Home छत्तीसगढ़ ” कोई यूं ही नहीं हो जाता , नामचीन “

” कोई यूं ही नहीं हो जाता , नामचीन “

by Surendra Tripathi

व्यंग्य……..

एक बहुत ही वरिष्ठ और बड़े पद पर बैठे अधिकारी की ख्याति को महसूस कर मेरे मन में यह विचार उठने लगा कि इनकी सफलता का राज पता करना चाहिए । अब एक ओहदेदार और अधिकार संपन्न सरकारी मुलाजिम का सक्सेस मंत्र भला उसके अलावा कोई और कैसे बता सकता है ? यही सोचते हुए हमने उनके चैंबर की ओर प्रस्थान किया । मेरा भाग्य इतना प्रबल था कि मुझे उन अधिकारी महोदय से मुलाकात का अवसर तुरंत ही प्राप्त हो गया । यह मैं इसलिए बता रहा हूं कि उन महोदय के विषय में यह आम चर्चा है कि वे अपनी कुर्सी को ज्यादा परेशान नहीं करते हैं । उसे अधिकांश समय अकेले में समय बिताने अवसर प्रदान करने वाले अफसर के रूप में जाने जाते हैं । खैर यह तो हुई उनकी कार्यप्रणाली की बात । अब मैं अपने मुद्दे पर आना चाहता हूं । मैं जैसे ही अधिकारी महोदय के चैंबर में पूरी आचार – संहिता के साथ पहुंचा , उन्होंने मुझे सम्मान देते हुए स्थान ग्रहण करने कुर्सी की ओर इशारा किया । आखिर कुर्सी किसे पसंद नहीं ! मैं भी बिना किसी देरी के कुर्सी पर विराजमान हो गया । बातों का सिलसिला मैं अपनी ओर से शुरू करूं इससे पूर्व उन्होंने ही मेरे आने का कारण पूछने के साथ अवसर प्रदान कर दिया । अब वह समय आ चुका था जब मैं अपने आने के मंतव्य की पूर्ति कर सकूं । मैने सहज भाव प्रकट करते हुए शुरुआत की । महोदय मैं आपके इतने सफल अधिकारी होने पर कुछ चर्चा करना चाहता हूं । आखिर आप हमारे जिले के सफलतम अधिकारियों में से एक जो हैं ।
उन्हें गौरवान्वित करने वाले मेरे मन के सवाल ने वास्तव में उनके सीने की चौड़ाई को दो गुना कर दिया । मैने उनके गौरव पर चार चांद लगाते हुए पूछा – महोदय मैं यह जानना चाहता हूं कि आपकी कार्यप्रणाली कैसी है ,जिसके चलते आपने महकमे में एक मुकाम हासिल किया है ! अपनी गर्दन को शुतुरमुर्ग की तरह ऊंची करते हुए उन्होंने पहले तो एक गिलास पानी पिया और मुझे भी पीने के लिए इंगित किया । कार्यालयों की सहज प्राक्रिया के तहत अपने अर्दली को घंटी बजाकर बुलाते हुए काफी लाने का आदेश भी दिया । अब उन्होंने अपनी सफलता की गठरियों को धीरे – धीरे खोलना शुरू किया । अपनी लोकप्रियता के लुके – छिपे रहस्यों में से उन्होंने सबसे पहले हमें बताया कि वे अपनी दो दर्जन नौकरी वाले वर्षो में कभी भी विभागीय कार्य नहीं किया ! यह मुझे आश्चर्य में डालने वाला था , किंतु उन महोदय के नामचीन होने का पहला रहस्य था ! मुझे आश्चर्य चकित देख उन्होंने अपनी वाणी को जारी रखा और कहा जब मैने इस विभाग में ज्वाइनिंग दी तब मेरे हिस्से का काम मेरे वरिष्ठ किया करते थे ।अब जब मैं 24 वर्ष का सीनियर अधिकारी हो गया हूं तब मेरे जूनियर मुझे काम नहीं करने देते ! इसे मैं अपने भाग्य से जोड़कर देखता हूं । मैने तो अपने कर्म का रास्ता लक्ष्य के अनुसार ही चुना । यह मेरी किस्मत ही थी कि मुझे विभागीय कार्य के लिए माथा पच्ची नहीं करनी पड़ी । मुझे तो यह जानकर आश्चर्य होता है कि अधिकारी हमेशा काम…काम करते हुए चिंता क्यों किया करते हैं ? यह तो उसी तरह है जैसे देश के सारे काम का बोझ उन्हीं पर हो ?
