परपंरागत भारतीय तरीके से बनाया गया चिकन पूरी तरह सुरक्षित
दुर्ग/ बर्ड फ्लू की आशंकाओं से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने के संबंध में आज एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन हुआ। इसमें पोल्ट्री व्यवसायी, पशुधन विकास विभाग के अधिकारी उपस्थित रहे। इस अवसर पर वक्ताओं ने बर्ड फ्लू से जुड़ी भ्रांतियाँ दूर की। वक्ताओं ने कहा कि फिलहाल बर्ड फ्लू का एक भी मामला जिले में नहीं आया है। भारतीय समाज में चिकन और अंडे परंपरागत रूप से पकाया जाता है जिससे स्वतः ही इस तरह के वायरस समाप्त हो जाते हैं। इसलिए लोगों को घबराने की कोई जरूरत नहीं। वक्ताओं ने कहा कि चिकन और अंडे प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं। शक्ति और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की दृष्टि से ये कारगर होता है। पशुधन विकास विभाग के उप संचालक डाॅ. चावला ने बताया कि 75 डिग्री फैरनहाइट से अधिक ताप पर बर्ड फ्लू का वायरस समाप्त हो जाता है। परंपरागत भारतीय खाना इससे काफी अधिक ताप पर पकता है। चिकन में भी ऐसा ही है इसलिए इसके प्रयोग में किसी तरह का जोखिम नहीं है। डाॅ. चावला ने कहा कि बर्ड फ्लू का जिले में कोई भी प्रकरण अभी तक नहीं आया है जहाँ से भी पक्षियों के अप्राकृतिक मौत की सूचना मिलती है वहाँ जांच की जाती है। अब तक जाँच में ऐसा कोई भी प्रकरण सामने नहीं आया है। डाॅ. डीडी झा ने इस अवसर पर कहा कि विभाग ने बर्ड फ्लू के संबंध में शासन द्वारा जारी किये गए सभी निर्देशों से पोल्ट्री व्यवसायियों को अवगत करा दिया है। वे इस संबंध में ध्यान भी रख रहे हैं। इसके लिए साफसफाई का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। सैनिटाइजेशन किया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि ये बीमारी मनुष्य से मनुष्य में नहीं फैलती। डाॅ. यादव ने भी इस मौके पर बर्ड फ्लू के संबंध में रखी जाने वाली सावधानियों से लोगों को अवगत कराया। इस मौके पर डाॅ. मिश्रा ने भी संबोधन किया। वे पुणे में इस संबंध में तीन साल रिसर्च कर चुके हैं। उन्होंने भी अपना अनुभव साझा किया। इस मौके पर डाॅ. सिरमौर ने भी अपना संबोधन दिया। पोल्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष ने भी इस विषय में अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि परंपरागत भारतीय खाना पूरी तरह से सुरक्षित होता है क्योंकि हम लोग पकाकर ही खाते हैं। अधपका खाने का रिवाज हमारे यहां नहीं है इसलिए इस तरह के वायरस से जुड़ा हुआ खतरा हमारे यहाँ नहीं है। बिना किसी हिचक के हमें चिकन और अंडों का इस्तेमाल जारी रखना चाहिए।