Home देश-दुनिया भारत में अवैध रूप से रह रहे आठ म्यांमार नागरिकों को दो साल की सजा, जेल से छूटने पर होगा निर्वासन

भारत में अवैध रूप से रह रहे आठ म्यांमार नागरिकों को दो साल की सजा, जेल से छूटने पर होगा निर्वासन

by admin

नई दिल्ली(ए)।  भारत में अवैध रूप से रह रहे आठ म्यांमार नागरिकों को ठाणे की एक अदालत ने दो साल की सजा सुनाई है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि सजा पूरी होने के बाद उन्हें निर्वासित कर दिया जाए। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जीटी पवार ने अपने फैसले में कहा कि यह साबित करने की जिम्मेदारी आरोपियों की है कि वे विदेशी नहीं हैं। अदालत ने कहा कि यूएनएचसीआर द्वारा जारी शरणार्थी कार्ड भारत में रहने के लिए कानूनी रूप से वैध नहीं है। भारत ने 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। कोर्ट ने आठ नागरिकों को दोषी मानते हुए 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया। जबकि नौवें आरोपी भारतीय नागरिक रियाज अहमद अकबर अली शेख को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। उस पर म्यांमारी नागरिकों का सहयोग करने का आरोप था।

  • 26 फरवरी को 2024 को किए गए थे गिरफ्तार

उत्तान सागरी पुलिस ने 26 फरवरी 2024 को महाराष्ट्र के ठाणे जिले के चौकगांव जेट्टी में आठ लोगों को पकड़ा। पुलिस को देखकर वे भागने की कोशिश करने लगे, लेकिन उन्हें पकड़ लिया गया। उनके पास से मोबाइल फोन और शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) के कार्ड बरामद हुए। इससे उनकी पहचान म्यांमार के नागरिक के रूप में हुई।

मुकदमे के दौरान अतिरिक्त लोक अभियोजक एमएन पावसे ने तर्क दिया कि यूएनएचसीआर कार्ड विदेशी नागरिकों को भारत में निवास करने का अधिकार नहीं देते हैं। जबकि आरोपियों के वकील ने दलील दी कि आरोपी रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी हैं। वे म्यांमार में उत्पीड़न के कारण भागकर आए थे। वे एक दशक से जम्मू-कश्मीर के शरणार्थी शिविर में रह रहे थे। आरोपियों ने दावा किया कि वे आजीविका की तलाश में उत्तान आए थे।

  • अदालत ने यह कहा

दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायाधीश जीटी पवार ने कहा कि यह साबित करने की जिम्मेदारी कि वे व्यक्ति विदेशी नहीं है या किसी विशेष वर्ग या वर्णन का विदेशी नहीं है, आरोपियों का है। आरोपी इस आवश्यकता को पूरा करने में विफल रहे। कोर्ट ने कहा कि आरोपी संख्या 1 से 8 के पास यूएनएचसीआर कार्ड हैं। भारत शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, 1951 और इसके प्रोटोकॉल 1967 का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है। इसलिए साफ है कि आरोपी विदेशी हैं और वे वैध दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश कर गए रह रहे थे।

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