Home देश-दुनिया भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में आज पद ग्रहण करेंगे जस्टिस गवई, जानें उनके बारे में

भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में आज पद ग्रहण करेंगे जस्टिस गवई, जानें उनके बारे में

by admin

नईदिल्ली(ए)। भारत के अगले प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के तौर पर न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई आज पद संभालेंगे। इससे पहले बीते माह की 30 तारीख को कानून मंत्रालय ने जस्टिस गवई की भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की अधिसूचना जारी की थी। वहीं, 16 अप्रैल को सीजेआई खन्ना ने केंद्र सरकार से उनके नाम की सिफारिश की थी। जस्टिस गवई का कार्यकाल छह महीने का होगा। वह 23 दिसंबर को सेवानिवृत्त होंगे। जस्टिस बीआर गवई साल 2016 में नोटबंदी को लेकर दिए गए फैसले का हिस्सा रहे। जिसमें कहा गया था कि सरकार को करेंसी को अवैध घोषित करने का अधिकार है। इसके अलावा जस्टिस गवई बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ दिए आदेश का भी हिस्सा रहे और इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर फैसला देने वाली पीठ का भी हिस्सा रहे। वहीं, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस संजीव खन्ना मंगलवार को सेवानिवृत्त हो गए। जस्टिस खन्ना ने कहा, वह सेवानिवृत्ति के बाद कोई आधिकारिक पद नहीं संभालेंगे, हालांकि वह कानून के क्षेत्र में काम जारी रखेंगे।

भारत के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश
जस्टिस गवई देश के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश हैं। उनसे पहले जस्टिस केजी बालाकृष्णन भारत के मुख्य न्यायाधीश बने थे। जस्टिस बालाकृष्णन साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे।

पिता रहे हैं बिहार और केरल के पूर्व राज्यपाल

जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। जस्टिस गवई के पिता दिवंगत आरएस गवई भी एक मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता और बिहार और केरल के पूर्व राज्यपाल रहे। जस्टिस गवई ने अपने वकालत करियर की शुरुआत साल 2003 में बॉम्बे उच्च न्यायालय में बतौर एडिश्नल जज की थी। इसके बाद साल 2005 में वे स्थायी जज नियुक्त हुए। जस्टिस गवई ने 15 वर्षों तक मुंबई, नागपुर, औरंगाबाद और पणजी की पीठ में अपनी सेवाएं दीं।
जस्टिस बीआर गवई का ऐसा रहा करियर
16 मार्च, 1985 को वकालत शुरू करने वाले न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील के रूप में कार्य कर चुके हैं। उन्होंने अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में सेवा दी। 17 जनवरी, 2000 को उन्हें नागपुर खंडपीठ के लिए सरकारी वकील और लोक अभियोजक नियुक्त किया गया। 14 नवंबर, 2003 को वे बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश बने और 12 नवंबर, 2005 को स्थायी न्यायाधीश नियुक्त हुए। 24 मई, 2019 को उन्हें सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया। न्यायमूर्ति गवई सर्वोच्च न्यायालय में कई ऐसी संविधान पीठों में शामिल रहे, जिनके फैसलों का महत्वपूर्ण प्रभाव रहा। दिसंबर 2023 में, उन्होंने पांच जजों की संविधान पीठ में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा।

नोटबंदी के फैसले को दी स्वीकृति

  • उनकी सदस्यता वाली पांच जजों की पीठ ने राजनीतिक फंडिंग के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को रद्द किया। वे 2016 के नोटबंदी निर्णय को 4:1 के बहुमत से मंजूरी देने वाली संविधान पीठ में भी शामिल रहे।
  • न्यायमूर्ति गवई की सदस्यता वाली पांच जजों की संविधान पीठ में 4:1 के बहुमत से सरकार के 2016 की नोटबंदी के फैसले को समर्थन दिया। इसे काले धन और आतंकी फंडिंग पर अंकुश लगाने का कदम माना गया।
  • जस्टिस गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने देशभर में संपत्ति विध्वंस के लिए 15 दिन का कारण बताओ नोटिस व जवाब का समय अनिवार्य करने का दिशानिर्देश जारी किया। यह फैसला नागरिक अधिकारों की रक्षा से संबंधित है।

जस्टिस बीआर गवई के बड़े फैसले

राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों की रिहाई – 2022
जस्टिस गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने 30 साल से ज्यादा समय से जेल में बंद दोषियों की रिहाई को मंजूरी दी, यह मानते हुए कि तमिलनाडु सरकार की सिफारिश पर राज्यपाल ने कोई कार्रवाई नहीं की थी।

वणियार आरक्षण को असंवैधानिक घोषित करना – 2022
तमिलनाडु सरकार को वणियार समुदाय को विशेष आरक्षण देने के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया, क्योंकि यह अन्य पिछड़ा वर्गों के साथ भेदभावपूर्ण था।

 ईडी निदेशक के कार्यकाल का अवैध विस्तार – 2023
जुलाई 2023 में जस्टिस गवई की बेंच ने प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल विस्तार को अवैध करार दिया और उन्हें 31 जुलाई 2023 तक पद छोड़ने का निर्देश दिया था।

 बुलडोजर कार्रवाई पर रोक  2024
2024 में, जस्टिस गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि केवल आरोपी या दोषी होने के आधार पर किसी की संपत्ति को ध्वस्त करना असंवैधानिक है। कार्रवाई बिना कानूनी प्रक्रिया के नहीं कर सकते, अगर होती है तो संबंधित अधिकारी जिम्मेदार होगा।

Share with your Friends

Related Posts