जम्मू (ए)। जम्मू-कश्मीर में चौबीस घंटे बिजली मुहैया करवाने के सरकार के लक्ष्य के आगे पहाड़ों पर बर्फबारी आड़े आ गई है। ऊपरी क्षेत्रों में नदियों में पानी जम जाने से जम्मू कश्मीर की बिजली परियोजनाओं में बिजली उत्पादन 60 प्रतिशत तक गिर गया है। वहीं, 31 हजार करोड़ की देनदारी के बीच प्रदेश सरकार के लिए पावर ट्रेडिंग कारपोरेशन (पीटीसी) से सस्ती बिजली मिल पाना मुश्किल है।पड़ोसी राज्यों से बैंकिंग प्रणाली के तहत बिजली लेने की कोशिश की जा रही है, ताकि आर्थिक बोझ भी न बढ़े और गर्मियों में जब प्रदेश की परियोजनाओं में बिजली दोहन क्षमता अनुसार होना शुरू हो जाएगा, तब ली गई बिजली वापस कर दी जाए। बैंकिंग प्रणाली के तहत उत्तर प्रदेश व केंद्र सरकार से अभी भी 500 मेगावाट अतिरिक्त बिजली ली जा रही है।
जम्मू कश्मीर में बिना कटौती तीन हजार से 3500 मेगावाट बिजली की जरूरत है, जबकि वर्तमान में करीब 2,200 मेगावाट बिजली आपूर्ति हो रही है। ऐसे में सर्दियां शुरू होते ही प्रदेश में बिजली की मांग और आपूर्ति में अंतर बढ़ जाने से लोगों को घोषित-अघोषित कटौती का सामना करना पड़ रहा है। यह स्थिति पूरी सर्दियों में बनी रह सकती है।
600 मेगावाट बिजली ही उत्पन्न हो रही है।
प्रदेश की अपनी पनबिजली परियोजनाओं में 900 मेगावाट क्षमता वाली बगलिहार-एक व दो, 105 मेगावाट क्षमता वाली लोअर झेलम, 105 मेगावाट क्षमता वाली अप्पर सिंध सहित अन्य में कुल उत्पादन क्षमता करीब 1,138 मेगावाट है, लेकिन पहाड़ों पर पानी जम जाने से नदियों का जलस्तर कम हो गया है। बगलिहार-2 तो पूरी तरह बंद है। वर्तमान में सभी परियोजनाओं में 600 मेगावाट बिजली ही उत्पन्न हो रही है।
इसी तरह केंद्रपोषित बिजली परियोजनाएं, जिनकी उत्पादन क्षमता 2000 मेगावाट के करीब है, यहां भी करीब 800 मेगावाट बिजली उत्पन्न हो रही है। बिजली उत्पादन में करीब 60 प्रतिशत गिरावट आने की वजह से शहरों में चार घंटे की घोषित कटौती के बाद भी दो से तीन घंटे अघोषित कटौती की जा रही है। वहीं, ग्रामीण इलाकों में दिनभर में दो से तीन घंटे ही सप्लाई दी जा रही है। यानी वहां आठ से दस घंटे कटौती हो रही है।
सर्दियां बढ़ने पर बढ़ सकता है बिजली संकट
बिजली किल्लत को देखते हुए प्रदेश सरकार 31 हजार करोड़ की देनदारी के बीच बिजली बजट पर काबू पाते हुए अतिरिक्त बिजली जुटाने का प्रयास कर रही है। अधिकारिक सूत्रों का कहना है कि पंजाब सरकार ने बैंकिंग प्रणाली के तहत बिजली देने की स्वीकृति दे दी है। इसके बावजूद सर्दियों में बिजली खपत पर काबू न पाया जा सका तो प्रदेश में बिजली कटौती बढ़ सकती है। शहरों में प्रत्येक फीडर पर 10 घंटे और ग्रामीण फीडरों पर 12 घंटे कटौती हो सकती है।
नदियों का जल स्तर कम होने से बिजली संकट बना हुआ है। फिर भी लोगों को बेहतर सप्लाई देने का प्रयास किया जा रहा है। जून-जुलाई में 1050 मेगावाट बिजली पैदा हो रही थी। सितंबर से बिजली उत्पादन में कमी आना शुरू हो गई थी। अगले पांच वर्ष में ट्रांसमिशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन घाटे को 20 प्रतिशत तक लाया जाएगा, जो अभी 50 से 55 प्रतिशत के करीब है।
– एच राजेश प्रसाद, प्रिंसिपल सेक्रेटरी, पीडीडी