के साथ अपने उन्हीं घरों में लौट पड़ता है , जहां उसकी कठिनाइयां और समस्याएं रोज की तरह उसका स्वागत करने बेचैन रहती हैं । ” रात गई और बात गई ” की तर्ज पर दूसरे ही दिन अर्थात दो मई से वह पुनः 364 दिनों के लिए उसी शोषण ,अपमान और जिल्लत तथा गुलामी जैसा जीवन जीने अभिशप्त हो चलता है । अब तो वह समय भी आ गया है जब 01 मई को भी इस वर्ग को छुट्टी न देकर कोल्हू के बैल की तरह घानी में पेरते हुए चक्कर लगवाया ही जाता है ।
ऐसी विषम और शोषणकारी परिस्थिति में मेरे मन में सवाल उठ रहा है -आखिर मजदूर दिवस किसके लिए मनाया जाता है ? क्या यह दिवस बड़े- बड़े उद्योगपतियों की मजदूरों के लिए कही गई झूठी बातों को सुनने का ही पर्याय है ? क्या मजदूरों को एक दिन सम्मानित कर देने भर से उसके संकटों का निपटारा हो जाता है ? आप कहेंगे वास्तव में ऐसे सवाल उठना लाजिमी है । फिर मजदूर दिवस क्यों मनाया जाए ? शायद इन यक्ष प्रश्नों का उत्तर सरकार के पास भी नहीं ! बावजूद इसके यक्ष रूपी राक्षस उत्तर न देने पर इन शोषकों के प्राण क्यों नहीं हर रहा है ? अपने विशेष दिवस पर भी मजदूर उत्साह न मनाते हुए पसीना बहाने विवश है ! कारण यह कि यदि वह काम नहीं करेगा तो शाम को उसके घर चूल्हा कैसे जलेगा ? स्वतंत्रता के बाद इन मजदूरों के हितों में कोई कानून नहीं बना ऐसा कहना उचित नहीं है । बड़े- बड़े श्रम कानूनों के अस्तित्व में आने के बावजूद हमारी प्रशासनिक व्यवस्था लचर दिखाई पड़ रही है , जो मजदूरों को उनके श्रम का उचित मूल्य भी नहीं दिला पा रही है । ऐसी व्यवस्था को देखते और समझते हुए मैं तो यही कह सकता हूं -” श्रमिकों के लिए बने कानून ढोल का पोल ” ही साबित हो रहे हैं । अपना खून चुसवाता मजदूर शायद इस भय से विरोध प्रकट नहीं करता कि कहीं उसे काम से न निकाल दिया जाए ? परिवार के भरण – पोषण के साथ pनिकाले जाने की भयानक तस्वीर आंखों के सामने नाचती दिख जाती है , जिसके चलते मजदूर हर जुल्म सहने तत्पर दिख रहा है ! 
देश में समय – समय पर मजदूरों के लिए नए सिरे से मापदंड निर्धारित किए जाते हैं ,किंतु क्रियान्वयन किन अंशो पर हो पा रहा है इस पर सरकार और सरकारी अधिकारी मौन हैं ! मजदूरों की समस्याओं का समाधान निकालने श्रम मंत्रालय भी अस्तित्व में है ,किंतु इसकी भूमिका भी हमेशा से संदेह के दायरे में ही रही है । आश्चर्यजनक बात तो यह है कि मजदूरों को मिलने वाली न्यूनतम मजदूरी की घोषणाएं विधानसभाओं से लेकर संसद तक में समय – समय पर होने तथा बजट प्रावधान में स्थान दिए जाने के बावजूद भी देश भर में 40 करोड़ से अधिक मजदूरों में से महज 4 से 5 करोड़ मजदूरों को ही न्यूनतम मजदूरी का लाभ मिल पा रहा है । शेष 35 से 36 करोड़ मजदूर आज भी न्यूनतम मजदूरी से महरूम हैं ! बड़े दुःख के साथ लिखना पड़ रहा है कि आजादी के 75 वर्ष बाद भी हम ऐसी व्यवस्था नहीं बना पाए हैं, जिससे मजदूर की मजदूरी को गर्व के साथ गुजारा लायक कहा जा सके ! जहां तक बात की जाए शोषण की तो ऐसा कोई कार्य स्थल नहीं जहां मजदूरों का खुले आम शोषण न किया जा रहा हो !
श्रमिक दिवस पर विचारों को कलमबद्ध करते हुए मुझे वह तस्वीर भी दिखाई पड़ रही है जो निजी संस्थानों के अलावा देश की सरकारों के चरित्र को उजागर कर रही है । अब देश के युवाओं को बेरोजगार करने के साथ ही सरकारों ने हर विभाग में अनुबंध पर नौकरियां देते हुए लोगो के हितों पर कुठाराघात करना भी शुरू कर दिया है ! देश भर के उच्च शिक्षा संस्थान इसके सबसे बड़े उदाहरण कहे जा सकते हैं । महाविद्यालयों में प्राध्यापकों की कमी अतिथि प्राध्यापक और संविदा प्राध्यापक की नियुक्ति द्वारा पूरी कर अरबों रुपए जिन पर इन शिक्षाविदों का हक है , उसे भी सरकारें डकार रही हैं ! तब हम कैसे कह सकते हैं कि एक मई श्रमिकों का दिवस है और वे इसे उत्साह पूर्वक मनाने का जज्बा रखते हैं ।
डॉ. सूर्यकांत मिश्रा
राजनांदगांव ( छ. ग.)

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