Home देश-दुनिया दो हफ्ते में चल पड़े लकवाग्रस्त चूहे, जगी उम्मीदें

दो हफ्ते में चल पड़े लकवाग्रस्त चूहे, जगी उम्मीदें

by admin

बर्लिन । जर्मनी में पैरालिसिस यानी लकवे का इलाज ढूंढ रहे वैज्ञानिकों ने चूहों पर सकारात्मक असर पाया है। इस शोध से दुनियाभर में लकवे से पीड़ित करीब 54 लाख लोगों के लिए उम्मीद जगी है। वैज्ञानिकों को रिसर्च के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता मिली है। जर्मनी की रूर यूनिवर्सिटी बोकम के रिसर्चर्स ने खराब हो चुकी चूहे की रीढ़ की हड्डी में प्रोटीन की मदद से नसें फिर से तैयार की हैं। इन चूहों के पीछे के पैर चलना बंद हो चुके थे लेकिन इलाज के बाद दो-तीन हफ्ते में वे चलने लगे। टीम ने हाइपर-इंटरल्यूकिन-6 बनाने के लिए मोटर-सेंसरी कॉर्टेक्स के नर्व सेल इंड्यूस किए। ऐसा करने के लिए जेनेटिकली इंजीनियर वायरस को इंजेक्ट किया गया जिसमें खास नर्व सेल में प्रोटीन बनाने का ब्लूप्रिंट होता है।
रिसर्चर्स अब यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि हाइपर-इंटरल्यूकिन-6 का चूहे पर सतारात्मक असर होता है या नहीं जब चोट कई हफ्ते पुरानी होती है। इसकी मदद से समझ आएगा कि इंसानों का पर ट्रायल के लिए यह तैयार है या नहीं। ये प्रोटीन रीढ़ की हड्डी को नुकसान पहुंचाने वाली चोट के खिलाफ काम करता है। चोट से ऐग्जॉन खराब होते हैं जो खाल और मांसपेशियों से दिमाग तक सिग्नल लाते- ले जाते हैं। जब ये काम करना बंद कर देते हैं तो संदेश भी बंद हो जाता है। अगर ये फाइबर चोट के बाद ठीक नहीं होते हैं तो मरीज को लकवा हो जाता है।
डायटमैन फिशर ने बताया है कि कुछ नर्व सेल के जीन थेरेपी से इलाज से दिमाग के अलग-अलग हिस्सों में नर्व सेल और रीढ़ की हड्डी में मोटरन्यूरॉन में ऐग्जॉन रीजनरेट होते हैं। इससे पहले न चल पाने वाले जीव दो-तीन हफ्ते में चलने लगते हैं। रिसर्चर्स ने बताया है कि यह प्रोटीन न सिर्फ नर्व सेल को शुरू करता है बल्कि दिमाग तक भी जाता है। इन वायरस को जीन थेरेपी के लिए भी तैयार किया गया। इसके जरिए ऐसे प्रोटीन बने जो नर्व सेल को गाइड कर सकें जिन्हें मोटरन्यूरॉन कहते हैं। ये सेल दूसरे नर्व सेल से जुड़े होते हैं जो चलने के लिए जरूरी होते हैं। ये प्रोटीन यहां तक पहुंचाया जाता है।

Share with your Friends

Related Posts

Leave a Comment