छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक धरोहर देवबलोदा, चरोदा के संरक्षण एवं पर्यटन विकास हेतु आज नई दिल्ली में भिलाई इस्पात संयंत्र के साथ राष्ट्रीय संस्कृति कोष (एनसीएफ) और पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग, भारत शासन के साथ एक समझौता हस्ताक्षरित किया गया। भिलाई इस्पात संयंत्र के सामुदायिक विकास विभाग द्वारा दुर्ग जिले के देव बलोदा स्थित ऐतिहासिक शिव मंदिर के संरक्षण की जिम्मेदारी ली है।
भिलाई इस्पात संयंत्र इस परियोजना के तहत ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहर देवबलोदा के शिव मंदिर के संरक्षण और उन्नयन का कार्य करेगा। देवबलोदा मंदिर परिसर में एएसआई की अन्य विकास गतिविधियों जैसे पार्किंग क्षेत्र, क्लॉक रूम, पीने के पानी की व्यवस्था आदि को भी सेल द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी।
21 दिसम्बर को नई दिल्ली में समझौता हस्ताक्षरित किया गया। इस अवसर पर सेल के निदेशक कार्मिक श्री के के सिंह की उपस्थिति में भिलाई इस्पात संयंत्र के मुख्य महाप्रबंधक (नगर सेवाएं एवं निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व) श्री एस वी नंदनवार, राष्ट्रीय संस्कृति कोष की ओर से मेंबर सेक्रेटरी (एनसीएफ) श्री अरविंद कुमार एवं पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग की ओर से एडीजी (कंजर्वेशन) श्री जान्हवी शर्मा ने समझौते पे हस्ताक्षर किये। इस अवसर पर एनसीएफ की ओर से संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव सुश्री संजुक्ता मुद्गल, संयंत्र के महाप्रबंधक (निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व) श्री षिवराजन, वरिष्ठ प्रबंधक (एनसीएफ) डाॅ मोनिका चौधरी तथा एनसीएफ व एएसआई के वरिष्ठ अधिकारीगण भी उपस्थित थे।
भगवान शिव को समर्पित मंदिर कलचुरी कालीन मंदिर है। एक संरक्षित स्मारक, मंदिर परिसर की मरम्मत की आवश्यकता है। सेल अपने सीएसआर कार्यक्रम के हिस्से के रूप में मंदिर परिसर के जीर्णोद्धार में एएसआई की सहायता करने की योजना बनाई है, जिसके लिए भिलाई इस्पात संयंत्र के सीएसआर विभाग के अधिकारियों ने मंदिर का दौरा किया और एएसआई अधिकारियों के साथ बातचीत की। अपने भिलाई दौरे के दौरान सेल अध्यक्ष श्रीमती सोमा मण्डल भी देवबलोदा का अवलोकन किया था। मंदिर एवं इसके परिसर के संरक्षण से क्षेत्र के पर्यटन विभाग को बढ़ावा मिलेगा।
नवरंग मंडप नागर शैली में बना देवबलौदा का प्राचीन शिव मंदिर अपने आप में खास है। कल्चुरी राजाओं ने 13 वीं शताब्दी में मंदिर का निर्माण कराया। राजधानी और दुर्ग के बीच भिलाई-तीन चरोदा रेललाइन के किनारे बसे देवबलौदा गांव का यह ऐतिहासिक मंदिर कई एतिहासिक तथ्यों को साथ लिए हुए है। इस मंदिर के इतिहास को लेकर कहा जाता है कि यहां स्थित शिवलिंग स्वयं ही भूगर्भ से उत्पन्न हुआ है।
इस मंदिर के चारों तरफ अद्भुत कारीगिरी की गई है। मंदिर के चारों तरफ देवी देवताओं के प्रतिबिंब बनाए गए हैं, जिसे देख कर 12वीं-13वीं शताब्दी के बीच लोगों के रहन सहन का पता चलता है। हर साल महाशिवरात्रि के दिन यहां विशाल मेला भी लगता है। इस मेले को देवबलोदा का मेला भी कहा जाता है। इस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और रात से ही भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग की पूजा करने के लिए कतार में खड़े होते हैं।