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नई दिल्ली(ए)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मोटापा पर नियंत्रण के लिए खाद्य तेलों में 10 प्रतिशत की कटौती का आग्रह किया था, लेकिन इसी संदर्भ में तिलहन में निर्भरता के प्रयासों को भी चर्चा में ला दिया है।दशकों के प्रयासों के बावजूद भारत आज भी घरेलू जरूरतों का सिर्फ 43 प्रतिशत ही खाद्य तेल का उत्पादन कर पा रहा है। शेष 57 प्रतिशत के लिए पूरी तरह आयात पर निर्भर है। घरेलू मांग की पूर्ति के लिए प्रतिवर्ष लगभग डेढ़ सौ लाख टन से अधिक खाद्य तेल का आयात किया जा रहा है, जो सरकार के लिए दाल के बाद सबसे बड़ी चिंता की बात है।
खाद्य तेल के मामले में होगी आत्मनिर्भरता
यही कारण है कि केंद्र सरकार ने दाल के साथ-साथ खाद्य तेल के मामले में भी आत्मनिर्भरता का लक्ष्य तय किया है। प्रयास भी किया जा रहा है। राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन पर काम शुरू हो चुका है। वर्ष 2030-31 तक जरूरत का लगभग 72 प्रतिशत तेलहन का उत्पादन करना है। इसके तहत तिलहन का रकबा बढ़ाया जा रहा है।
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न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में भी वृद्धि कर किसानों को तेलहन की खेती के लिए प्रेरित-प्रोत्साहित किया जा रहा है। खाद्यान्न में ज्यादा तेल का इस्तेमाल सेहत के लिए भी नुकसानदायक है। नेशनल न्यूट्रिशन इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट बताती है कि प्रत्येक व्यक्ति को एक दिन में 27 ग्राम से ज्यादा तेल नहीं खाना चाहिए, जबकि खपत है लगभग दोगुना, जो कई विकसित देशों की तुलना में ज्यादा है।
20 लाख टन से अधिक खाद्य तेलों का आयात
- कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के मुताबिक भारत में प्रत्येक साल 230 से 250 लाख टन तक खाद्य तेल की खपत हो रही है। इस हिसाब से प्रत्येक वर्ष लगभग 140 से 150 लाख टन से अधिक खाद्य तेल का आयात किया जाता है। पिछले वर्ष यह मात्रा 165 लाख टन पहुंच गई थी।
- इस वर्ष जनवरी एवं फरवरी में अभी तक लगभग 20 लाख टन से अधिक खाद्य तेलों का आयात हो चुका है। जाहिर है, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आने और दस प्रतिशत की कटौती हो जाने पर आयात की मात्रा में उल्लेखनीय कमी आ सकती है। स्वास्थ्य में भी सुधार होगा।
- तिलहन उत्पादन में भारत का स्थान विश्व में पांचवां है, किंतु जनसंख्या एवं आय में वृद्धि के साथ-साथ मांग एवं आपूर्ति के बीच का अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। यह बड़ी चुनौती है। वर्ष 1950-60 में खाद्य तेलों की खपत प्रति व्यक्ति 2.9 किलोग्राम थी, जो अब लगभग 20 किलोग्राम प्रति वर्ष हो गई है। खाद्य तेलों में सबसे ज्यादा सरसों तेल को पसंद किया जाता है।
390 लाख टन तिलहन का उत्पादन
उसके बाद सोयाबीन एवं सूरजमुखी का स्थान है। तीनों मिलाकर 80 प्रतिशत की खपत है। खाद्य तेलों में निर्भरता के लिए राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन के तहत पाम आयल एवं दूसरे तिलहन उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए उन्नत बीज एवं तकनीकी सहायता दी जा रही है। अगले छह वर्षों तक मिशन के तहत 10,103 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
इसके पहले 2021 में देश में पाम आयल की खेती को बढ़ावा देने के लिए 11,040 करोड़ रुपये का प्रबंध किया गया था। पिछले वर्ष देश में 390 लाख टन तिलहन का उत्पादन हुआ था। इसे बढ़ाकर 2030-31 तक 697 लाख टन करना है। सरकार का मानना है कि इससे घरेलू जरूरतों का लगभग 72 प्रतिशत पूरा हो जाएगा।