पिछले कई दशकों में भले ही दुनिया के दिगर देशों की तरह ही भारत ने भी कई उतार चढाव देखे लेकिन भारतीय गणतंत्र की चमक आज भी बरकरार है। हालांकि, व्यवस्थाएं बदली, कई कानून खत्म हो गए और कई बने, पडोसी देशों के साथ संबंध भी बदले यहां तक कि जन प्राथमिकताएं भी बदली लेकिन नहीं बदली तो भारतीय गणतंत्र की ताकत। इसकी वजह ये रही कि भारतीय संविधान में अनेक संशोधन हुए, लेकिन मूल विचारधारा, सिद्धांत और प्राथमिकताओं में कोई रददोबदल नहीं हुआ। कतिपय पडोसी देशों के हमलों, कोरोना जैसी महामारी, आतंकवादी हमलों और कुछेक जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा, किसान आंदोलन सहित कुछेक भीतरी गतिरोधों के बावजूद लोकतंत्र की मजबूती कायम है। जम्मू कश्मीर में हाल ही हुए चुनाव हो या फिर छत्तीसगढ़, मणिपुर, मिजोरम और नगालैंड के सुदूरवर्ती इलाकों के चुनाव हों, मतदाताओं का उत्साह लोकतंत्र की गहरी जडों का उदाहरण हैं। राजनीति जरूर कुछ हद तक दूषित नजर आती है लेकिन शीर्ष पदों पर हर मजहब को नेतृत्व मिलने से गौरव का अनुभव भी होता है। गणतंत्र दिवस पर जब परेड होती है तो भारत की सैन्य ताकत के साथ यहां की विविधता में एकता, अखंडता और सामाजिक सदभाव की झलक पूरी दुनिया देखती है।
भारतीय लोकतंत्र पर प्रश्नचिन्ह लगाने से पहले हमं उन देशों की हालत देख लेनी चाहिए जहां लोकतांत्रिक व्यवस्था के बजाय राष्ट्रपति प्रणाली या सैन्य सत्ता है, वहां की स्थिति काफी बदतर है। भारत की आर्थिक, ओद्योगिक, शैक्षिक, चिकित्सा, परमाणु ऊर्जा, तकनीकि कौशल आदि सब भारतीय लोकतंत्र और संवैधानिक शक्ति की देन हैं।
अब गणतंत्र दिवस पर बात करें संविधान की तो 26 जनवरी 1950 को सुबह 10-18 मिनट पर भारत का संविधान लागू किया गया। पूर्ण स्वराज दिवस 26 जनवरी 1930 को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान 26 जनवरी को लागू किया गया था। भारत को एक स्वतंत्र गणराज्य बनने के लिए भारतीय संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया गया था, लेकिन इसे लागू 26 जनवरी 1950 में किया गया। डा भीमराव अंबेडकर ने संविधान को 2 साल, 11 महीने और 18 दिनों में तैयार कर देश को समर्पित किया था। ये सभी जानते हैं कि संविधान को बनाने वाली संविधान सभा के अध्यक्ष डा भीमराव आंबेडकर थे, जबकि जवाहरलाल नेहरू, डा राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे।
गणतंत्र दिवस का इतिहास भी दिलचस्प है। एक स्वतंत्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए संविधान को 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे एक लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया था। साल 1929 में दिसंबर में लाहौर में कांग्रेस का अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ। इस अधिवेशन में प्रस्ताव पारित कर इस बात की घोषणा की गई कि यदि अंग्रेज हुकुमत द्वारा 26 जनवरी 1930 तक भारत को डोमीनियन का दर्जा नहीं दिया गया तो भारत को पूर्ण रूप से स्वतंत्र देश घोषित कर दिया जाएगा।
26 जनवरी 1930 तक जब अंग्रेज सरकार ने कुछ नहीं किया तब कांग्रेस ने उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन शुरू किया। उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। इसके बाद स्वतंत्रता प्राप्ति के वास्तविक दिन 15 अगस्त को भारत का स्वतंत्रता दिवस मनाया जाने लगा। भारत के आजाद हो जाने के बाद संविधान सभा की घोषणा हुई और इसने अपना कार्य 9 दिसम्बर 1947 से शुरू कर दिया। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे।
