अरस्तू ने कहा था-“मानव की प्रवृत्ति है कि वह अपनी क्रियाओं को पुनः विविध रूपों में देखना चाहता है” इसीलिए नाटकों व इस तरह की समस्त विधाओं का विकास हुआ और कला नित नए आयाम को प्राप्त होती गयी…
हमारे छत्तीसगढ़ में भी विश्व की प्राचीन नाट्यशाला है जो सीताबेंगरा के नाम से रामगढ़ की पहाड़ियों में अवस्थित है। रामगढ़ सरगुजा जिले में उदयपुर के समीप पड़ता है। मान्यता है कि इस गुफा में वनवास के दौरान सीता का निवास था… सरगुजिया में बेंगरा का अर्थ कमरा होता है।
सीताबेंगरा की यह नाट्यशाला ईसा पूर्व 3री शताब्दी की है जो पत्थरों को काटकर बनाई गई है। इसकी दीवारें सीधी तथा द्वार गोलाकार है। इस द्वार की ऊँचाई 6 फीट है। इसका प्रांगण 45 फीट लम्बा व 15 फीट चौड़ा है। गुफा में प्रवेश करने हेतु दोनों तरफ सीढियां बनी हुई हैं और दर्शकदीर्घा पत्थरों को काटकर गैलरीनुमा सीढ़ीदार बनाई गई है। इसमें 50-60 दर्शकों के बैठने की व्यवस्था है। सामने मंच है। नाट्यशाला को प्रतिध्वनि रहित करने के लिए दीवारों पर गवाक्ष हैं। गुफा के प्रवेशद्वार पर मध्यकालीन नागरी में लिखा है —-
“आदिपयन्ति हृदयं सभाव्वगरू कवयो ये रातयं दुले वसन्ति ……. कुद्स्पीतं एव अलगेति ”
—–पूरा परिदृश्य रोमन रंगभूमि की याद दिलाता है। यह राष्ट्रीय स्तर के मंचीय कार्यक्रमों का प्राचीनतम प्रमाण है। आज भी आषाढ़ के प्रथम दिवस पर यहाँ नाटक व अन्य कार्यक्रम होते हैं।रामगढ़ की पहाड़ियां इसलिए भी चर्चित हैं क्योंकि माना जाता है कि कालिदास ने अपने निर्वासन काल में ‘मेघदूतम’ की रचना यहीं पर की थी।
शंकर पांडे
वरिष्ठ पत्रकार, छत्तीसगढ़