मेरा अगला प्रश्न जैसे ही उनके आगे फेंका गया कि — ऐसा करने से आपकी छबि पर असर तो हुआ होगा ? उन्होंने पुनः अपना गला तर किया और फिर ऊर्जावान होकर कहने लगे ,काम की चिंता करने वाले अफसर वास्तव में अपने अधिकारों से भटके हुए हैं ! मैने हमेशा बिंदास जीवन जिया है । इसका परिणाम भी इस रूप में मुझे प्राप्त हुआ है कि न तो मेरे जूनियर और न ही सीनियर ने कभी मेरे प्रति नाराजगी व्यक्त की, बल्कि वे मुझसे प्रसन्न ही रहते हैं ! इसका कारण यह है कि जब मैं खुद अपनी कुर्सी को ज्यादा परेशान नहीं करता हूं तो मेरे जूनियर मेरे आदेशों की कमी पर प्रसन्न तो होंगे ही ! वरिष्ठ अधिकारी इस पर आपसे नाराज नहीं होते ? इस प्रश्न पर वे कहते हैं कि कोई भी वरिष्ठ अधिकारी फाइलों के पहाड़ को देखकर नाराजगी प्रकट करता है ।जब मैं उन्हें इससे दूर रखता हूं तो भला वे नाराज क्यों होंगे ? उल्टा मुझे अपने सबसे बड़े हितैषी के रूप में ही मानते हैं । उन्होंने यह भी बड़े गर्व के साथ बताया कि मेरी अधिकांश सी आर अन्य कर्मचारियों की तुलना में सर्वश्रेष्ठ है ! मुझे सारी पदोन्नति भी समय पर या समय से पूर्व ही मिली है । मेरे कई कनिष्ठ मेरी लापरवाही के कारण विजिलेंस केस में फंस गए किंतु उन्हें कभी अपनी वफादारी पर पश्चाताप नहीं हुआ ! मेरी कार्यप्रणाली को समझते हुए मेरे कई कर्मचारी आज मुझे भगवान की तरह पूजते हैं और मेरा सम्मान करते हैं ! इतना ही नही मेरा प्रभाव उन पर इतना है कि वे अपने माता  – पिता, बीबी – बच्चों तक को छोड़ सकते हैं किंतु मुझे नहीं ।
मैं अपने अगले प्रश्न का तीर उनकी ओर छोडूं इससे पहले उन्होंने ही अपनी लोकप्रियता का गुणगान जारी रखते हुए कहा  – मैं बड़े फक्र के साथ बताना चाहता हूं कि मेरे काम करने का तरीका मुझे किसी विलक्षण प्रतिभा से कम नहीं लगता है ! मैं इसे कामचोरी नहीं मानता – जैसा कि मुझसे बैरभाव रखने वाले पीठ पीछे कहा करते हैं ! इस तरह की प्रतिभा के लिए भी कड़ी मेहनत करनी होती है , जो मुझमें कूट – कूट कर भरी हुई है ! इस तरह का गुण ईश्वर हर किसी को नहीं देता है ! एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मैं भले ही विभागीय कार्य नहीं करता हूं ,किंतु मेरे पास एक भी मिनट का समय खाली नहीं है ! मैं अपने काम में कभी अपना स्वार्थ नहीं देखता ! मुझे आलसी या कामचोर कहना भी गलत ही होगा ! कारण यह कि आलसी से लक्ष्मी दूर भागती है ,जबकि मैं लक्ष्मी का सबसे बड़ा पूजक हूं । वह मुझ पर प्रसन्न रहते हुए आशीर्वाद बरसाती हैं । एक बात आप अपने हृदय और आत्मा में स्थाई रूप से बैठा लें कि मेरे जैसी सोच वाले ही सर्वोच्च पद की शोभा बढ़ाते हुए रिटायर होते हैं ! जैसा कि आप देख रहे हैं कि मेरा चैंबर काफी बड़ा है और मैने यहां बड़ा सा दर्पण भी लगा रखा है । इसे लगाने के पीछे कारण यह है कि मैं इसमें हमेशा अपना चेहरा देखता रहूं ,ताकि चेहरे की ताजगी मुझे ऊर्जा प्रदान करती रहे !
डॉ. सूर्यकांत मिश्रा
राजनांदगांव ( छ. ग.)

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