डा भीमराव आंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू, डा राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। संविधान निर्माण में कुल 22 समितियां थी जिसमें प्रारूप समिति सबसे प्रमुख एवं महŸवपूर्ण समिति थी। इस समिति का कार्य संपूर्ण संविधान लिखना या निर्माण करना था। प्रारूप समिति के अध्यक्ष डा भीमराव आंबेडकर थे। प्रारूप समिति ने और उसमें विशेष रूप से डा आंबेडकर ने 2 साल, 11 महीने और 18 दिन में भारतीय संविधान को मूर्तरूप दिया और इसे 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा के अध्यक्ष डा राजेन्द्र प्रसाद को सौंप दिया। कई सुधारों और बदलावों के बाद सभा के 308 सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को संविधान की दो हस्तलिखित कापियों पर हस्ताक्षर किये। इसके दो दिन बाद 26 जनवरी को संविधान देश भर में लागू हो गया। 26 जनवरी का महत्व बनाए रखने के लिए इसी दिन संविधान निर्मात्री सभा द्वारा स्वीकृत संविधान में भारत के गणतंत्र स्वरूप को मान्यता प्रदान की गई। यही वजह है कि 26 जनवरी को हर साल गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारत की विदुषी महिलाओं की बदौलत संविधान में महिलाओं के पक्ष में जो अधिकार प्रभावशाली ढंग से रखे गए। भारत के संविधान निर्माण में 15 महिलाओं ने अपनी अहम भूमिका निभाई। ये सभी महिलाएं भारत की संविधान सभा की सदस्य थीं, इनमें दुर्गाबाई देशमुख, राजकुमार अमृत कौर, हंसा मेहता, बेगम एजाज रसूल, अम्मू स्वामीनाथन, सुचेता कृपपलानी, दक्षानी वेलयुद्धन, रेनुका रे, पूर्णिमा बनर्जी, एनी मसकैरिनी, कमला चैधरी, लीला राय, मालती चैधरी, सरोजनी नायडू और विजय लक्ष्मी पंडित शामिल थीं।
बहरहाल, संविधान बनाने और इसे लागू करने का मकसद था कि आजाद भारत में हर एक नागरिक को बराबर का दर्जा मिल सके। सही मायने में जब संविधान लागू हुआ तभी हमें पूर्ण आजादी मिली। गणतंत्र का महत्व इसलिए भी है कि ताकि तंत्र, गण के प्रति जवाबदेह बना रहे। हालांकि मौजूदा दौर में ये सवाल भी है क्या तंत्र हकीकत में गण के लिए जिम्मेदार है। दूसरी बात ये भी है कि हम सब कुछ तंत्र के भरोसे ही नहीं छोड. सकते। हमें अपने कर्तव्यों को भी समझना होगा, आज हम अपने अधिकारों के प्रति तो सजग हैं लेकिन कर्तव्यों के प्रति बेरूखी दिखाते हैं। देश और समाज की तरक्की के लिए हमें अपने कर्तव्यों को भी तरजीह देनी होगी। हम हिन्दवासी स्वाधीनता दिवस और गणतंत्र दिवस दोनों को ही महापर्व के रूप में मनाते आ रहे है। परन्तु वर्तमान समय में स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस महज औपचारिक होकर रह गया है। जरूरत इस बात की है कि हम संविधान की मूल भावना को समझें, यह न समझें कि संविधान महज कुछ अनुच्छेदों, नियमों और उपबंधों का दस्तावेज है। संविधान का आशय सरकार के रवैये को नियंत्रित करने से है। संविधान के मूल्यों से ही स्वतंत्रता, समानता और न्याय हासिल करने का मार्ग प्रशस्त होता है।
गतिरोधों के बावजूद बरकरार है गणतंत्र की चमक
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